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नीम हकीम के चक्कर में हुए नकारा

नरिंदर सलूजा/विनोद जैन, सरदूलगढ़ (मानसा) 'नीम हकीम खतरा ए जान' इस कहावत को भूल कर कई बार हम कह

By Edited By: Published: Sun, 25 Sep 2016 01:01 AM (IST)Updated: Sun, 25 Sep 2016 01:01 AM (IST)
नीम हकीम के चक्कर में हुए नकारा

नरिंदर सलूजा/विनोद जैन, सरदूलगढ़ (मानसा)

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'नीम हकीम खतरा ए जान' इस कहावत को भूल कर कई बार हम कहीं न कहीं किसी के कहने या खुद ही पैसे बचाने के लिए लालचवश नीम हकीमों के चक्कर में पड़कर जान जोखिम में डाल देते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ गांव हीरके के रहने वाले गुरदीप सिंह पुत्र बावा सिंह के साथ। अब रोग ठीक होने की बजाय बढ़ जाने के चलते उक्त उपचारकर्ता पर आरोप लगाते हुए प्रशासनिक अधिकारियों से इंसाफ की गुहार लगा रहा है।

गुरदीप सिंह ने बताया कि पिछले कुछ समय से उसकी कमर में दर्द होने के कारण वह जून में कस्बा झुनीर में हडड्ी का उपचार करने का दावा करने वाले मालेरकोटला के एक व्यक्ति के पास चला गया। उसके अनुसार उक्त व्यक्ति ने उसे अपने पास आठ दिन रखकर इलाज किया तथा 15 हजार रुपये इलाज का खर्चा लिया। इलाज के दौरान उसने उसके पांवों में खिंचाव डाल दिया जिसके कारण घुटना, टाग व पैर में तकलीफ बढ़ गई तथा कमर में दर्द भी पहले की अपेक्षा ज्यादा रहने लगा। उक्त व्यक्ति ने कुछ दिन में ठीक हो जाने की बात कही, लेकिन मर्ज घटने की बजाय बढ़ गया। किसी विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाने की बजाय नीम हकीम का चुनाव करना उसे इस कद्र भारी पड़ गया कि अब परिवार का इकलौता कमाई करने वाला गुरदीप करीब तीन माह से काम नहीं कर पा रहा है, जिसके चलते परिवार आर्थिक तंगी से भी जूझ रहा है। हालांकि गुरदीप को भी अब इस बात पर पश्चाताप है, लेकिन अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।

एसडीएम व एसएसपी से नीम हकीम की शिकायत

गुरदीप ने एसडीएम सरदूलगढ़, एसएसपी मानसा व सिविल सर्जन को लिखित शिकायत देकर इंसाफ की गुहार लगाई है, ताकि उसकी तरह कोई और न चिकित्सा के नाम पर खुली दुकानों के चक्कर में पड़कर अपनी जान जोखिम में डाले। उधर, संबंधित उपचारकर्ता ने कहा कि उसका कोई कसूर नहीं है तथा उसे इस संबंध में कुछ नहीं कहना है।

नीम हकीमों के चक्कर में न पड़ें मरीज : सिविल सर्जन

सिविल सर्जन डॉ. नरिंदर कौर ने उक्त मामले में शीघ्र ही जांच करवाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इसमें मरीज की भी गलती है कि वह नीम हकीमों के चक्कर में पड़ते ही क्यों हैं। उन्होंने किसी भी तरह के उपचार के लिए मरीजों को झोला छाप नीम हकीमों के चक्कर में पड़ने की बजाय सिविल अस्पतालों अथवा डिग्री धारक विशेषज्ञ डॉक्टरों से ही उपचार करवाने की अपील की।


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