डाइंग उद्योग के पास सिर्फ 10 प्रतिशत है काम
करीब दो माह के कर्फ्यू व लॉकडाउन ने डाइंग उद्योग को भी झकझोड़ कर रख दिया है।
जागरण संवाददाता, लुधियाना
करीब दो माह के कर्फ्यू व लॉकडाउन ने डाइंग उद्योग को भी झकझोड़ कर रख दिया है। अब होजरी में वूलेन का सीजन शुरू हो रहा है। होजरी फैक्ट्रियों में कामकाज शुरू हो रहा है, लेकिन अभी तक डाइंग उद्योग के पास रंगाई के लिए खुल कर काम नहीं आ रहा है। उद्यमी मानते हैं कि फिलहाल केवल दस फीसद ही काम मिल रहा है। शहर में करीब 275 डाइंग मिलें हैं। इनसे से करीब 60 ही अभी चल पा रही हैं, लेकिन उनमें भी 10 से 20 फीसद ही काम हो रहा है। उद्यमियों का कहना है कि बाजार में रंगाई के माल की कमी के कारण ही मिलें रफ्तार नहीं पकड़ पा रही हैं। उम्मीद है कि जून के पहले सप्ताह से वूलेन में मैन्यूफैक्चरिग प्रोसेस तेज हो जाएगा। इसके बाद ही डाइंग उद्योग रफ्तार पकड़ पाएगा।
उद्यमियों के अनुसार लुधियाना का डाइंग उद्योग सीधे टेक्सटाइल, होजरी एवं निटवियर से जुड़ा है। रेडिमेड गारमेंट्स की रंगाई का प्रोसेस इसी उद्योग में किया जाता है। होजरी उद्योग का समर सीजन लगभग बर्बाद हो गया और सारा माल औद्योगिक इकाईयों में स्टॉक हो गया। अब उद्यमी विटर के लिए तैयारी कर रहे हैं। उद्यमी कहते हैं क वूलेन, एक्रेलिक एवं अन्य यार्न की रंगाई का काम केवल 20 फीसद है और फैब्रिक्स की रंगाई का काम 10 फीसद। अभी यार्न निटिग इकाइयों में पहुंचा है। वहां से फैब्रिक तैयार करके यह रंगाई के लिए पहुंचेगा। इसमें अभी वक्त लग सकता है।
फंड की भी भारी दिक्कत : रजत सूद
लुधियाना डाइंग एसोसिएशन कॉटन डिवीजन के महासचिव रजत सूद ने कहा कि इंडस्ट्री के पास फंड की भारी दिक्कत है। समर के काम की पैमेंट अभी तक नहीं आई है। अब वूलेन के काम की तैयारी है, लेकिन पैमेंट का सर्किल नहीं बन पा रहा है। कुल मिलों में से सिर्फ 20 फीसद ही चल पा रही हैं, वह भी केवल 25 फीसद क्षमता पर। नतीजतन इंडस्ट्री जबरदस्त नुकसान में है। इसके अलावा कच्चे माल की भी दिक्कत है। केमिकल्स एवं डाइज की सप्लाई काफी कम है। सूद ने कहा कि लगता है कि 15 जून तक इंडस्ट्री अपनी 30 फीसद क्षमता का ही उपयोग कर पाएगी।
लेबर की कमी का भी उत्पादन पर पड़ेगा विपरीत असर : अशोक मक्कड़
पंजाब डायर्स एसोसिएशन के प्रधान अशोक मक्कड़ का कहना है कि बाजार में अभी तक काम नहीं निकल पाया है। अब सारी उम्मीद वूलेन इंडस्ट्री पर टिकी है। वूलेन को अभी सिस्टम में आने में वक्त लगेगा। इसके अलावा लेबर अपने गांवों को लौट रही है। ऐसे में सबसे बड़ी दिक्कत लेबर की आने वाली है। इसका कोई विकल्प नहीं नजर आ रहा है। लेबर की कमी के कारण भी इंडस्ट्री के उत्पादन पर विपरीत असर होगा। इसके लिए सरकार को भी गंभीरता से विचार करना होगा।