रविवार विशेष : रेवाड़ी
हेडिंग : यहां अशक्त बन रहे आत्मनिर्भर 12 आरईडब्ल्यू- 6 कैप्शन : शमशेर सिंह एवं सुनीता। 12 आरईड
हेडिंग : यहां अशक्त बन रहे आत्मनिर्भर
12 आरईडब्ल्यू- 6
कैप्शन : शमशेर सिंह एवं सुनीता।
12 आरईडब्ल्यू- 8
कैप्शन : विशेष उपकरणों से पढ़ाई करते स्कूल के विद्यार्थी।
क्रासर :-
-खेल के साथ दिया जाता है विभिन्न व्यवसायिक प्रशिक्षण
कृष्ण कुमार, भिवाड़ी :
मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का सहारा बने हैं एक दंपती। ये ऐसे बच्चों को खेलकूद के साथ आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। इनके सिखाए कुछ बच्चों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतकर इलाके और देश का नाम रोशन किया है। इस समय इनके पास 40 बच्चे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।
मूलरूप से रोहतक निवासी शमशेर सिंह व उनकी पत्नी सुनीता देवी ने 12 वर्ष पूर्व भिवाड़ी में मानसिक रूप से विकलाग बच्चों के लिए आस्था स्पेशल नाम से स्कूल खोला था। स्कूल में आने वाले बच्चों को स्वावलंबी बनाने के लिए मोमबत्ती बनाना, चॉक बनाना, बागवानी, हस्तकला, बुक बाइंडिंग, पेपर कटिंग, खिलौने बनाना, चित्रकला एवं ग्रीटिंग कार्ड आदि के साथ-साथ खेलकूद प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। बच्चों को कंप्यूटर का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। शमशेर सिंह बताते हैं कि वर्तमान में स्कूल में 40 बच्चों में 20 बच्चे ऐसे हैं, जो स्कूल तक पहुचने में भी असमर्थ हैं। उन्हे घर पर जाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यहा अध्ययनरत बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेल व अन्य गतिविधियों में भाग लेकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं। बच्चों को हर साल विशेष अवसर पर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से भी मिलाने के लिए ले जाया जाता है।
अमेरिका में जीता पदक
इस साल दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विशेष खेलकूद प्रतियोगिता में यहा के बच्चों ने कई पदक जीते थे। इससे पूर्व साल 2009 में छात्र रिजवान अहमद ने अमेरिका में आयोजित शीतकालीन अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता था। इस उपलब्धि पर रिजवान व स्कूल को तत्कालीन राज्य सरकार ने सम्मानित भी किया था। अमेरिका भेजने से पहले रिजवान को हिमाचल प्रदेश में प्रशिक्षण दिलवाया गया, ताकि अमेरिका के वातावरण के अनुरूप स्वयं को ढाल सके।
होती है मानसिक जाच
स्कूल में प्रवेश देने से पहले इन बच्चों की मानसिक जाच करवाई जाती है जिससे उनके बौद्धिक स्तर का पता चल सके। इसके आधार पर इन बच्चों के पाठ्यक्रम तय किए जाते हैं। संस्था में मानसिक विकलाग व मूकबधिर बच्चों को सुव्यवस्थित विशेष पाठ्य प्रणाली के तहत प्रशिक्षित शिक्षकों के जरिए शिक्षा प्रदान की जाती है।
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