मुनि जी की शिक्षाएं कर रही जीवन को रोशन
कुशलकांत जैन, मूनक (संगरूर)
समग्र उत्तर भारत की आस्थाओं के केंद्र सिद्धांतों के अटल स्तंभ, शासन प्रभावक सुदर्शन लाल जी महाराज का भौतिक शरीर यद्यपि हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका महान जीवन व अनुभवपूर्ण शिक्षाएं आज भी हमारे जीवन को रोशन कर रही हैं। 15 वर्ष पूर्व 25 अप्रैल, 1999 को उनका दिल्ली शालीमार में देवलोक गमन होने पर जो रिक्तता जैन समाज में हुई, वह कभी पूर्ण नहीं हो सकती।
उनका जन्म 4 अप्रैल, 1923 को हरियाणा के रोहतक शहर में हुआ। उनके पिता लाला चंदगी राम अपने समय के जाने माने वकील थे। अपनी पूजनीय माता सुंदरी देवी का बिछोड़ा उन्हें अल्प आयु में ही सहना पड़ा। अति मेधावी होने के कारण उन्होंने मैट्रिक में पढ़ते हुए इंग्लिश इक्नोमिक्स की दसवीं कक्षा के स्तर की पुस्तकें भी लिखीं। उनके पिता उन्हें बचपन में ईश्वर कहकर पुकारते थे तथा उन्हें न्यायाधीश बनाना चाहते थे। मगर, उनकी रूचि धर्म ध्यान, त्याग व आत्म कल्याण की थी। उनकी वैराग्य भावना बढ़ने के कई कारण थे। दादा जग्गूमल की दीक्षा व गहन आत्म चितंन करने के बाद उन्होंने संन्यास का मार्ग चुना। उन्होंने 18 वर्ष में 18 जनवरी, 1942 को जैन धर्म के मूर्धन्य संत प्रवर नवयुवक सुधारक व्याख्यान वाचस्पति गुरुदेव मदल लाल जी महाराज के चरणों में जैनमुनि की दीक्षा संगरूर में ग्रहण की। उनकी प्रेरणा से स्थान-स्थान पर चमड़े से बनी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ। विवाह में फिजूल खर्च एवं फूलों की सजावट पर रोक लगाकर उन्होंने नव धनाढ्य लोगों को पथभ्रष्ट होने से बचाया। वर्ष1963 में गुरुदेव मदन लाल जी महाराज के देवलोक गमन के बाद उन्हें मुनि संघ का संचालक बनाया गया।
25 अप्रैल, 1999 को दिल्ली शालीमार बाग में उनका अचानक देवलोक गमन हो गया। इसके बाद उनके द्वितीय शिष्य महाप्रतापी शास्त्री श्री परम चंद्र जी महाराज सकल मुनि संघ के संघनायक बने। जैन प्रवक्ता कांत जैन व अंशुल जैन ने बताया कि मूनक के सीमावर्ती क्षेत्र टोहाना में गुरुदेव के शिष्य एवं संघनायक जी के सेवाभावी श्री आदीश मुनि जी महाराज एवं श्री अजय मुनि जी महाराज जैन समाधि पर 25 अप्रैल को गुरु गुणगान दिवस के रूप में मनाएंगे।