वैज्ञानिकों ने सीचेवाल मॉडल को सराहा
जागरण संवाददाता, कपूरथला : केंद्र सरकार के विज्ञान और टेक्नोलाजी विभाग की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर गा
जागरण संवाददाता, कपूरथला : केंद्र सरकार के विज्ञान और टेक्नोलाजी विभाग की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर गांवों के छप्पड़ों को दोबारा जीवित करने के लिए चलाई जा रही मुहिम की शनिवार को गांव सीचेवाल से शुरूआत की गई। केंद्र सरकार के सहयोग से चल रही इस स्कीम के तहत 13 राज्यों के वैज्ञानिकों ने पर्यावरण प्रेमी संत बलबीर ¨सह सीचेवाल की ओर से तैयार किया गया छप्पड़ का मॉडल देखा और इससे संशोधित पानी की वैज्ञानिक तरीके से जांच पड़ताल की। इस उच्च स्तरीय शिष्टमंडल का नेतृत्व भारत सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग के नेशनल रिसोर्स डाटा मैनेजमेंट सिस्टम के प्रमुख डॉ. भूप ¨सह ने की। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार इस स्कीम के तहत धरती निचले पानी के कम रहे स्तर को उपर उठाने के लिए देश भर में गांवों के छप्पड़ों को दोबारा जीवित करना चाहती है।
इस बारे में पंजाब सरकार के सहयोग से पीएयू के कॉलेज आफ एग्रीकल्चर के डीन व प्रोजेक्ट को-आर्डिनेटर डॉ. एसएस कूकल की मेजबानी में कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना में रीवावल आफ विलेज पाउंड विषय पर वैज्ञानिकों की वर्कशाप आयोजित की गई थी। वर्कशाप में देश के विभिन्न राज्यों के वैज्ञानिकों ने सीचेवाल माडल का निरीक्षण करने का प्रोग्राम बनाया था। डॉ. भूप ¨सह ने बताया कि उन्होंने अपने 30 वर्षों के कार्यकाल दौरान सीचेवाल माडल जैसा काम वास्तव में कही भी नहीं देखा है। गांव में सीवरेज के गंदे पानी को एक जगह पर एकत्रित करके और प्राकृतिक विधि के साथ उसको साफ किया जा सकता है और साफ करने के बाद पानी को सिचाई के प्रयोग में लाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि संत सीचेवाल की ओर से इस्तेमाल किए गए पानी को दोबारा प्रयोग में लाने का जो फार्मूला अपनाया गया है, उससे पंजाब को बहुत बड़ा लाभ होगा। पीएयू के वैज्ञानिक डॉ. मनमोहनजीत ¨सह ने बताया कि केंद्र सरकार की तरफ से गांवों के छप्पड़ों को दोबारा जीवित करने की मुहिम आने वाले दिनों में पंजाब के लिए लाभदायक साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि पंजाब में पीने वाले पानी का दुरुपयोग किया जा रहा है और ¨सचाई के लिए धरती से निकाले जा रहे पानी को भी बचाने की जरुरत है। वैज्ञानिकों ने सुल्तानपुर लोधी के चंडीगढ़ मोहल्ले में सबसे सस्ते ट्रीटमेंट प्लांट को भी देखा। शिष्टमंडल में बिहार, पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक ओर पंजाब के वैज्ञानिक शामिल थे।