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गुलजार के अनूठे अंदाज के साथ जयपुर साहित्य उत्सव का आगाज

उम्मीद के मुताबिक डिग्गी पैलेस के खचाखच भरे फ्रंट लॉन में गुलजार ने अपनी खलिश भरी आवाज में जब बात कहनी शुरू की तो सब कुछ थम गया।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 20 Jan 2017 02:01 AM (IST)Updated: Fri, 20 Jan 2017 02:10 AM (IST)
गुलजार के अनूठे अंदाज के साथ जयपुर साहित्य उत्सव का आगाज
गुलजार के अनूठे अंदाज के साथ जयपुर साहित्य उत्सव का आगाज

जासं,जयपुर । 'उबलती हांडिया इतनी, सभी में जिंदगी उबलती है, लेकिन न पकती है न गलती है ये जिंदगी यूं ही चलती है।' प्रसिद्ध गीतकार गुलजार और देश के उत्तर पूर्व से आए शिलांग चैंबर कोयर बैंड ने वंदे मातरम और पूरे देश को जोड़ने वाली ट्रेन की हलचल को अनूठे अंदाज में पेश कर दसवें जयपुर साहित्य उत्सव की यादगार शुरुआत की।

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उम्मीद के मुताबिक डिग्गी पैलेस के खचाखच भरे फ्रंट लॉन में गुलजार ने अपनी खलिश भरी आवाज में जब बात कहनी शुरू की तो सब कुछ थम गया। उन्होंने कहा, 'तकरीर करना मुझे सबसे भारी काम लगता है। अब तक मैं अपनी नज्म सुनाकर चला जाता था, लेकिन इस बार आयोजकों ने मुझे की नोट स्पीकर बना दिया।'

अपनी परेशानी को उन्होंने कुछ यूं बया किया, 'मुझे उन कुर्सियों पर बैठने से डर लगता है, जिन पर बैठने से पांव जमीन पर नहीं लगते। फूल चाहे कितनी भी ऊंची टहनी पर लग जाएं, लेकिन मिट्टी से जुड़ा रहता है तभी खिलता है। जब तक पांव मैले नहीं हो, तब तक कलम भी स्याही चखना बंद कर देती है।

सियासत मैं समझता नहीं हूं, लेकिन आम आदमी की तरह प्रभावित जरूर करती है। किसी भी एक व्यक्ति के लिए एक जमाने को बहका लेना आसान नहीं है। पूरे समाज को नहीं बहकाया जा सकता। आपका समाज से जुड़ाव जरू री है।'

उद्घाटन सत्र को अमेरिका की कवयित्री एनी वॉल्डमेन ने भी संबोधित किया। इस मौके पर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने आयोजन के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया और कहा कि इस आयोजन ने हमें भी जयपुर को सजाने-संवारने के लिए मजबूर किया है।

मेरे अंदर कुछ उबलता है, तब लिखता हूं

अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में गुलजार ने कहा, 'मैं क्या लिखता हूं और मेरे लिखने से फर्क क्या पड़ता है, यह मैं कई बार सोचता हूं, लेकिन मैं तब लिखता हूं जब मेरे अंदर कुछ उबलता है। जैसे एक चूल्हे पर रखी हांडी में कुछ उबलता है और उसकी भाप से उस पर रखा बर्तन खड़खड़ाता है। यह भाप ही मेरे लिखने का कारण बनती है।'

रुकोगे तो गिर जाओगे

गुलजार ने जमाने की रवानी को कुछ यूं बयां किया, 'एक जमाना गुजरता था कल गली से, बड़ी रफ्तार में था, मैं जरा सा हट गया कि उसे रास्ता दे दूं, मैं खुद से कह रहा हूं कि जमाना चल रहा है तुम रुकोगे तो गिरोगे।'

एक भाषा को समर्पित करें

गुलजार ने आयोजकों से कहा कि दस साल पर बधाई, लेकिन अगली बार से देश की किसी एक भाषा पर फोकस जरूर करें। उन्होंने बताया कि वह समकालीन शायरों के काम पर एक किताब लेकर आ रहे हैं और इस समय सबसे अच्छी कविता पूर्वोत्तर में लिखी जा रही है। जो जिंदगी से जुड़ी है। हमारे यहां कोई भी भाषा क्षेत्रीय नहीं है, सभी भाषाएं राष्ट्रीय हैं।

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