रक्त नालियों में नहीं, नाड़ियों में बहे का दिया संदेश
संवाद सहयोगी, पठानकोट : दिल्ली स्थित पहाड़गंज में पांच नवंबर 1963 को 16वें विशाल संत समागम में निरंकार बाबा गुरबचन सिंह शरीर में प्रकट हुए थे। उनसे प्राप्त ज्ञान से जहां प्रभु भक्ति को बढ़ावा मिला है, वहीं लोगों में प्रेम, प्यार व आपसी भाईचारे भी देखने की मिली है।
बाबा गुरबचन सिंह जी का जन्म दस दिसंबर 1930 को पाक के पास स्थित उंदार शहर में हुआ था। मित्र भाषी व आज्ञाकारी होने के कारण उन्हें सब भोला के नाम से भी पुकारते थे। 24 अप्रैल 1980 को बाबा गुरबचन सिंह जी ने सत्य के लिए जीवन का बलिदान कर दिया था। उनके बलिदान से भड़की अहिंसा पर प्रेम व प्यार का मरहम लगाने वाले बाबा गुरबचन सिंह जी के नए स्वरूप और निरंकारी जगत के मौजूदा प्रमुख बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने अपने संदेश में कहा कि इंसान का रक्त नालियों में नहीं, बल्कि उनकी नाड़ियों में बहे। तब से निरंकारी जगत में सत्य, प्रेम व शांति के संदेश का प्रचार और भी अधिक तीव्र गति होने लगा। इस संदेश को लोगों को तक पहुंचाने के लिए मिशन ने विश्व में कई रक्तदान शिविर लगाना शुरू कर दिया। निरंकारी मिशन द्वारा 24 अप्रैल को मानव एकता दिवस के रूप मनाया जाने लगा। निरंकारी ब्रांच पठानकोट के संयोजक महात्मा एमएल शर्मा ने बताया कि पठानकोट में भी वीरवार को मानव एकता दिवस मनाया जाएगा।