सहमे कदमों ने पकड़ी रफ्तार
स्नेहा.. क्या तुम अकेले चेन्नई जा रही हो? पैरेंट्स तैयार हो गए तुम्हें भेजने के लिए? अगर सफर के दौरान कोई मुश्किल हुई तो कैसे मैनेज करोगी ट्रेन में? पता नहीं आसपास कैसे लोग होंगे? उन्हें कैसे हैंडल करोगी? उसके बाद चेन्नई भी तो तुम्हारे लिए एक नया शहर होगा.. बहुत हिम्मत च
स्नेहा.. क्या तुम अकेले चेन्नई जा रही हो? पैरेंट्स तैयार हो गए तुम्हें भेजने के लिए? अगर सफर के दौरान कोई मुश्किल हुई तो कैसे मैनेज करोगी ट्रेन में? पता नहीं आसपास कैसे लोग होंगे? उन्हें कैसे हैंडल करोगी? उसके बाद चेन्नई भी तो तुम्हारे लिए एक नया शहर होगा.. बहुत हिम्मत चाहिए यह सब करने के लिए.. मोना ने स्नेहा से ऐसे न जाने कितने सवाल मिनटों में पूछ डाले.. असल में यह सिर्फ मोना नहीं, बल्कि हमारे घर-समाज के रिश्ते-नातेदारों द्वारा पूछे जाने वाले आम सवाल हैं, क्योंकि सदियों से भारतीय परिवारों में लड़कियां बेहद सुरक्षित और संरक्षित वातावरण में पलती-बढ़ती रही हैं। वे चाहे कितनी ही शिक्षित क्यों न हो जाएं, अगर उन्हें घर से दूर कहीं जाना है तो भाई या पिता या पति का साथ जरूरी माना जाता रहा है, क्योंकि सुरक्षा का मसला सब पर भारी होता है। एक मानसिकता है कि महिलाएं, अकेले ट्रैवल नहीं कर सकती हैं, लेकिन अब जमाना बदल रहा है। महिलाएं टेक्नोलॉजी की मदद से न सिर्फ सेफ ट्रैवलिंग कर रही हैं, बल्कि ट्रेन, फ्लाइट और होटल आदि की बुकिंग भी ऑनलाइन ही करा ले रही हैं, जिससे उन्हें कहीं भटकने की जरूरत ही नहीं पड़ती। हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार, भारतीय ट्रैवल मार्केट में आज महिलाएं महत्वपूर्ण सेगमेंट के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। अनुमान तो यह भी है कि आने वाले बीस वर्षो में दस मिलियन से ज्यादा महिलाएं बिजनेस के सिलसिले में इंटरनेशनल डेस्टिनेशंस पर जाएंगी।
बदल रही है सोच
कुछ साल पहले ज्योति ऑस्ट्रेलिया जाने के क्रम में कोलकाता एयरपोर्ट पर अपनी फ्लाइट का इंतजार कर रही थीं। अंदर से बेहद नर्वस। मन में भी तरह-तरह के ख्याल और प्रश्न आ रहे थे कि संदीप उन्हें वहां रिसीव करने तो आ जाएंगे? अगर नहीं आए तो घर कैसे जाएंगी? इसके अलावा बार-बार एयरपोर्ट के बाहर उनकी फ्लाइट के टेक ऑफ करने का इंतजार करते पैरेंट्स की बातें-हिदायतें भी मन में उमड़-घुमड़ रही थीं। असल में सब ज्योति की पहली एकल यात्रा को लेकर थोड़े सहमे हुए थे। हो भी क्यों नहीं? जिस बेटी को बचपन से लेकर आज तक, कभी दूसरे शहर पढ़ने नहीं भेजा था। ज्योति कहती हैं, 'जब मैं शादी के बाद अपने पति के पास अकेले ऑस्ट्रेलिया जा रही थी तो सब डरे हुए थे, लेकिन 2010 के नवंबर महीने की इस घटना ने मुझमें इतना ज्यादा आत्मविश्वास भर दिया कि आज मैं नियमित रूप से अकेले इंडिया आती-जाती हूं। यहां तक कि ऑफिशियल ट्रिप के लिए भी सोचना नहीं पड़ता।' ज्योति की तरह ही महिलाओं की सोच आज बदल गई है। सहमे-सहमे से कदमों ने रफ्तार पकड़ ली है। वे परिंदे की तरह खुले आकाश में पंख फैलाए उड़ रही हैं।
खत्म हो गया डर
'मेरे पैरेंट्स को लगता था कि अकेले ट्रैवल करने से लड़कियां इंडिपेंडेंट होती हैं। इसलिए उन्होंने मुझे छोटी उम्र में इसके लिए प्रोत्साहित किया। मैं आठवीं कक्षा में थी तब पहली बार ट्रेन से पुणे से आगरा का सफर किया था। तब मोबाइल फोन भी नहीं था। स्लीपर क्लास से गई थी, लेकिन रिजर्वेशन के समय ही पैरेंट्स ने पता कर लिया था कि बर्थ के आसपास कौन से लोग होंगे।' कहती हैं, झरना। उनका मानना है कि अकेले ट्रैवलिंग से उन्हें काफी फायदा हुआ। लोगों को पहचानने की समझ बढ़ी। सामाजिक मामलों को लेकर एक्सपोजर हुआ।
यात्रा से आई हिम्मत
श्रद्धा शर्मा एक समय बहुत संकोची और मितभाषी हुआ करती थीं। इसलिए घरवाले कहीं अकेले भेजने से डरते थे। अगर कोई कॉम्पिटिटिव एग्जाम देना होता तो पिता या मां साथ में जाते थे, लेकिन साल 2000 में एक समय आया जब उन्होंने अकेले दिल्ली से हैदराबाद जाने का फैसला किया और समाज का भ्रम तोड़ने की प्रतिज्ञा की। वह कहती हैं, 'दरअसल, मैं उस एक सफर से पहले यह हिम्मत ही नहीं जुटा पाई थी कि परिवार वालों से कह सकूं कि वह मुझ पर भरोसा करें। दुनिया आपका तब तक कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जब तक आपमें हर स्थिति और परिस्थिति का सामना करने की क्षमता और विश्वास है।'
निखर गया व्यक्तित्व
'मेरे पिताजी ने पढ़ाई करने से कभी हमें रोका नहीं, लेकिन वे थोड़े रूढि़वादी परंपराओं से प्रभावित थे। इसलिए अगर असम से कहीं बाहर जाना हुआ तो भाई या पापा साथ जाते। ग्रेजुएशन से पहले शायद ही अकेले ट्रैवल किया था, लेकिन 1995 में पहली बार फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने बेंगलुरु गई। शुरू में मुझे थोड़ा डर रहा, लेकिन जब बेंगलुरु में जॉब करने लगी तो अक्सर घर आना-जाना होता। आहिस्ता-आहिस्ता पिताजी का मुझ पर विश्वास बढ़ गया। मेरे व्यक्तित्व में भी अद्भुत बदलाव आया।' मुंबई की एंटरप्रेन्योर कविता जैन को शादी के बाद पति नयंक जैन ने भी अकेले ट्रैवल करने के लिए एनकरेज किया। शायद यही वजह रही कि लंदन में नयंक की व्यस्तताओं के बीच उन्होंने अकेले लंदन को एक्सप्लोर किया। हालांकि शुरू-शुरू में कुछ गलतियां हुईं। गलत बस लेने के कारण रास्ता भटक गई, लेकिन इनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। फिर जब जैपनीज कंपनी के साथ काम करना शुरू किया तो अकेले ट्रैवल करते हुए मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया।
(अंशु सिंह)