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किताबघर- बुल्लेशाह का सूफिया दस्तावेज

काव्य की विभिन्न विधाओं में वक्त के साथ बदलाव आया लेकिन शायरी आज भी प्रासंगिक है। बात जब सूफियाना शायरी, बारहमाहों, सीहरफी, दोहों की चले तो जरूर याद किए जाते हैं सूफी काव्य परंपरा के संत बुल्लेशाह। अपनी रचनाओं से सामाजिक, धार्मिक और कर्मकांडों से जुड़ी छोटी-छोटी बातों को बुल्लेशाह

By deepali groverEdited By: Published: Mon, 08 Dec 2014 10:47 AM (IST)Updated: Mon, 08 Dec 2014 11:29 AM (IST)
किताबघर- बुल्लेशाह का सूफिया दस्तावेज

काव्य की विभिन्न विधाओं में वक्त के साथ बदलाव आया लेकिन शायरी आज भी प्रासंगिक है। बात जब सूफियाना शायरी, बारहमाहों, सीहरफी, दोहों की चले तो जरूर याद किए जाते हैं सूफी काव्य परंपरा के संत बुल्लेशाह। अपनी रचनाओं से सामाजिक, धार्मिक और कर्मकांडों से जुड़ी छोटी-छोटी बातों को बुल्लेशाह ने बहुत ही सहज शब्दों में जनमानस को रूबरू कराया था। बुल्लेशाह की रचनाओं और उनसे जुड़े तथ्यों को किताब का रूप दिया है रचना भोला 'यामिनी' ने। डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब 'सूफी संत बुल्लेशाह और उनकी शायरी' खासकर नई पीढ़ी के लिए एक ऐसा दस्तावेज है, जो सूफियाना अंदाज और इसकी रचनाओं के वास्तविक मायनों को बताएगी। शायरी, काफियों और दोहों के भावार्थ के साथ आई इस किताब की खास बात यह है कि अधिसंख्य लोगों का मानना होता है कि शायरी सिर्फ नायक या नायिक के इर्द-गिर्द ठहरती है, जबकि बुल्लेशाह ने सूफी परंपरा के तहत अपनी हर तरह की रचना में समाज को ईश्वर से जोड़ा था, जो इसे पढ़कर समझा जा सकता है। बेशक शायरी के शौकीनों के लिए यह सूफियाना संकलन रोचक होगा!

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पढ़ेंः किताबघर- रिश्तों का आईना


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