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पराक्रमी योद्धा महाराणा प्रताप का चरित्र धारण करने की जरूरत

सुभाष शर्मा, नंगल शौर्य भूमि मेवाड़ को धन्य ही कहा जा सकता है जहां वीरता और दृढ़

By JagranEdited By: Published: Sat, 27 May 2017 06:07 PM (IST)Updated: Sat, 27 May 2017 06:07 PM (IST)
पराक्रमी योद्धा महाराणा प्रताप का चरित्र धारण करने की जरूरत
पराक्रमी योद्धा महाराणा प्रताप का चरित्र धारण करने की जरूरत

सुभाष शर्मा, नंगल

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शौर्य भूमि मेवाड़ को धन्य ही कहा जा सकता है जहां वीरता और दृढ़ संकल्प वाले महाराणा प्रताप जी का जन्म हुआ। उन्होंने धर्म एवं स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान देते हुए इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। आज उनकी 478वीं जयंती है। विक्रमी संवत केलेंडर के अनुसार प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष तृतीय को जयंती मनाकर आवाम को यह बताया जाता है कि आज भी सभी को महाराणा प्रताप जी जैसा चरित्र धारण करने की जरूरत है। समाज के राजपूत बंधुओं ने जयंती पर कुछ इस तरह से उन्हें याद करते हुए मानवता को संदेश दिया है।

दास्तां कबूल नहीं की महाराणा ने

महाराणा प्रताप जी के सिद्धांतों को क्रियात्मक रूप से अपनाने की जरूरत है। संघर्षमयी बचपन में महाराणा प्रताप ने मानवता के लिए जुल्म के खिलाफ दास्तां को कबूल नहीं किया। सदैव बलिदान करने को तत्पर रहने वाले महाराणा प्रताप जी महान सेनानी थे। उनके ऐसे बलिदानों से नई पीढ़ी को अवगत होना बहुत जरूरी है। इस लिए आज उनकी जयंती मनाकर नई पीढ़ी को कौम व देश के प्रति संस्कारित करने का प्रयास किया जा रहा है।

संजीव राणा

पार्षद, नगर कौंसिल, नंगल।

शौर्यता से अकबर भी था प्रभावित

महाराणा प्रताप ने युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में जीवन जीने के बाद मेहनत के साथ नया नगर बसाया, जिसे चावंड नाम दिया गया। मुगल राजा अकबर ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वो महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर सका। उनकी शौर्यता से अकबर भी प्रभावित था। महाराणा प्रताप ने जीते-जी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया। विकट स्थिति में भी धैर्य के साथ आगे बढ़ते रहे।

युद्धवीर परमार,

अध्यापक, नंगल।

महाराणा के सिद्धांत ले जा सकते हैं तरक्की की ओर

भारत माता के सपूत महाराणा प्रताप ने समूची मानवता व देश की रक्षा के लिए जिस तरह से कई कष्ट उठाते हुए भूखे प्यासे रह कर मानवता की सेवा की है, इसलिए ही आज उन्हें याद करने के लिए जयंती मनाई जा रही है। उनके सिद्धांत समाज के लिए एक ऐसा मार्गदर्शन है, जो देश को तरक्की की ओर ले जा सकते हैं।

रण बहादुर सिंह,

उपप्रधान,

राजपूत महासभा, पंजाब।

धूल चटा दी थी अकबर के सैनिकों को

महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुए हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने 20 हजार सैनिकों के साथ अकबर के 85 हजार सैनिकों को धूल चटा दी थी। 81 किलो वजन का भाला व 72 किलोग्राम वाला छाती के कवच के साथ-साथ उनका सबसे प्रिय घोड़ा चेतक उनके शौर्य की अहम पहचान थे। युद्ध के दौरान मुगल सेना जब पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठा कर कई फीट लंबे नाले को पार किया। इसके बाद चेतक दम तोड़ गया। आज भी हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है।

दिलबाग परमार,

अध्यक्ष, वरूण देव मंदिर, नंगल।

लोहार जाति के हजारों लोगों ने घर छोड़ दिया था साथ

आज भी महाराणा प्रताप की तलवार, कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। महाराणा ने जब महलों का त्याग किया था तब उनके साथ लोहार जाति के हजारों लोगों ने अपना घर छोड़ा और दिन-रात राणा जी की सेना के लिए तलवारें बनाई। ऐसे लोगों को भी नमन है जिन्होंने स्वाधीनता की लड़ाई में महाराणा प्रताप जी का घर बार छोड़ का साथ दिया।

विक्रांत परमार,

पार्षद, नगर कौंसिल, नंगल।

अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की

महाराणा के देहांत पर राजा अकबर भी रो पड़ा था। अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधे ¨हदुस्तान के वे वारिस होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी। मगर महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया। महाराणा एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिकों को काट डालते थे। पराधीनता स्वीकार न करते हुए व जीवन भर अकबर से लोहा लेते रहे।

देवेंद्र ठाकुर,

समाज सेवक, नंगल।

महाराणा प्रताप जी का जीवन परिचय

जन्म - 9 मई, 1540 ईसवी।

जन्म स्थान--कुंभलगढ़ राजस्थान।

पिता--महाराणा उदय सिंह।

माता--रानी जयवंता बाई।

राज्य सीमा--मेवाड़।

युद्ध--हल्दी घाटी का युद्ध

राज घराना--राजपुताना।

वंश--सूर्यवंश

राजवंश--सिसोदिया

घोड़ा---चेतक।


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