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इंटरनेट से सीखा इको फ्रेंडली फॉर्मूला, घाटे में चल रही खेती से मिला बड़ा मुनाफा

तरसेम सिंह को परंपरागत खेती के कारण घाटा हो रहा था। इसके चलते उन्होंने इंटरनेट की दुनिया में सर्च किया तो एक लाभदायक फॉर्मूले का पता चला।

By Ankit KumarEdited By: Published: Tue, 27 Jun 2017 12:24 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jun 2017 12:24 PM (IST)
इंटरनेट से सीखा इको फ्रेंडली फॉर्मूला, घाटे में चल रही खेती से मिला बड़ा मुनाफा
इंटरनेट से सीखा इको फ्रेंडली फॉर्मूला, घाटे में चल रही खेती से मिला बड़ा मुनाफा

कपूरथला, हरनेक सिंह जैनपुरी। इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाएं अब किसानों को इको फ्रेंडली खेती की ओर प्रेरित कर रहा है। लगातार घाटे से परेशान जिला कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी के गांव दुर्गापुर के एक किसान तरसेम सिंह ने खेती की नई तकनीक पता लगाने के लिए नेट पर सर्च किया तो उसे सिस्टम ऑफ राइस इंटेनसीफिकेशन (एसआरआइ) के रूप में अलाउद्दीन का चिराग हाथ लग गया। यह तकनीक धान की खेती बहुत कम पानी और बिना व कीटनाशक के प्रयोग किए अच्छा उत्पादन दे रही है।

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फसल की पैदावार बढ़ाने के नाम पर पिछले चार दशक से कृषि वैज्ञानिकों का ध्यान महज बीज की गुणवत्ता बढ़ाने और कृत्रिम खाद के इस्तेमाल पर रहा है, जबकि फसल प्रबंधन की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। लिहाजा प्रदेश के किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।

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परंपरागत खेती के कारण घाटा झेल रहे किसान तरसेम सिंह ने इंटरनेट की दुनिया में सर्च किया तो एक लाभदायक फार्मूले का पता चला। इसके बाद उसने इस फार्मूले की वास्तविकता पता लगाने के लिए भगत पूर्ण सिंह कुदरती खेती जंडियाला गुरु और खेती विरासत मिशन जैतो से संपर्क किया। वहां से आश्वस्त होने के बाद उसने गांववासियों की आलोचनाओं को दरकिनार कर अपने दो एकड़ के खेतों में एसआरआइ विधि अपनाने का साहस दिखाया है।

इस विधि में बीजों की तैयारी, बिजाई और सिंचाई पारंपरिक तरीके से अलग तरह की होती है। इससे न सिर्फ पानी की 60-70 फीसद बचत होगी, बल्कि उत्पादन भी 80 क्विंटल प्रति एकड़ के पार हो जाता है। पूरी फसल को महज आठ से दस दिन पानी की जरूरत पड़ेगी। साथ ही न तो कीटनाशक और न ही खाद का उपयोग करना पड़ता है।

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मिट्टी के बेड पर पनीरी की बिजाई  

इस विधि के तहत धान की पनीरी बीजने के लिए एक एकड़ में दो किलो बीज की जरूरत पड़ती है। इसकी पनीरी बीजने के लिए छह इंच ऊंची मिट्टी के पहले चार बेड तैयार किए जाते हैं और हर बेड पर पहले पराली बिछाई जाती है। फिर उस पर मिट्टी व रुड़ी (पुराना गोबर) की परत बिछाई जाती है। एक बेड पर एक किलो बीज बिछा कर उस पर मिट्टी व रुड़ी मिला कर डाली जाती है। इसके ऊपर एक बार फिर पराली बिछा कर शावर से उसे पानी डालते हैं। तीन दिन बाद जब पराली हटाएंगे तो पनीरी उग आएगी। पनीरी बीजने के लिए तरसेम ने धान की 666 किस्म इस्तेमाल की है।

10 से 12 दिन की पनीरी बिजाई के योग्य

इस पनीरी को लगाने के लिए पहले खेत में पानी डाल कर मिट्टी तैयार किया जाएगा और फिर उसके पानी को सुखा लिया जाएगा। 10 से 12 दिन की पनीरी खेत में लगाने योग्य हो जाएगी। फिर 10-10 इंच की दूरी पर पनीरी का एक-एक बूटा लगाया जाएगा और एक एकड़ में करीब 50 से 52 हजार पौधे लगेंगे। इसके बाद पूरी फसल के दौरान 8 से 10 दिन पानी दिए जाएंगे। अगर बारिश होने से पानी ज्यादा और बार बार जमा हो रहा है तो उसको निकाल दिया जाता है। फसल में घास होने पर पोनोमीटर से मिट्टी में मिलाया जाता है।

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बिना खाद व कीटनाशक के उत्पादन

इस तकनीक में धान को न तो कोई रसायनिक खाद डाली जाती है और न ही केमिकल, नदीननाशक या कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाएगा। फसल को सुरक्षित रखने के लिए हर 15 दिन बाद 200 लीटर गुड जल अमृत या जीव जल अमृत ट्यूबवेल के पानी में मिला कर खेत को लगाया जाएगा। इसके अलावा छह माह पुराने गाय के गोबर को पानी में मिला कर उसकी धान की फसल को स्प्रे की जाएगी।
 


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