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देश में यूनिफार्म सिविल कोर्ड लागू हो: तस्लीमा नसरीन

बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तस्लीमा नसरीन ने देश में यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने की मांग करते हुए कहा कि जैसे ही मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ लिखती हूं तो मेरे खिलाफ फतवा जारी होने के साथ ही जान को खतरा बन जाता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 24 Jan 2017 03:53 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2017 04:04 AM (IST)
देश में यूनिफार्म सिविल कोर्ड लागू हो:  तस्लीमा नसरीन
देश में यूनिफार्म सिविल कोर्ड लागू हो: तस्लीमा नसरीन

जयपुर, जागरण संवाद केन्द्र। बांग्लादेश की विवादास्पद लेखिका तस्लीमा नसरीन ने देश में यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने की मांग करते हुए कहा कि जब मै हिन्दू और ईसाई धर्म के खिलाफ लिखती हूं तो मेरे खिलाफ कुछ नहीं होता, लेकिन जैसे ही मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ लिखती हूं तो मेरे खिलाफ फतवा जारी होने के साथ ही जान को खतरा बन जाता है। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन रविवार को एक सत्र में तस्लीमा ने कहा कि उनके खिलाफ फतवे जारी करने वालों को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों का संरक्षण रहा है।

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उन्होंने कहा कि कोलकत्ता में सरेआम मेरे खिलाफ फतवा जारी करने वाले और सिर पर इनाम रखने वालों को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का संरक्षण है। वे ममता बनर्जी के दोस्त है। ऐसे लोगों को प. बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का भी संरक्षण हासिल रहा है।

भारत एक सहिष्णु देश: तसलीमा नसरीन

उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर किस तरह की धर्म निरपेक्षता है। फतवे जारी करने वालों को बढ़ावा देना क्या धर्म निरपेक्षता है। उन्होंने कहा कि हिन्दु समाज की महिलाओं के अधिकारों की बात करें, तो कोई विरोध में नहीं उतरता और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की बात करें तो जानलेवा हमला हो जाता है। इस्लाम को मानने वाले और इस्लामिक देश जब तक खुद के लिए आलोचना नहीं सुनेंगे, तब तक वे धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकते। उन्होंने समान नागरिक संहिता को तुरंत लागू करने की पैरवी की।

उन्होंने कहा कि महिला अधिकारों के लिए ये बेहद जरूरी है। विवाद होने के आशंका से उनके सत्र को अंत तक छिपाए रखा और अचानक उन्हें मंच पर बुला लिया गया। फेस्टिवल में बाहर से मंच तक भारी पुलिस बल का इंतजाम किया गया था। इस विशेष सत्र में तस्लीमा ने धर्म, कट्टरपंथियों, सरकारों, महिलाओं और खुद के निर्वासन को लेकर खुलकर बातचीत की। इस्लाम को भी आलोचना स्वीकार करनी चाहिए। वर्ष 2003 में मेरी पुस्तक का विरोध मुसलमानों ने नहीं किया था, बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री के मित्र लेखकों ने किया और मेरा निर्वासन कर दिया गया। केवल ये लेखक मेरे विचारों से सहमत नहीं थे। जबकि लोगों को मेरी पुस्तक और मेरे विचार पसंद आए थे। फिर भी, मुझे दिल्ली में कोई मकान किराए पर देने को तैयार नहीं था,जबकि मै मेरा यहां रहने का मन था।

उन्होंने कहा कि वे मानवता, समानता, लिखने-बोलने की आजादी पर विश्वास रखती हैं, न कि धर्म एवं राष्टï्रवाद पर। वे ऐसे देशों की सीमाओं के भी खिलाफ हैं, जो धर्म के आधार पर बनी हुई हों। उन्होंने बांग्लादेश और भारत के लिए कहा कि ये कैसे धर्मनिरपेक्ष देश हैं, जिन्होंने मेरे अधिकारों का हनन करने वालों को सजा तक नहीं दी और पीडि़त होने के बावजूद मैंने निर्वासन की पीड़ा झेली। तस्लीमा नसरीन का सत्र आज अचानक रखा गया। पहले यह सत्र 3:30 बजे होने की बात कही जा रही थी, लेकिन विवाद की आशंका के चलते यह सत्र तय समय से जल्दी हुआ।

तस्लीमा के विरोध में नारेबाजी, प्रदर्शन

जेएलएफ के अंतिम दिन सोमवार को एक सत्र में शामिल होने आयोजन स्थल डिग्गी पैलेस पहुंची बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को आज विरोध का भी सामना करना पड़ा। जब तस्लीमा का सत्र हो रहा था, उसी दौरान डिग्गी पैलेस के बाहर जमायते इस्लामी सहित कुछ अन्य संगठनों के लोग विरोध दर्ज कराने पहुंचे, इनमें महिलाएं भी शामिल थी। कुछ देर हंगामे के बाद पुलिस ने जेएलएफ आयोजकों के साथ प्रदर्शनकारियों की वार्ता कराई, इसमें आयोजक संजोय रॉय ने यह आश्वासन दिया कि भविष्य में तस्लीमा नसरीन और सलमान रूश्दी जैसे लेखकों को नहीं बुलाया जाएगा।


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