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मिट्टी का तवा विदेश में मनवा रहा लोहा

संडे स्पेशल -थोड़े से पैसों में घर पर भी मिलने लगा तंदूरी रोटी का स्वाद -हड़प्पा सभ्यता फिर होने

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Mar 2017 01:01 AM (IST)Updated: Sun, 26 Mar 2017 01:01 AM (IST)
मिट्टी का तवा विदेश में मनवा रहा लोहा
मिट्टी का तवा विदेश में मनवा रहा लोहा

संडे स्पेशल

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-थोड़े से पैसों में घर पर भी मिलने लगा तंदूरी रोटी का स्वाद

-हड़प्पा सभ्यता फिर होने लगी ¨जदा, शुद्धता पर डॉक्टरों ने भी लगाई मुहर

-मिट्टी के बर्तनों ने मॉर्डन किचन में भी बनाया स्थान

विनय शौरी, मोगा : करीब तीन दशक पहले तक ग्रामीण इलाकों में दही से मक्खन बनाने के लिए मटका, साग या दाल बनाने को मिट्टी की हांडी का प्रयोग होता रहा है। साधारण पानी पीने के शौकीन कुछ लोग पीने के पानी का प्रयोग मिट्टी के मटके द्वारा करते रहे हैं। मिट्टी के बर्तनों को कभी मॉर्डन रसोई में स्थान नहीं मिल पाया है। मोगा के रहने वाले ¨मटू कुमार ने राजस्थान में मिट्टी के तवे का आइडिया लिया और उसने इसे अपने रोजगार बना लिया। ¨मटू के साथ उसके पांच रिश्तेदार भी इसी धंधे को अपनाते हुए मिट्टी के कई बर्तनों को आधुनिक रंग व रूप देकर मॉर्डन रसोई में स्थान दिलाने में सफल हो चुके हैं। इन दिनों बीकानेरी स्पेशल मिट्टी से बने तवे स्वदेशी रोटी के साथ-साथ विदेशी रोटियों का जायका बढ़ाने में बेहद पसंद किए जा रहे हैं। यही नहीं मिट्टी के इन बर्तनों को एनआरआइ अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को गिफ्ट के रूप में देकर वाहवाही लूट रहे हैं।

संघौल गांव में मिल चुके हैं सुबूत

फतेहगढ़ साहिब के गांव संघौल में आज भी हड़प्पा सभ्यता से जुड़े कई रहस्य खुदाई के दौरान सामने आ रहे हैं। हड़प्पा सभ्यता को लेकर अभी तक खुली परते साफ कर चुके हैं कि उस समय विभिन्न धातुओं के अतिरिक्त मिट्टी के बर्तनों का अपना एक खास महत्व था। पुरातत्व विभाग के विज्ञानी अश्वनी कुमार अवस्थी का कहना है कि मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग खाने की शुद्धता के कारण होता था, इसका कोई ठोस सुबूत अभी तक नहीं मिला है, लेकिन बर्तनों की बनावट से साफ है कि उस समय भी लोग अपने खानपान को लेकर सजग रहे होंगे।

15 से 20 हजार रुपये महीना कमाई

पेशे से कुम्हार ¨मटू कुमार अपने पुश्तैनी काम को पूरी तरह से छोड़ चुके थे। किसी कारण से राजस्थान जाने का मौका मिला तो वहीं से उन्हें कारोबार का एक तरीका मिला, जिसे उसने अपनाने के बाद अपने पांच अन्य परिवारों को भी इस कारोबार में जोड़ दिया। पांच परिवार इस समय मिट्टी के बर्तनों से करीब 15-20 हजार रुपये की मासिक कमाई कर रहे हैं। महज एक सौ रुपये में बेचे जाने वाले मिट्टी के तवे का भाव सुनकर अधिकतर एनआरआइ इसका डबल रेट दे रहे हैं। मिट्टी के तवे पर बनाई जाने वाले रोटी पूरी की तरह अपने आप फूल जाती है। इस पर हलका देसी घी या मक्खन लगाने से इसका जो जायका है, वह तंदूर में बनी रोटी से कम नहीं है। मिट्टी के तवे को मॉर्डन रूप देते हुए ¨मटू ने उसे स्टील वायर का एक फ्रेम दे दिया है, जिससे उसकी सुंदरता मॉर्डन रसोई की शोभा बढ़ा रही है।

दो हजार रुपये में शुरू किया कारोबार

मिट्टी का तवा बनाने का हुनर सीखने के बाद ¨मटू ने महज दो हजार रुपये में इस कारोबार को शुरू किया। हालांकि, ¨मटू बचपन से मिट्टी के वर्तन और खिलौने बनते देख चुका है, लेकिन उसके मन में कुछ ऐसा करने की ललक थी, जिसे वह अन्य से भिन्न वस्तु को प्रस्तुत कर अपनी अलग पहचान बना सके। गरीब होने के बावजूद ¨मटू को पैसे कमाने का लालच नहीं है, लेकिन उसके बनाए बर्तन लोगों को पसंद आएं, यही उसे अपनी असल कमाई लगती है।

कम पढ़ा लिखा होने के कारण ¨मटू अपने इस हुनर की मार्के¨टग नहीं कर पा रहा है। यही कारण है कि हुनर होने के बावजूद वह मोगा-लुधियाना जीटी रोड किनारे मिट्टी के बर्तन टांगकर उन्हें बेचने का काम करता आ रहा है। मिट्टी के बर्तनों में तवे के अलावा उसने मिट्टी का कुकर, जग, कटोरी, गिलास, प्लेट, केतली, दही जमाने के लिए कटोरा और वाटर कूलर भी तैयार किया है। ¨मटू के बनाए बर्तनों के बारे में शहर के अधिकतर लोग अंजान है, जबकि सड़कों से गुजरने वाले कई एनआरआइ उसके इस काम की मौखिक पब्लिसिटी कर रहे हैं।

बड़ी फैक्ट्री बनाने का है सपना

बेहद कम पढ़े-लिखे ¨मटू का कहना है कि वह अपने इस कारोबार के जरिए अन्य लोगों को रोजगार मुहैया करवाना चाहता। मिट्टी के वर्तन बनाने वाली फैक्ट्री बनाने का सपना भी संजो रखा है, लेकिन इसके लिए उसके पास पैसा नहीं है। यदि सरकार इस तरह के लोगों को थोड़ा प्रोत्साहन करे तो वह युवा पीढ़ी के लिए रोजगार के लिए कई नए अवसर पैदा करवा सकती है।

मिट्टी के बर्तनों को गिफ्ट बनाने का अहसास है खास : हरीश कुमार

बीते साल न्यूजीलैंड से जब मोगा आया तो मिट्टी का तवा खरीदने का अहसास बेहद अलग था। इसका घर में जाकर जब प्रयोग किया तो ये प्रयोग लाजवाब रहा। न्यूजीलैंड वापस जाते समय मिट्टी के चार तवे साथ ले गया और वहां उन्हें गिफ्ट के तौर पर अपने दोस्तों को दे दिया। इसके बाद तो उनके पास इतनी मांग बढ़ने लगी कि कई बार वह मोगा से कोरियर के जरिए अपने जानने वालों की मांग पूरी कर चुके हैं। विदेशी लोगों के लिए मिट्टी के तवे पर रोटी या अन्य कोई पकवान बनाना बेहद सुखद अहसास है।


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