पाप समझ नवजात को छोड़ा, आखिर अपनाना पड़ा
राज बटोआ, बंगा
मुकंदपुर में सोमवार को अपना पाप छिपाने के लिए नवजात बच्चे को मरने के लिए झाड़ियों में छोड़ दिया गया। खुशकिस्मती यह रही कि गांव के कुछ लोगों ने बच्ची को सिविल अस्पताल पहुंचा दिया। फिर पुलिस के दखल के बाद आखिरकार इस नासमझ औरत को बच्ची को अपनाना ही पड़ा। नवजात बच्ची को झाड़ियों में मरने के लिए छोड़ देने वाली महिला की की सास के अनुसार उसका विवाह तीन महीने पहले ही हुआ था, लेकिन सिविल अस्पताल मुकंदपुर के डॉक्टरों की मानें तो बच्ची का जन्म पूरे नौ माह के गर्भ के बाद हुआ है।
बखलौर की महिला ने बताया कि वह अपनी बहू को दवा दिलाने मुकंदपुर आ रही थी, मगर गांव के ही बस स्टैड पर बहू अचानक शौच का बहाना बनाकर ग्राउंड की झाड़ियों में गई। फिर बस में आकर बैठ भी गई। सास के अनुसार थोड़ी देर बाद उसने देखा कि उसकी बहू के कपड़े तो खून से लथपथ हो गए। इस हालत को देख हैरान हुई बस की सवारियां ने उसे सिविल अस्पताल मुकंदपुर ले गई। वहां पहुंची नवजात बच्ची के मामले की कड़ियां उस वक्त अपने-आप जुड़ती चली गई, जब महिला का चेकअप किया गया और पता चला कि कुछ देर पहले इसका प्रसव हुआ है। बच्ची को अस्पताल लाने वाले लोगों ने बताया कि इसे बखलौर बस स्टैंट की झाड़ियों पाया गया है।
उधर अस्पताल प्रशासन ने मुकंदपुर पुलिस को सूचित किया। औड़ पुलिस चौकी की पुलिस सिविल अस्पताल मुकंदपुर में पहुंची। चौकी इंचार्ज विक्रमजीत सिंह के अनुसार अस्पताल में दाखिल महिला ने यह कबूल कर लिया कि उस बच्ची को उसी ने जन्म दिया है। उसने दबाव के बाद बच्ची को अपना भी लिया है। इसी के चलते अब और कोई कार्रवाई नहीं की जा रही।
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मां मैं पाप नहीं तेरी किस्मत हूं, तभी तो पहले पहुंच गई
मुकंदपुर/बंगा: सिविल अस्पताल मुकंदपुर में सोमवार को एक नवजात बच्ची को लाया। फिर भगवान के रहम-ओ-करम से बच्ची के जन्म और महिला के गंभीर हालत में अस्पताल पहुंचने की कड़ी जुड़ती चली गई। हुआ यूं कि बखलौर के बस स्टैंड पर लोगों ने झाड़ियों की तरफ से किसी शिशु के रोने की आवाज सुनी। जाकर देखा तो नवजात बच्ची को किसी पापिन ने अपना पाप छिपाने के लिए इसे वहां मरने के लिए छोड़ दिया था। बच्ची को मुकंदपुर के सिविल अस्पताल में पहुंचाया। चंद लम्हों के बाद इसी अस्पताल में एक महिला को भी गंभीर हालत में लाया गया। चेकअप में साफ हुआ कि कुछ ही देर पहले इसने किसी बच्चे को जन्म दिया है। यह महिला भी बखलौर की रहने वाली थी और नवजात को भी बखलौर से यहां लाया गया था। जैसे-तैसे लोगों व पुलिस के दबाव के बाद महिला ने स्वीकार कर लिया कि बखलौर के बस स्टैंड पर उसी ने यह पापकर्म किया था। मुकंदपुर के सिविल अस्पताल में लाई गई यह बच्ची रो-रोकर शायद यही बात अपनी इस नासमझ मां को समझाना चाहती थी कि गलती तूने की है। मेरा कोई कसूर भी नहीं था, फिर भी मुझे मरने के लिए वहां छोड़ दिया। मां! मैं पाप नहीं, तेरी किस्मत हूं। तभी तो तेरे आने से पहले यहां पहुंच गई। वैसे भी सदियों से भ्रूण-हत्या करने वालों को 'नन्ही करुण पुकार' यही तो समझाने की कोशिश करती है, लेकिन फिर भी न जाने क्यों समझ में नहीं आ रहा। पिछले कुछ दिनों से सरकारी सख्ती और समाजसेवियों के प्रयासों के चलते भले ही लिंगानुपात थोड़ा सुधरा-सुधरा सा नजर आता है, लेकिन जरूरत है हर आदमी को दिल से बाप और मां बनने की। अपने किए को पाप नहीं अपनी किस्मत समझने की।
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फैक्ट फाइल
2001 की जनगणना के अनुसार
-6 साल तक के बच्चों में 808 लड़कियां प्रति 1000 लड़के
-सामान्य लिंगानुपात 914 प्रति 1000
2011 की जनगणना के अनुसार
-6 साल तक के बच्चों में 885 लड़कियां प्रति 1000 लड़के
-सामान्य 954 प्रति 1000