परमात्मा को इतना मूल्य दो कि संसार व्यर्थ हो जाए : डॉ. पदॅम मुनि
जासं, लुधियाना
अग्र नगर स्थित जैन स्थानक में धर्म सभा में सोमवार को श्रद्धालुओं को सम्यकत्व का ज्ञान देते हुए डॉ. पद्म मुनि शास्त्री जी ने कहा अध्यात्म का पथ आत्मिक विकास का पथ है। शरीर के जगत में केंद्रित व्यक्ति आत्मा का विकास नहीं कर सकता। आत्मा के विकास के लिए यह आवश्यक है कि हमारी दृष्टि में परमात्मा ही एकमात्र लक्ष्य हो। जब परमात्मा मूल्यवान हो जाता है, तो संसार व्यर्थ मालूम पड़ने लगता है। इसी दृष्टि को निर्वेद कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति की दृष्टि में परमात्मा बस गया, उसे संसार का कोई भी व्यक्ति धर्म पथ से डिगा नहीं सकता। आर्य स्थुलिभद्र को वासना के जाल में बाधने के लिए कोशा नर्तकी ने सभी उपाय कर डाले, परन्तु स्थुलिभद्र को प्रभावित करने के बजाय वह स्वयं प्रभावित हो गई और ताउम्र के लिए बारह व्रती श्राविका बन गई। निर्वेद मानस वाले व्यक्ति पर किसी भी प्रकार का आकर्षण नहीं डाला जा सकता।
मुनि जी ने कहा कि धर्म का उपदेश भी यही है कि हमारी दृष्टि में संसार मूल्यवान न होकर परमात्मा मूल्यवान हो जाये। जब परमात्मा मूल्यवान हो जाता है, तब हम सभी प्रकार के दुख, क्लेश, संकट और शिकायत आदि से मुक्त हो जाते हैं। यही भक्ति है।
इस दौरान वंशज मुनि जी ने संकल्प को दृढ़ करने का उपदेश दिया। उन्होंने बताया कि अच्छाई का संकल्प करके बुराई से स्वयं को बचाएं।
इस अवसर पर सभा प्रधान बलविंदर जैन, महामंत्री डीजे जैन, महेंद्रपाल जैन, अशोक जैन, तरसेम जैन रामेश्वरदास जैन, राजकुमार जैन, प्रदीप जैन महेन्द्र जैन, अश्वनी जैन, विजय जैन, सुमति प्रकाश जैन व सुधीर जैन आदि उपस्थित थे।