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महाराणा प्रताप की विजय पर इतिहासकारों ने उठाए सवाल

डीयू के ही सेंट स्टीफंस कॉलेज में मध्यकालीन इतिहास की प्राध्यापिका डॉ. तस्नीम सोहरावर्दी का कहना है कि यह तो स्पष्ट है कि इसमें महाराणा प्रताप की हार हुई थी।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Tue, 07 Feb 2017 12:53 AM (IST)Updated: Tue, 07 Feb 2017 12:58 AM (IST)
महाराणा प्रताप की विजय पर इतिहासकारों ने उठाए सवाल
महाराणा प्रताप की विजय पर इतिहासकारों ने उठाए सवाल

जागरण संवाददाता, जयपुर: राजस्थान के विश्वविद्यालयों में हल्दी घाटी युद्ध के बारे में महाराणा प्रताप की जीत का पाठ भले ही वहां के पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाए, लेकिन दिल्ली के इतिहासकार इसके पक्ष में नहीं है। अब तक इतिहास की किताबों में यह बताया जाता रहा है कि राजस्थान में अरावली की पहाडि़यों के बीच स्थित हल्दी घाटी के मैदान में मुगल बादशाह अकबर और मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के बीच 1576 में भीषण युद्ध हुआ था।

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हालांकि कवियों ने राणा प्रताप की वीरता का गुणगान किया था, लेकिन इतिहासकार बताते हैं कि करीब 15 हजार राजपूत वीरों की कुर्बानी के बावजूद मुगलों की तोपों और बंदूकों के आगे महाराणा की सेना को अपने पैर पीछे खींचने पड़े थे। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और प्रसिद्ध इतिहासकार सुनील कुमार का कहना है कि इस तरह इतिहास के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।

जरूरी है कि यदि कोई महाराणा प्रताप की जीत की बात कर रहा है तो वह इसके पीछे साक्ष्य भी रखे। इस बारे में विमर्श हो। प्राय: हार या जीत को अलग-अलग मत से परिभाषित किया जाता है, लेकिन केवल कहने से ऐसा नहीं हो सकता।

डीयू के ही सेंट स्टीफंस कॉलेज में मध्यकालीन इतिहास की प्राध्यापिका डॉ. तस्नीम सोहरावर्दी का कहना है कि यह तो स्पष्ट है कि इसमें महाराणा प्रताप की हार हुई थी। इस पर काफी काम हुआ है, लेकिन समय-समय पर सरकार अपने हिसाब से इतिहास को भी तय करने लगती है। तथ्य बताते हैं कि इस लड़ाई में अकबर की जीत हुई थी। यह भी समस्या आती है कि जिसका इतिहास से ताल्लुक नहीं है वह भी इतिहास में हस्तक्षेप करता है।

हालांकि डीयू में प्राध्यापक और मध्यकालीन इतिहास के जानकार प्रो.चंद्रशेखर का कहना है कि शोध का कोई अंत नहीं होता। शोध प्रगतिशील है। यह कहना कि इसके बाद कोई काम नहीं हो सकता यह गलत बात है।

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