शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने का काम बाकी है : ज्योति
रजनीश गुलियानी, होशियारपुर
1960 के दशक में हुए चुनाव और आज के चुनाव में प्रचार का ढंग भले ही बदल गया है, लेकिन चुनावी मुद्दे वही हैं। देश में करप्शन पहले से ही चला आ रहा है। यह तब तक खत्म नहीं हो सकती हम जाती तौर पर इसे खत्म करने के लिए प्रयास नहीं करते। कुछ ऐसा कहते हुए रिटायर्ड एसडीओ खेम चंद ज्योति (75)अतीत में खो जाते हैं। वह बताते है कि पहले चुनाव प्रचार ढोल नगाड़ों के साथ हुआ करता था। कम ही वोटरों को वोट डालने का महत्व पता था। कुछ लोग तो वोटर नंबर दर्शाती पर्ची को लेकर ही बैलट बाक्स में डाल कर यह समझ लेते थे कि उन्होंने वोट डाल दी है। उन्होंने कहा कि नैतिकता न तो पहले थी और न ही अब है। इसके लिए नेताओं से ज्यादा समाज जिम्मेवार है। आज गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों के लिए शिक्षा हासिल करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। अगर किसी राजनीति दल ने इसके ऊपर गंभीरता से काम न किया तो गरीब व अमीर का आपसी फासला बढ़ता ही जाएगा। उन्होंने कहा कि बंगलादेश की आजादी के बाद देश में कांग्रेस की लहर थी लेकिन जब इमरजेंसी का दौर आया तो कांग्रेस को लोगों के अथाह क्रोध का सामना करना पड़ा। फेर बदल के बाद सोशलिस्ट पार्टियों का सितारा चमका। तब जय प्रकाश नारायण की हर तरफ लहर थी। वह कहते है कि आजकल के नेताओं में पहले जैसे बात नहीं है। पहले के नेता समाज सेवा व देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखते थे। आजकल के नेता तो चुनावों के दिनों में ही नजर आते हैं। राजनीति में कुछ नये समीकरण बनते नजर आ रहे हैं। इसलिए वो खुद तो वोट डालेंगे ही, मजबूत लोकतंत्र के लिए दूसरों को भी वोट डालने के लिए प्रेरित करेंगे।