मेहनत का फल
टीचर की तीखी बातें सुनकर पढ़ाई में कमजोर एक लड़की ने खूब मेहनत की और अब खुद टीचर बनकर पढ़ाती है कमजोर बच्चों को.. 15 वर्ष पहले की बात है। तब मैं 8वीं कक्षा में पढ़ रही थी। उस दिन गणित के टेस्ट में मुझे 30 में से 0 अंक मिले थे।
टीचर की तीखी बातें सुनकर पढ़ाई में कमजोर एक लड़की ने खूब मेहनत की और अब खुद टीचर बनकर पढ़ाती है कमजोर बच्चों को..
15 वर्ष पहले की बात है। तब मैं 8वीं कक्षा में पढ़ रही थी। उस दिन गणित के टेस्ट में मुझे 30 में से 0 अंक मिले थे। इसके बदले में टीचर से मुझे हाथों पर छडि़यों की बौछारें भी मिली थीं। मैं रोती हुई हताश मन से घर आई। शाम को मेरी सहेली आई और उसने बताया कि हमारे स्कूल में आए नए अध्यापक यहीं पास में रहते हैं और बहुत से बच्चे वहां ट्यूशन पढ़ने जाने लगे हैं। वे बहुत अच्छा पढ़ाते हैं। अगले ही दिन मैंने टीचर से ट्यूशन की बात की और पढ़ने जाने लगी। धीरे-धीरे मेरी बहुत सी पढ़ाई की समस्याएं सुलझने लगीं।
मेरे अध्यापक ने एक दिन कहा कि तुम्हें अधिक मेहनत की जरूरत है, ताकि तुम आगे की पढ़ाई विज्ञान वर्ग से कर सको। विज्ञान वर्ग में गणित विषय भी अनिवार्य होगा। इतना सुनते ही समीप बैठे गणित के अध्यापक त्रिपाठी सर ने जोर से ठहाका लगाया और व्यंग्यात्मक स्वर में कहा, 'यह लड़की विज्ञान वर्ग से पढ़ेगी? मैं शर्त लगाकर कहता हूं कि यह फेल हो जाएगी और आपका भी अपमान होगा कि आपकी पढ़ाई छात्रा फेल हो गई।' उनकी बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू भर आए। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे किसी ने मेरी खुशियों और उत्साह पर जोरदार प्रहार कर दिया हो। मैंने उसी समय दृढ़ निश्चय कर लिया कि मैं उनकी बात को गलत साबित करके दिखा दूंगी।
कुछ समय पश्चात मेरा दाखिला शहर के एक इंटर कॉलेज में हुआ। पढ़ाई के दौरान जब मेरा निश्चय डगमगाने लगता तो मुझे पिताजी की बात याद आ जाती कि मेहनत करते जाओ, फल अवश्य मिलेगा। यही सोचकर मैं मेहनत करती गई। नौवीं कक्षा का परिणाम आया तो कक्षा की 150 लड़कियों में मेरा तीसरा स्थान था। मैं बहुत खुश थी। ऐसा लग रहा था, जैसे मेरी उम्मीदें साकार हो गई हों। मेरी भविष्य की उम्मीदों को भी पंख लग गए थे, जो और ऊंचाइयों को छूने को बेताब थीं। मैंने आखिर अपने निश्चय को सफल कर ही दिया था।
दिन बीतते गए और 10वीं बोर्ड की परीक्षा का परिणाम शाम को आने वाला था। गांव में मैं पहली और अकेली लड़की थी, जो विज्ञान वर्ग से पढ़ रही थी। मैं बहुत चिंतित थी। शाम को जैसे ही मैंने परीक्षाफल देखा, तो खुशी से उछल पड़ी। मैं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुई थी। मेरे मुख पर तो प्रसन्नता थी, पर आंसू लगातार थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मुझे अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी और पहली खुशी मिली थी।
इसके बाद मेरा दाखिला राजकीय महिला पालिटेक्निक की इंजीनियरिंग शाखा में हो गया और मैं कदम दर कदम सीढि़यां चढ़ती गई। मैंने एमए और बीएड भी कर लिया। एक दिन मैं अपने घर आने के लिए टैंपो में बैठी। मेरे सामने वही गणित के अध्यापक बैठे थे। मैंने उन्हें नमस्ते किया और अपना नाम बताया। उन्होंने मुस्कुराते हुए व्यंग्यात्मक अंदाज में पूछा, 'आगे पढ़ाई की थी या वहीं छोड़ दी थी?' मैंने शालीनता से कहा, 'सर, आपके आशीर्वाद से आज मैं एमए बीएड हूं और कॉलेज में पढ़ा रही हूं। इतना सुनते ही उनके चेहरे की व्यंग्यात्मक मुस्कान गायब हो गई और वे स्तब्ध रह गए। कुछ क्षणों पश्चात उन्होंने कहा, 'मैंने तो सोचा भी नहीं था कि तुम इतना आगे बढ़ जाओगी लेकिन तुमने तो कमाल कर दिया।'
मैं मानती हूं कि उनकी व्यंग्यात्मक टिप्पणी के कारण ही मुझमें मेहनत से पढ़ने का जज्बा पैदा हुआ और उन्हें गलत साबित करने के प्रयास में मेरी जिंदगी सुधर गई। आज मैं ऐसे ब'चों को पढ़ाना पसंद करती हूं, जिन्हें लोगों ने पढ़ने में कमजोर कहा हो या टीचर ने उन्हें पढ़ाने से हाथ खड़े कर दिए हों। मैं अपने छात्रों को सिखाती हूं कि जीवन में किसी की तीखी और व्यंग्यात्मक बातों से अपने विश्वास को कभी कमजोर न बनने दें। मेहनत करने से ही हमें आगे का सुखद मार्ग मिलता है।
(कुमारी अखिलेश यादव, लखनऊ)