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खुद देश के लिए नहीं खेल सके, बेटियां करेंगी नाम रोशन

खुशबू, जालंधर पठानकोट निवासी संजीव कुमार का सपना था कि वे देश के लिए खेले। उन्होंने 1992 में ताइक्

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Apr 2017 01:01 AM (IST)Updated: Sat, 29 Apr 2017 01:01 AM (IST)
खुद देश के लिए नहीं खेल सके, बेटियां करेंगी नाम रोशन
खुद देश के लिए नहीं खेल सके, बेटियां करेंगी नाम रोशन

खुशबू, जालंधर

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पठानकोट निवासी संजीव कुमार का सपना था कि वे देश के लिए खेले। उन्होंने 1992 में ताइक्वांडो प्रतियोगिता में नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीता भी, लेकिन घर के ऐसे हालात हो गए कि इसके बाद उन्हें काम करना पड़ा। अब संजीव कुमार अपने इस सपने को तीन बेटियों के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं।

एचएमवी में हो रहे खेल ट्रायल के दौरान अपनी तीन बेटियों के साथ पहुंचे संजीव कुमार ने बताया कि वह देश के लिए खेलने का अपना सपना पूरा नहीं कर सके, पर उनकी बेटियां जरूर देश का नाम रोशन करेंगी। पठानकोट नगर निगम में सफाई कर्मचारी संजीव कुमार ने बताया कि उन्होंने 1992 में ताइक्वांडो प्रतियोगिता में नेशनल लेवल पर गोल्ड मेडल जीता था। पर घर की हालात ठीक न होने के कारण 12वीं के बाद ही खेल को छोड़कर काम करना पड़ा। देश के लिए खेलने का सपना पूरा न कर पाने का दुख हमेशा दिल में रहा। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए अपनी तीनों बेटियों को खेल में आगे बढ़ा रहे हैं। तीनों बेटियों ने अपनी शिक्षा पठानकोट के केएफसी सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पूरी की है।

उन्होंने बताया कि उनकी बड़ी बेटी हिना 19 वर्ष की है। वह 2015 में नेशनल जूनियर ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीत चुकी है। स्टेट में भी कई इनाम हासिल कर चुकी है। 18 वर्षीय बेटी नेहा जिसने इस साल 12 की परीक्षा दी है, रेसलिंग में स्टेट स्तर पर कई इनाम हासिल कर चुकी है। अब नेशनल के लिए तैयारी कर रही है। 12वीं कक्षा में गई 17 वर्षीय बेटी रविका रेसलिंग के लिए तैयारी कर रही है।

पैसे की कमी से एक साल रहा पढ़ाई में गेप, अब स्पोट्स कोटे में करूंगी पूरी

हिना ने बताया कि एक साल शिक्षा में गेप होने के कारण मैं अपने कोच कमल के साथ खेल की तैयारी कर रही थी। अब बीए में दाखिला लेकर अपनी शिक्षा भी पूरी करूगीं व देश के लिए खेलूंगी। बाहरवीं में खेल और पढ़ाई को एक साथ करना थोड़ा मुश्किल था, पर पेपर से पहले पूरी पढ़ाई कर लेती थी, ताकि अच्छे अंक हासिल कर सकूं। पैसों की कमी से एक साल पढ़ाई में गैप रहा।


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