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पिता की चाहत और जुनून ने बनाया वकील

लोकेश चौबे, होशियारपुर : मेरे पिता बनारसी दास गुप्ता डॉक्टर थे। हम दो भाई थे। पिता जी चाहते थे कि दो

By Edited By: Published: Mon, 20 Oct 2014 04:29 PM (IST)Updated: Mon, 20 Oct 2014 04:29 PM (IST)
पिता की चाहत और जुनून ने बनाया वकील

लोकेश चौबे, होशियारपुर : मेरे पिता बनारसी दास गुप्ता डॉक्टर थे। हम दो भाई थे। पिता जी चाहते थे कि दोनों में से एक बेटा वकालत में जाए। मुझे बचपन से वकालत में जाने शौक भी था और कॉलेज में पढ़ते समय लक्ष्य भी बना लिया कि वकालत के क्षेत्र में ही अपने आप को स्थापित करना है। दैनिक जागरण के साथ अपने अतीत के पलों को सांझा करते हुए एडवोकेट भगवंत किशोर गुप्ता ने बताया कि बहुत कम लोग होते हैं जो अपना निर्धारित लक्ष्य प्राप्त कर पाते हैं।

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वकालत में आना उनका लक्ष्य था और मेहनत और पेशे को लेकर अपनी ईमानदारी के कारण ही वे अपने आप को स्थापित कर पाए हैं। भगवंत किशोर ने बताया कि होशियारपुर के एसडी व सरकारी स्कूल से स्कूलिंग की। डीएवी कॉलेज से प्री यूनिवर्सिटी और 1979 में एसडी कॉलेज होशियारपुर से एमए अंग्रेजी की। उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से लॉ की।

मेरे वकालत में आने के बाद परिवार के अन्य लोगों ने भी अपनाई वकालत

एडवोकेट भगवंत किशोर कहते हैं कि अपने परिवार में वे पहले व्यक्ति थे जो कि वकालत के पेशे में आए। उनके पहले कोई भी वकालत में नहीं था। उनके तीन बच्चे हैं दो बेटे व एक बेटी। तीनों बेटे और बेटी लॉ ग्रेजुएट हैं। बेटी पीसीएस ज्यूडिशरी की तैयारी कर रही है।

आरएसएस से मिले संस्कार व नेतृत्व की क्षमता

एडवोकेट भगवंत किशोर ने बताया कि बचपन से ही उनका जुड़ाव राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस से हो गया था। वकालत के दौरान वे भाजपा में भी सक्रिय हुए। होशियारपुर जिला युवा मोर्चा के अध्यक्ष, जिला सचिव, जिला अध्यक्ष के अलावा भाजपा की अन्य जिम्मेदारियां भी निभाई। एडवोकेट भगवंत ने कहा कि उनके जीवन ने आरएसएस द्वारा दिए गए संस्कार व कार्यकुशलता ने हमेशा उनका मार्गदर्शन किया है। एडवोकेट गुप्ता ने कहा कि बेशक उन्होंने वकालत के साथ-साथ सक्रिय राजनीति में भी काम किया लेकिन दोनों कार्यो में एक गैप जरूर था और वकालत चमकाने के लिए कभी राजनीति का सहारा नहीं लिया और अपने दम पर वकालत को चलाया।

नहीं भूलता तलवाड़ा वाला केस

बात 1992 की है। मेरे पास एक महिला आई जिसके पति के खिलाफ टाडा के अंतर्गत मामला चल रहा था। केस संबंधी बात हुई, मैंने महिला से अपनी फीस की बात की। उसने कहा कि दो बच्चे है। एक बच्चे को बेच कर पहले वकील की फीस चुकाई थी। दूसरे बच्चे को बेच कर आपकी फीस चुका दूंगी।

महिला के यह शब्द मुझे तीर की तरह लगे। उसका बच्चा उसके साथ था जो कि काफी बीमार था। मैंने उसे 250 रुपये दिए और कहा कि पहले बच्चे को दवाई दिलवाओ। उस वक्त मेरे पास गांव भूंगरनी का सरपंच बैठा था। उसके कहा कि वकील साहब आपके तीन बच्चे हैं, एक तो उस महिला ने आपको फीस नहीं दी दूसरा आपने उसे 250 रुपये दे दिए। अपना परिवार कैसे पालोगे। खैर मैंने उस महिला का दर्द समझा और उस केस में उसके पति को बरी करवाया।

छह साल बाद वह महिला मेरे पास आई और मुझे फीस के दस हजार रुपये व ढाई सौ रुपये दिए। उसने कहा कि वकील साहब आपके कारण आज मेरा परिवार इज्जत की जिंदगी बसर कर रहा है। मैंने फीस लेने से मना किया लेकिन उसने जबरदस्ती मुझे मेरी फीस दी। संयोगवश उस दिन भी गांव भुंगरनी का वही सरपंच मेरे साथ था। यह देख वह भी भावुक हो गया और मेरे पैस छू कर बोला। वकील साहब आपने वाकयी में सच्ची वकालत की है।

मेरे साथ हुए इस वाक्ये से मेरा इरादा और भरोसा और मजबूत हुआ और लगा कि प्रोफेशल व पैसे से भी बड़ा कुछ होता है। खुशी इस बात की थी कि मैंने ईमानदारी से अपना फर्ज निभाया।


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