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एक औ एक ग्यारह, जीतेंगे जग सारा

By Edited By: Published: Mon, 18 Aug 2014 01:10 AM (IST)Updated: Mon, 18 Aug 2014 01:10 AM (IST)
एक औ एक ग्यारह, जीतेंगे जग सारा

लोकेश चौबे, होशियारपुर

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होशियारपुर के गांव बजवाड़ा की परवीन के दिल का वाल्व सिकुड़ गया था। आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। परवीन घरों में काम कर किसी तरह अपना गुजारा चला रही थी, लेकिन बीमारी की वजह से उसका स्वास्थ्य लगातार खराब हो रहा था। 30 वर्षीय परवीन का वजन 30 किलो के करीब हो गया था। शादी की उम्र हो चुकी थी लेकिन शारीरिक अस्वस्थता के कारण परवीन को डॉक्टरों ने शादी के लिए मना किया था। ऊपर से कमबख्त बीमारी ने परवीन के हौंसले को लगभग तोड़ ही दिया था। इस दौरान परवीन के हालात से सामाजिक कार्यकर्ता इंदरजीत नंदन वाकिफ हुई।

बताते चलें कि इंदरजीत नंदन खुद बचपन से ही मस्कुलर डिस्ट्रोपी नामक बीमारी से पीड़ित होने के कारण वह अपनी टांगों पर खड़ी नहीं हो सकती हैं, बावजूद उसने साहित्य के क्षेत्र में न प्रदेश में बल्कि देश भर में अपना लोहा मनवाया है। इंदरजीत ने परवीन की हालत को देखते हुए हार्ट स्पेशलिस्ट से उसकी जांच करवाई तो डॉक्टरों ने उसका आपरेशन करने के लिए कहा। आपरेशन के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी और इंदरजीत ने अपने सहयोगियों से मदद लेकर परवीन का आपरेशन करवाया। अब परवीन स्वस्थ हैं और उसकी शादी हो चुकी है। परवीन का घरों में काम करना इंदरजीत को गंवारा नहीं हुआ तो उसके मन में इस तरह की लड़कियों व महिलाओं को स्वरोजगार देने की प्रेरणा मिली। आज परवीन और उस जैसी अन्य कई महिलाएं व लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी होकर अपना सेल्फ हेल्प ग्रुप चला रही हैं। ग्रुप की मुखिया इंदरजीत नंदन हैं। यह ग्रुप नमकीन स्नैक्स, भुजिया, पापड़, मंट्ठी आदि बना रहा है। फिलहाल यह सेल्फ हेल्प ग्रुप का प्रारंभिक चरण है, लेकिन महिलाओं को आत्म सम्मान दिलाने में इस ग्रुप ने एक शुरुआत कर दी है। सरकार से मदद लेकर बजवाड़ा के एक छोटे से कमरे में 11 सदस्यों का सेल्फ हेल्प ग्रुप मजबूत इरादों के साथ चल रहा है। ग्रुप का हर सदस्य विपरित परिस्थितियों से लड़ते हुए आज अपने दम पर खड़ा है। ग्रुप से जुड़ी अमरजीत कौर घरों में काम करती थीं और अब आत्मनिर्भर हैं। ग्रुप की एक सदस्य के अलावा गिरिजा पराशर जिनपर पांच बहनों और एक भाई की जिम्मेदारी थी। गिरिजा ने अपने सभी भाई बहनों को अपनी मेहनत से सेटल किया और खुद एक बुटीक चला रही हैं। वह भी इस ग्रुप के साथ जुड़ी हैं। शिवाली चौधरी इस ग्रुप की कैशियर हैं। शिवाली डीएवी कॉलेज में एमकाम कर रही हैं। इसके अलावा अनीता रानी, मंदीप कौर, निशा, शारदा देवी, हरजिंदर, कुंदन कौर इस सेल्फ हेल्प ग्रुप की सदस्य हैं। इंदरजीत नंदन के हौंसले को देखते हुए कृषि विभाग के जिला ट्रेनिंग अधिकारी डॉ. चमन लाल वशिष्ट को इंदरजीत को शक्ति कहकर पुकारते हैं।

गौरतलब है कि इंद्रजीत नंदन ने शारीरिक अक्षमता के बावजूद महज 32 वर्ष की आयु में जो मुकाम हासिल किया है वहीं मुकाम हासिल करने के लिए किसी सामान्य व्यक्ति की उम्र लग जाती है। 35 वर्ष की कम आयु के युवाओं को दिया जाने वाला राष्ट्रीय संस्कृति पुरस्कार पाने वाली इंद्रजीत पंजाब की पहली लड़की हैं जिसने कि पंजाबी लिटरेचर को राष्ट्रीय पहचान दिलवाई है। वर्ष 2008 में राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली इंद्रजीत वर्ष 2007 के करतार सिंह धालीवाल साहित्य अकादमी पंजाब के पुरस्कार के लिए भी चयनित हो चुकी हैं। इसके अलावा इंदरजीत को स्वामी विवेकानंद स्टेट अवार्ड आफ एक्सीलेंस 2014 भी मिल चुका है।

इंद्रजीत ने बीकाम व एमए अर्थशास्त्र की शिक्षा हासिल की हैं। वह जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाती हैं। कई ग्रुपों के एकाउंट्स का काम कर अपना खुद का खर्चा चलाती हैं। उनकी उपलब्धि को सिर्फ साहित्यक दृष्टिकोण से नहीं आंका जा सकता, बल्कि वह जरुरतमंद बच्चों को अपने साथियों की मदद से पढ़ा कर उनकी मदद भी करती हैं। उसका कहना है कि वह नहीं चाहती कि पैसे की कमी के कारण कोई बच्चा पढ़ाई से महरूम हो सके। यही कारण है कि इंद्रजीत से पढ़ चुके कई बच्चे आज अपने पैरों पर खड़े हैं। इंद्रजीत अब तक पांच पुस्तकों का प्रकाशन भी कर चुकी हैं।


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