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पंजाब के पानी से लहलहाई हरियाणा व राजस्थान की खेती, अपना कृषि रकबा घटा

पिछले 50 साल से पंजाब से मुफ्त मिल र‍हे पानी से हरियाणा अौर राजस्थान का कृषि क्षेत्र लहलहा गया, लेकिन खुद पंजाब पिछड़ गया। राज्‍य मेें नहरी जल सिंचित खेती का रकबा घट रहा है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 25 Feb 2017 11:15 AM (IST)Updated: Sat, 25 Feb 2017 11:59 AM (IST)
पंजाब के पानी से लहलहाई हरियाणा व राजस्थान की खेती, अपना कृषि रकबा घटा
पंजाब के पानी से लहलहाई हरियाणा व राजस्थान की खेती, अपना कृषि रकबा घटा

पटियाला, [प्रदीप शाही]। राइपेरियन राज्य पंजाब के पानी से हरियाणा और राजस्थान तो खुशहाल हो गए, लेकिन पंंजाब खुद पिछड़ गया। पानी को लेकर चल रहे विवाद के बीच कृषि विभाग की रिपोर्ट ने इस ओर ध्यान खींचा है। बीते 50 साल में पंजाब से हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान को हर साल दिए जा रहे 22 हजार करोड़ रुपये के निशुल्क पानी के चलते पंजाब में फसली क्षेत्र का रकबा कम हो गया है, जबकि हरियाणा व राजस्थान के रकबे में वृद्धि हुई है।

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50 साल में इन राज्यों को 15 लाख करोड़ रुपये की राशि का पानी निशुल्क दिया जा चुका है। इससे पंजाब में नहरी सिंचाई वाले फसली क्षेत्र का रकबा 43.4 फीसद से कम होकर 28 फीसद रह गया है। हरियाणा और राजस्थान का कुल 56.7 फीसद क्षेत्र बढ़ कर 72 फीसद हो गया है।

हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान को 50 साल में दिया 15 लाख करोड़ का निशुल्क पानी

गौरतलब है कि महाराजा पटियाला की रियासत के समय पंजाब के पानी का मूल्य लिया जाता था। आजादी से पहले बीकानेर रियायत को गंग नहर से पानी दिया जाता था। इस पानी की एवज में बीकानेर रियासत पंजाब को कीमत चुकाती थी। इतना ही नहीं महाराजा पटियाला के कहने पर जब 1873 में सरहिंद नहर निकाली गई तो पटियाला, नाभा, जींद व मालेरकोटला रियासत को पानी मूल्य पर दिया जाता था।

रोजाना 100 क्यूसिक पानी की लीकेज

सेंट्रल वाटर एंड पावर कमिशन ने माधोपुर हेड वर्क्स के लोहे के गेट पुराने होने के कारण अनुमान लगाया है कि रोजाना 100 क्यूसिक पानी इन गेटों से लीक होकर रोजाना पाकिस्तान जा रहा है और 100 क्यूसिक पानी की कीमत 100 करोड़ रुपये सालाना आंकी गई। वहीं 50 वर्ष में राजस्थान नहर, सरहिंद नहर, गंग नहर और भाखड़ा की दो नहरों से अब तक राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली को हर वर्ष लगभग 22000 करोड़ रुपये का पानी पंजाब से जा रहा है। ऐसे में इसकी कुल कीमत 15 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा बनती है।

13 से घट कर 11 लाख हेक्टेयर रह गया नहरी सिंचाई वाला रकबा

प्रदेश कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 1969-70 में पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में नहरों से सिंचित कुल 30 लाख हेक्टेयर भूमि में 13 लाख हेक्टेयर रकबा अर्थात 43.4 फीसद रकबा पंजाब का था। साल 2010-11 में घट कर महज लगभग 11 लाख हेक्टेयर रह गया है। दूसरी तरफ साल 1969-70 में हरियाणा और राजस्थान, दोनों राज्यों का 17 लाख हेक्टेयर रकबा नहरी ङ्क्षसचाई अधीन था।

ये तीनों राज्यों के नहरी सिंचाई अधीन कुल रकबे का 56.7 फीसद बनता था। 2010-11 में यह बढ़ कर 28.56 लाख हेक्टेयर हो गया, जो नहरी सिचांई अधीन कुल रकबे का 72 फीसद हो चुका है, जबकि राइपेरियन पंजाब राज्य का नहरी सिंचाई दो लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबा कम हो गया है। गैर रापेरियन पड़ोसी राज्यों का साढ़े ग्यारह लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबा बढ़ गया है।

ट्यूबवेलों की संख्या लाखों में पहुंची

एक तरफ पंजाब में खेती का रकबा कम हो रहा है, दूसरी ओर ट्यूबवेलों की संख्या बढ़ रही है। ट्यूबवेलों की गिनती जो कि 1965-66 में केवल 26000 थी, अब 2014-15 में 14 लाख को पार कर चुकी है। इनकी संख्या निरंतर बढ़ रही है। साल 2010-11 में नहरी सिंचाई अधीन रकबा केवल 27.4 फीसद रह गया है।

ट्यूबवेलों से सिंचाई के अधीन कुल रकबा 28.35 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 40.70 लाख हेक्टेयर हो गया, जबकि नहरों के अधीन सिंचाई वाला रकबा लगभग 2 लाख हेक्टेयर कम हो गया। पंजाब सरकार हर साल किसानों को मुफ्त बिजली देने पर तकरीबन 7000 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। वहीं, किसानों को अपने टयूबवेल चलाने के लिए हजारों करोड़ रुपये डीजल पर खर्च करने पड़ रहे हैं।

राज्य में 1.5 लाख करोड़ भूमि खेती योग्य

पंजाब में एक करोड़ पांच लाख एकड़ के करीब कृषि योग्य भूमि है और दो फसलें सालाना होती हैं। इसमें से 98 फीसद सिंचाई योग्य है। केवल धान की फसल के अधीन लगभग 75 लाख एकड़ रकबा है। कृषि विश्‍वविद्यालय के अनुसार, धान की फसल की सिंचाई के लिए प्रति एकड़ पांच फीट पानी की जरूरत है। ऐसे में पंजाब को लगभग पांच करोड़ एकड़ फीट पानी खेतीबाड़ी के लिए चाहिए।

केंद्र सरकार सही ढंग से फैसला करे: डॉ. गांधी

सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी का कहना है कि कहा कि 29 जनवरी 1955 को उस समय के केंद्रीय सिंचाई और ऊर्जा मंत्रालय की राजस्थान को 80 लाख एकड़ फीट पानी देने का फैसला किया गया था। इसी बैठक में यह भी फैसला लिया गया था कि पानी का मूल्य लेने के बारे में बाद में अलग बैठक करके फैसला लिया जाएगा, लेकिन इस पर फैसला नहीं किया गया।


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