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किसानों ने शुरू किया पराली जलाना, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अनजान Ludhiana News

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के एसडीओ गुलशन कुमार ने कहा कि पराली जलाने के मामले ज्यादा सेटेलाइट से ट्रेस होते हैं। खन्ना व आसपास के इलाके में पराली जलाने की कोई रिपोर्ट नहीं आई है।

By Edited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 06:18 AM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 02:53 PM (IST)
किसानों ने शुरू किया पराली जलाना, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अनजान Ludhiana News
किसानों ने शुरू किया पराली जलाना, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अनजान Ludhiana News

खन्ना, जेएनएन। धान की कटाई होने के बाद खेतों में पराली को जलाने का सिलसिला शुरू हो गया है। खन्ना के साथ लगते गांव नवां पिंड रामगढ़ में शनिवार को खेतों से उठते धुएं ने इसके संकेत दे दिए हैं। लेकिन, हैरानी की बात है कि सैटेलाईट के जरिए पराली जलाने वालों को पकड़ जुर्माना ठोकने का दावा करने वाला पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इससे पूरी तरह से अनजान है। विभाग को इसकी जानकारी तक नहीं है, पकड़ कर जुर्माना लगाने की बात तो बहुत दूर है। किसानों के इस कदम से जहां किसान पाबंदी के बावजूद नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, वहीं प्रदूषण बढ़ने से लोगों की सेहत को भी नुकसान पहुंच सकता है। हालात यही रहे तो वातावरण में आने वाले दिनों में प्रदूषण की मात्रा में जबरदस्त उछाल आ सकता है।

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पराली जलाने की जानकारी नहीं : एसडीओ

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के एसडीओ गुलशन कुमार ने कहा कि पराली जलाने के मामले ज्यादा सेटेलाइट से ट्रेस होते हैं। खन्ना व आसपास के इलाके में पराली जलाने की कोई रिपोर्ट उनके पास नहीं आई है। इस संबंधी कोई शिकायत भी नहीं मिली। वे स्थानीय प्रशासन से बात कर इस मामले का पता कराएंगें। इधर, इकोलाही के किसान गुरप्रीत ने संभाली पराली एक तरफ कुछ किसान धान की कटाई होते ही अपने खेतों में बची पराली को आग लगाने में लगे हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ किसान पर्यावरण को बचाने की कोशिश में लगातार जुटे हैं।

खन्ना-मलेरकोटला रोड स्थित गांव इकोलाही के किसान गुरप्रीत सिंह उन्हीं किसानों में शामिल हैं जो पराली को जलाने की बजाय उन्हें संभाल कर पर्यावरण सुरक्षा के अभियान में जुटे हैं। गुरप्रीत सिंह के पास गांव में ही करीब 10 एकड़ जमीन है। वे गेहूं और धान की फसल बीजते हैं। पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखते हुए गुरप्रीत कुछ सालों से पराली को जलाने की बजाय मजदूरों के माध्यम से संभाल कर रख लेते हैं। गुरप्रीत का कहना है कि इसके लिए उन्हें खर्च पड़ता है। क्योंकि मशीनें बहुत महंगी है। सरकार को अगर सच में पर्यावरण की सुरक्षा करनी है तो पराली संभालने को अलग से बोनस किसानों को देना चाहिए।

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