रातों रात कम हो गए थे 510 करोड़
--------------- जेएनएन, जालंधर-चिंतपूर्णी राष्ट्रीय राजमार्ग फोरलेन प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रह
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जेएनएन, जालंधर-चिंतपूर्णी राष्ट्रीय राजमार्ग फोरलेन प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण घोटाले में विजिलेंस एसआइटी ने जब दस्तावेजों को खंगालना शुरू किया तो घोटाले की कई परतें खुलीं थीं। सबसे अहम बात ये थी कि तत्कालीन एसडीएम ने जमीन अधिग्रहण के लिए तैयार 800 करोड़ का एस्टीमेट को 24 घंटे में 510 करोड़ कम कर दिया था।
बता दें 10 दिसंबर, 2015 को होशियारपुर के तत्कालीन एसडीएम आनंद सागर शर्मा ने सेंट्रल पीडब्ल्यूडी के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को इस फोरलेन प्रोजेक्ट के लिए करीब 42 हेक्टेयर (103 एकड़) जमीन अधिग्रहण के एवज में प्रति एकड़ लगभग 20 करोड़ रुपये के हिसाब से 800 करोड़ का एस्टीमेट सौंपा था। एसडीएम के इस पत्र के जवाब में सेंट्रल पीडब्ल्यूडी के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ने 14 जनवरी, 2015 को पत्र के जरिए सूचित किया कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने जमीन अधिग्रहण के लिए मागी गई राशि को अत्यधिक व आपत्तिजनक बताया है और प्रस्तावित प्रोजेक्ट के प्रति अनिच्छा जताई थी। मंत्रालय ने जालंधर में पहले अधिगृहीत जमीन के लिए तय कीमत का हवाला देते हुए एसडीएम को कहा था कि प्रोजेक्ट संबंधी जमीन का उचित मूल्याकन कर संशोधित एस्टीमेट भेजा जाए। सेंट्रल पीडब्ल्यूडी से यह पत्र मिलने के ठीक अगले दिन यानी 15 जनवरी, 2016 को ही होशियारपुर प्रशासन की ओर से एसडीएम आनंद सागर शर्मा ने इसी प्रोजेक्ट को 290 करोड़ में तब्दील करते हुए दोबारा सेंट्रल पीडब्ल्यूडी को एस्टीमेट सौंपा।
इसके बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने 286 करोड़ रुपये में जमीन अधिग्रहण प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी थी। जाच एजेंसी का मानना है कि प्रोजेक्ट में बिना किसी बदलाव के महज 24 घटे में 510 करोड़ रुपये कम करना भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्त्रिया पर सवाल खड़े करता है।
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आरटीआइ से हुआ खुला मामला
होशियारपुर के आरटीआइ कार्यकर्ता राजीव वशिष्ठ की ओर से दायर आरटीआइ याचिका से यह बड़ा घोटाला खुला है। आरटीआइ से पता चला कि जालंधर से होशियारपुर तक प्रस्तावित फोरलेन प्रोजेक्ट के लिए योजनाबद्ध तरीके से क्षेत्र के अकाली नेताओं और कई रसूखदार लोगों ने किसानों की जमीन काफी कम कीमत पर खरीद ली थी। जमीन की कीमत बढ़ाने के लिए बाद में इन्हीं जमीनों पर कॉलोनिया काट दीं और जब अधिग्रहण प्रक्त्रिया शुरू हुई तो सरकार को करोड़ों रुपये में बेच दी गई। मीडिया में यह घोटाला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने एसडीएम आनंद सागर शर्मा समेत तहसीलदार बलजिंदर सिंह व नायब तहसीलदार मनजीत सिंह का तबादला करते हुए विजिलेंस जाच के आदेश दिए थे।
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24 जून को बाद ने दिए थे विजिलेंस जांच के आदेश
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने होशियारपुर जमीन घोटाले की 24 जून को विजिलेंस जांच के आदेश दे दिए हैं। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि इस मामले में जो भी दोषी होगा उसे किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
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24 घंटे में हटाए गए थे एसडीएम
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होशियारपुर जमीन अधिग्रहण घोटाले में विजिलेंस जांच के आदेश के 24 घंटे बाद ही पंजाब सरकार ने 25 जून को तत्कालीन एसडीएम आनंद सागर शर्मा, तहसीलदार बलजिंदर सिंह और नायब तहसीलदार मनजीत सिंह का तबादला कर दिया था। मामले में मुख्यमंत्री ने 24 जून को विजिलेंस जांच के आदेश दिए थे।
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पीएमओ में भी की थी शिकायत दर्ज
आरटीआइ अवेयरनेस फोरम पंजाब के फाउंडर चेयरमैन राजीव वशिष्ट ने इस मामले की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से भी की थी। उन्हें पीएमओ की ओर से जवाब मिल गया था कि शिकायत दर्ज कर ली गई है। इसके बाद पंजाब सरकार ने भी कड़े कदम उठाए थे।
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दैनिक जागरण ने किया था खुलासा
दैनिक जागरण ने सबसे पहले इस मामले का खुलासा किया था। जागरण में 20 अप्रैल के अंक में 'अफसर ने साले को लाखों में दिलवाई करोड़ों की भूमि' शीर्षक से खबर लगाई थी। इसमें घोटाले की आशंका जताई गई थी। हमने बताया था कि होशियारपुर के एक अधिकारी ने अपने एक कॉलोनाइजर साले को 70 लाख में जमीन दिलवा दी, जो नेशनल हाईवे अथॉरिटी की ओर से अधिगृहीत की जानी है। इस जमीन को सरकार को बेचकर नौ करोड़ रुपये डकारने की योजना बनाई गई है।
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