तमाचे की तरह तीखा
प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद धर्मपाल साहिल का नया उपन्यास 'आर्तनाद' किसी तमाचे की तरह तीखा है। धर्म की आड़ में यौन शोषण की पृष्ठभूमि पर केंद्रित इस उपन्यास में लेखक ने समाज में व्याप्त दोहरे चरित्रों के मुखौटे नोचने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पंखुड़ी प्रकाशन, होशियारपुर, (पंजाब
प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद धर्मपाल साहिल का नया उपन्यास 'आर्तनाद' किसी तमाचे की तरह तीखा है। धर्म की आड़ में यौन शोषण की पृष्ठभूमि पर केंद्रित इस उपन्यास में लेखक ने समाज में व्याप्त दोहरे चरित्रों के मुखौटे नोचने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पंखुड़ी प्रकाशन, होशियारपुर, (पंजाब) से प्रकाशित यह उपन्यास समाज में फैली अमानुषिक दरिंदगी का ज्वलंत दस्तावेज है। आर्तनाद में लेखक ने बलात्कार जैसे पाशविक कृत्य, ऐसी घटनाओं के बाद पीड़िता के व्यवहार एवं समाज के रवैये का बेहद जिम्मेदारीपूर्ण चित्रण किया है। वे किसी मनोविश्लेषक की भांति इस मानसिकता की परत-दर-परत खोलते चले जाते हैं और अंत में एक रास्ता भी सुझाते हैं कि कैसे परिवार की सहानुभूति और सजगता से पीड़िता की मानसिक स्थिति को संभाला जा सकता है। सबसे अधिक सराहना की बात तो यह है कि इतने नाजुक विषय को छूते हुए कहीं पर भी उनकी कलम तनिक भी नहीं बहकी है। अन्यथा इसे एक सार्थक दस्तावेज की जगह बारह मसालों की चाट बनने में जरा भी देर न लगती। वस्तुत: यह अत्यंत ही प्रासंगिक कृति है। कहीं-कहीं पर आपको इसमें समकालीन मुद्दों और घटनाओं की झलक भी मिलती है, पर अंतत: यह उन सबकी कहानी है जो एक तथाकथित सभ्य समाज में घुट-घुटकर और छुप-छुपकर जीने को मजबूर हैं।