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मिट्टी में लुप्त हो रही सफेद संगमरमर की बारादरी

मनदीप कुमार, संगरूर रियासत के हर राजा की ख्वाहिश होती है कि वह अपने राजकाल में अप

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Aug 2017 08:44 PM (IST)Updated: Sat, 05 Aug 2017 08:44 PM (IST)
मिट्टी में लुप्त हो रही सफेद संगमरमर की बारादरी
मिट्टी में लुप्त हो रही सफेद संगमरमर की बारादरी

मनदीप कुमार, संगरूर

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रियासत के हर राजा की ख्वाहिश होती है कि वह अपने राजकाल में अपनी रियासत में कुछ ऐसे धरोहर का निर्माण करे, जिसे देखकर लोग सदियों तक उसे याद करें। ऐसी ही एक खूबसूरत निशानी जींद रियासत के राजा रघवीर ¨सह ने संगरूर शहर के बीचोंबीच अपने किले के सामने सफेद संगमरमर की बारादरी के रूप मे स्थापित की। संगमरमर की चमक और चारों तरफ उगे खुशबूदार फूलों की महक बारादरी की खूबसूरती की एक मिसाल थी, जिसकी चर्चा न जींद रियासत ही नहीं बल्कि अन्य रियासतों सहित लाहौर तक थी। कलाकृति का अनमौल नमूना माने जाने वाली बारादरी की खूबसूरती को समय के साथ ही ग्रहण लग गया। रियासत खत्म होते-होते आज बारादरी केवल सफेद पत्थर का नमूना ही बनकर रह गई है। बारादरी के दरवाजों पर लटके तालों ने लोगों के मन में इसे देखने की चाहत को दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया है।

राजस्थानी व मुगल आर्ट का नमूना:-

सन 1850 में संगरूर शहर का अस्तित्व आरंभ हुआ व राजा रघवीर ¨सह ने बनासर बाग के बीच में लाहौर की बारादरी की तर्ज पर बारादरी का निर्माण करवाने का फैसला लिया। बारादरी के लिए मकराना से सफेद संगमरमर मंगवाया गया व खास तौर पर कारीगरों को बारादरी के निर्माण के लिए बुलाया गया। करीब 10 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद सफेद संगमरमर की बारादरी का निर्माण संपन्न हुआ। बारादरी की दीवारों पर पत्थर की जालियों पर राजस्थानी व मुगल आर्ट से इसकी कलाकृतियां तैयार की गई। कलाकारी की बेशकीमती नमूना बनकर उभरी यह बारादरी जींद रियासत सहित लाहौर तक की रियासतों में इसकी खूबसूरती की कोई अन्य मिसाल नहीं थी।

- टूट चुकी हैं सीढियां, जालियां व सफेद पत्थर भी पड़ा पीला:-

सफेद संगमरमर की इस बारादरी तक पहुंचने के लिए सीढि़यां भी टूट चुकी हैं व इसकी दीवारों पर लगी जालियां भी जगह-जगह से टूटी हुई है। किसी समय में अपने सफेद रंग से चमकाने वाली बारादरी का रंग भी अब पीला पड़ चुका है, क्योंकि कई दशकों से न तो इसकी सफाई हुई है तथा न ही इसकी चमक को बनाए रखने के लिए संबधित विभाग ने कोई कदम उठाया।

- खास किस्म के लगवाए थे फूल, रानियां करती थी स्नान:-

रियासत के समय में रानियां इस जगह पर स्नान किया करती थी, जहां पर केवल राजा को ही रानियों के साथ जाने की इजाजत थी, इसके अलावा बारादरी के चारों तरफ पर्दे लगा दिए जाते थे। राजा अपने किले से निकलकर एक लकड़ी के पुल के माध्यम से बारादरी के बीच पहुंचते थे, जिनके पहुंचने के बाद लकड़ी के पुल को हटा दिया जाता था,. ताकि कोई अन्य वहां तक न पहुंच सके। स्नान के लिए फूल, केवड़ा, चंदन सहित अन्य खुशबूदार सामग्री का प्रबंध किया जाता था।

