Move to Jagran APP

गुरमति प्रचार का प्रतीक गुरुद्वारा श्री कुष्ट निवारण साहिब

सुभाष शर्मा, भनुपली (नंगल) शिवालिक पहाड़ियों की पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में स्थित गांव दड़ौली के निक

By Edited By: Published: Thu, 05 Mar 2015 01:01 AM (IST)Updated: Thu, 05 Mar 2015 01:01 AM (IST)
गुरमति प्रचार का प्रतीक गुरुद्वारा श्री कुष्ट निवारण साहिब

सुभाष शर्मा, भनुपली (नंगल)

loksabha election banner

शिवालिक पहाड़ियों की पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में स्थित गांव दड़ौली के निकट गुरुद्वारा श्री कुष्ट निवारण भातपुर साहिब को छेवीं पातशाही श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी का चरणस्पर्श प्राप्त है। गुरु साहिब ने मानवता के लिए लड़े युद्घों के उपरांत गुरमति प्रचार के लिए इस क्षेत्र को चुना।

13 मग्घर 1683 विक्रमी संवत को कोटकहलूर के राजा तारा चंद से बहुत सारी भूमि लेकर 13 हाड़ विक्रमी संवत 1684 को कीरतपुर शहर बसाने के लिए शिलान्यास किया। बाबा गुरदित्ता जी को शहर आबाद करने का आदेश देकर सच्चे पातशाह गुरसिखी के प्रचार के लिए दोआबा व मालवा के गांवों की ओर चल दिए। गुरु जी सिंहों सहित कपूरथला, जालंधर, हरगोबिन्दपुर, करतारपुर, होशियारपुर आदि इलाकों का भ्रमण करते हुए भक्तों को गुरु उपदेशों व कीर्तनों द्वारा लंबे समय तक निहाल करते रहे। गरना साहिब स्थान से होते हुए हिमाचल के ऊना के बाद वे गांव दड़ौली (भातपुर साहब) की पहाड़ी पर आ बिराजे। यहां घने जंगल होने के कारण शेर, चीते, हाथी आदि जानवरों की तादात बहुत थी जिसके कारण इस इलाके को हथोथ कहा जाता था।

यहां कई दिन ठहरने के बाद जब गुरु जी कीरतपुर साहिब जाने के लिए तैयार हुए तो उन्होंने संगत को हुक्म दिया कि आप ने गुरु जी की सेवा की है यदि किसी की कोई मांग है तो वे बताए, जहां के कुटुम्ब का प्रमुख भाई भरता था जिसे शुरू से ही कोहड़ (कुष्ट रोग) था, दोनों हाथ जोड़ कर अपने कोहड़ को दूर करने की प्रार्थना गुरु साहिब से करने लगा। तब गुरु जी ने कहा कि आप लोगों पर गुरु नानक देव जी की कृपा दृष्टि हुई है व आपका यह रोग दूर हो जाएगा।

गुरु जी ने उन्हे मांस, मछली का त्याग करने का भी आदेश दिया। भाई भरता व संगत ने देखा कि कुष्ट रोग दूर होकर शरीर हृष्टपुष्ट हो गया। आज भी इस खानदान का कोई व्यक्ति मांस, मछली नहीं खा सकता यदि खाता है तो उसके शरीर से कुष्ट रोग फूट पड़ता है। बताया जाता है कि इसके बाद गुरु जी कीरतपुर साहिब की ओर चले गए और कुष्ट रोग से मुक्त हुए भाई भरता जी के नाम पर इस पवित्र स्थल का नाम श्री कुष्ट निवारण भातपुर साहिब रख दिया गया। आज यह स्थल इस तरह का सुन्दर स्थल बन चुका है जहां आकर मन को सच्ची शांति मिलती है। वर्ष के माघी की संग्राद, अस्सु की संग्राद व पातशाही छेवीं का प्रकाश पर्व विशेष रूप से मनाए जाते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.