सीवरेज प्रोजेक्ट राम भरोसे, जिम्मेवारी लेने के लिए कोई नहीं तैयार
28 आरपीआर 42 संवाद सहयोगी, नूरपुरबेदी विश्व बैंक की योजना के तहत करीब पौने दो करोड़ की लागत से
28 आरपीआर 42
संवाद सहयोगी, नूरपुरबेदी
विश्व बैंक की योजना के तहत करीब पौने दो करोड़ की लागत से बना गांव अबियाणा कलां और खुर्द का सीवरेज प्रोजेक्ट राम भरोसे चल रहा है। इस प्रोजेक्ट को चलाने की जिम्मेवारी लेने के लिए भी कोई पक्ष तैयार नहीं है।जिस करके यह प्रोजेक्ट लोगों के लिए श्राप बनने लगा है। जानकारी के अनुसार अबियाणा के दोनों गांवों के पानी की निकासी को सही से चलाने के लिए यह प्रोजेक्ट सेनिटेशन और जल सप्लाई विभाग द्वारा विश्व बैंक की योजना के अंतर्गत बनाया गया था, जिसे प्रति घर से 50 रुपये महीने के हिसाब से बिल लेकर चलाया जाना था। लेकिन बीते तीन-चार साल से इस प्रोजेक्ट का ज्यादातर काम पूरा होने के बावजूद भी इसकी जिम्मेवारी कोई नहीं ले रहा है। जबकि जिम्मेवारी किसी के हवाले न होने के कारण सीवरेज का पानी रूकने लगा है तथा लोगों के घरों में जमा होना शुरू हो गया है। गांव अबियाणा खुर्द की रतनी देवी पत्नी स्वर्गीय रतन चंद ने बताया कि पानी की निकासी सही न होने के कारण उनके घर और आस-पास पानी जमा होने लगा है, जिस करके बीमारियां फैलने तथा मकानों को नमी आकर गिरने का खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में वह संबंधित विभाग के अधिकारियों और पंचायत को भी सूचित कर चुके हैं लेकिन कोई हल नहीं किया गया।
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गांव अबियाणा खुर्द के पूर्व सरपंच शीतल ¨सह ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के ठेकेदार ने काम पूरा नहीं किया था और अनेकों घरों को सीवरेज के कनेक्शन नहीं दिए गए हैं। ठेकेदार बिना काम पूरा किए ही लोगों के पैसे मार कर चला गया है। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट को जहां मुकम्मल करने की जरूरत है वहीं, गांव वासी सीवरेज का बिल देना नहीं चाहते। गांव वासियों की मांग है कि प्रोजेक्ट को पंजाब सरकार अपने खर्चे पर चलाए।
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गांव अबियाणा कलां की सरपंच और सीवरेज प्रोजेक्ट कमेटी की चेयरपर्सन हरबंस कौर ने कहा कि काम पूरा न होने के कारण इस प्रोजेक्ट का चार्ज पंचायत ने नहीं लिया था। जबकि ठेकेदार भी काम अधूरा छोड़ कर चला गया है। उन्होंने कहा कि संबंधित विभाग ही इसके काम को देख रहा है।
इस संबंधी सेनिटेशन और जल सप्लाई विभाग के एसडीओ रमनप्रीत ¨सह ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को संबंधित गांवों की पंचायत द्वारा गांव वासियों के सहयोग से चलाना था। उन्होंने कहा कि जैसे-तैसे इसको 3-4 साल चलाया गया लेकिन विभाग के पास इस प्रोजेक्ट के लिए पैसा न होने के कारण इसको और चलाना मुश्किल है।