- वर्षों पहले चलाई किश्ती टूटी, बंद पड़ा है फव्वारा

प्रशासन ने करीब 7 वर्ष पहले यहां पर अस्थायी तौर पर कश्तियां चलाकर वो¨टग का प्रबंध किया गया था, ताकि पर्यटकों को बारादरी देखने के लिए आकर्षित किया जा सके, लेकिन कुछ माह के बाद ही यह व्यवस्था भी डगमगा गई। कश्तियां अब बारादरी के एक कोने में पड़ी कबाड़ बन चुकी हैं, जबकि वर्ष 2013 में ¨थक टैंक बनाकर लगाए फुव्वारे की भी मोटर खराब होने के बाद से वह बंद पड़ा है।

- सिद्धू के आदेशों के बाद भी नहीं खुले ताले:-

मई माह में कैबिनेट मंत्री नवजोत ¨सह सिद्धू भी पंजाब भर की विरासती धरोहरों की संभाल के लिए सरकार की नई नीति बनाने के उद्देश्य से यूनेस्को की टीम के साथ बारादरी व बनासर बाग को देखने के लिए पहुंचे। जहां बारादरी को लगे ताले देखकर उन्होंने भी ताले खोलने के लिए प्रशासन को कहा था, लेकिन अभी तक भी उनके आदेश पर अमल नहीं हुआ।

- बारादरी के लिए आए थे करोड़ों, लटका है काम:-

बारादरी की खूबसूरती को दोबारा बहाल करने के लिए पूर्व सांसद विजय इंद्र ¨सगला ने अपने कार्यकाल के दौरान करोड़ों रुपये विरासती धरोहरों की संभाल व इनकी मरम्मत के लिए जारी करवाए थे, लेकिन इसके बावजूद काम अधर में ही लटक गया। बारादरी की छत की मरम्मत करवाई गई। इसकी सीढि़यों का पुन:निर्माण, टूटी संगमरमर की जालियों पर कलाकारी करके उन्हें दोबारा लगवाने का काम करवाया जाना था, लेकिन केवल छत की मरम्मत के बाद से कम पिछले कई वर्षों से बंद पड़ा है।

- रियासती धरोहर को सरकार से मदद की दरगार:- ¨जदल

संगरूर के रियासती धरोहर को बचाने के लिए प्रयास कर रहे संगरूर विरासत व संरक्षण सोसायटी के चेयरमैन राजीव ¨जदल ने कहा कि संगरूर का इतिहास बेशकीमती है, यदि इनकी संभाल के लिए सरकार प्रयास करे तो इसे पर्यटक स्थल के तौर पर उभारा जा सकता है। जिससे न केवल आने वाली पीढ़ी के लिए यह देखने योग्य स्थल होंगे, बल्कि रियासती धरोहरों अपनी शान को बरकरार रखने में सफल रहेंगे।

- इतिहास रियासत जींद के लेखक कृष्ण बेताब ने कहा कि ऐसे धरोहर का निर्माण आज के समय में मुमकिन नहीं है। सरकारों की अनदेखी के कारण संगरूर निवासियों ने जींद रियासत की काफी बेशकीमती निशानियां खो दी है। कुछ ही निशानियां बची है, यदि इन्हें बचाने के लिए प्रयास न किया गया तो आने वाली पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए कोई निशानी नहीं होगी।

- संगरूर विरासत व संरक्षण सोसायटी के चेयरमैन करणवीर ¨सह सीबिया ने कहा कि वह इन धरोहर को बचाने के लिए संबंधित विभाग सहित सरकार तक पहुंच कर रहे हैं। मौजूदा सरकार भी इन धरोहर को बचाने के लिए जल्द ही नीति बनाने का भरोसा दिला रही है। यदि इनकी संभाल के लिए सरकार फंड मुहैया करवाए तो इन धरोहर की खत्म हुई खूबसूरती को फिर से चमकदार बनाया जा सकता है।

छोटी आयु से ही देखते आ रहे हैं इसे

- वकील समीर फत्ता का कहना है कि वह छोटी आयु से ही इन धरोहरों को देखते आ रहे हैं, लेकिन समय के साथ इनके साथ सरकार के लापरवाही भरे रवैये ने इन्हें खंडहर में तबदील कर दिया है। वह चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी के लिए सरकार इन धरोहर की संभाल का प्रयास करे।


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