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सतलुज दरिया में रस्सियों के सहारे नावों पर जीवन हो रहा पार

प्रदीप कुमार ¨सह, हुसैनीवाला बार्डर फिरोजपुर : जमीन पर हाईवे की तरह सतलुज दरिया में भी

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Oct 2017 03:01 AM (IST)Updated: Fri, 27 Oct 2017 03:01 AM (IST)
सतलुज दरिया में रस्सियों के सहारे नावों पर जीवन हो रहा पार
सतलुज दरिया में रस्सियों के सहारे नावों पर जीवन हो रहा पार

प्रदीप कुमार ¨सह, हुसैनीवाला बार्डर फिरोजपुर : जमीन पर हाईवे की तरह सतलुज दरिया में भी किसानों ने डबल टै्रक बना रखा है। इन टै्रकों पर बड़ी व छोटी नावों को लोग रस्सी के सहारे खेव रहे हैं। बड़ी नाव में टै्रक्टर-टॉली तो छोटी नावों में मोटरसाइकिल वाले लोग आवागमन कर रहे हैं।

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नावों में अपने-अपने वाहनों के साथ बैठे लोगों में कोई खेतों से टै्रक्टर-टॉली में अपनी फसल को मंडी लेकर जा रहा है तो कोई शहर में घर के लिए सामन खरीदने जा रहा है, शाम होने से पहले सभी लोग अपना काम-काज खत्म करने के लिए उतावले दिखाई देते हैं। हालांकि रात में भी ये लोग बेखौफ इसी तरह से वर्षो से अपनी दिनचर्या निकालते हैं। इन्हीं नावों में बैठकर बच्चे रोजाना स्कूल व गर्भवती महिलाएं अस्पताल जाने को मजबूर हैं। गांव कहलूवाला निवासी गुर¨मदर ¨सह व गांव निहाला किलचा निवासी तरसेम ने बताया कि उनके जीवन का अहम हिस्सा ये नावें हैं।

कुछ महीने पैंटून पुल के सहारे चलता है काम

साल में छह से सात महीने इन्हीं छोटी-बड़ी नावों पर ही जीवन पार होता है, बाकी महीनों में पैंटून का पुल उनके काम आता है। लेकिन इन लोगों को पैंटून पुल से ज्यादा नाव ही अच्छी लगती है, क्योंकि इसकी सर्विस सभी महीनों में होती है, जबकि पैंटून पुल कुछ ही महीनों के लिए होता है। सरहद व सतलुज से घिरे इन बाशिंदों की ओर से वर्षो से केंद्र व प्रदेश सरकार से पक्का पुल बनाने की मांग की जा रही है।

हुसैनीवाला पुल से 45 किमी का चक्कर काटना पड़ता है

गावं गटटी चांदीवाला निवासी 65 वर्षीय महिला कुलवंतो ने बताया कि उनकी डोली भी इसी नाव से होकर गांव में आई थी, क्योंकि उनका मायका दरिया उस पार है। उनके बेटे की शादी में कार गई थी जो कि हुसैनीवाला पुल से 45 किलोमीटर का चक्कर काट कर पहुंची थी, जबकि नाव से जाने पर दूरी मात्र 5 किलोमीटर उनके मायके है। उन्होंने कहा कि एक बार उनके गांव में कई नेता अधिकारियों के साथ आए थे तो उन्होंने मांग कि थी कि दरिया पार वाले गांवों के लिए सरकार पक्का पुल बनवाए। जिस पर सभी लोगों ने कहा था कि यहां पर सुरक्षा कारणों से कभी पुल नहीं बन सकता, क्योंकि जितना लंबा पुल होगा उससे कम दूरी पर पाकिस्तान की सरहद है। ऐसे में अब उनके जैसी अन्य महिलाओं की आदत पड़ गई है, इन्हीं नावों के सहारे जीवन पार करने की।

पुल नहीं तो नई नावें ही मुहैया करवाती रहे सरकार

कुलंवतो देवी ने कहा कि नाव पंचायत की है, इसे उनके गांव में सभी लोग चला लेते हैं। गांव में मल्लाह भी है, जो उन लोगों को पार करवाता है। वे लोग नाव पर बैठकर रोजाना अपने-अपने खेतों में काम करने के लिए जाते हैं और पशुओं के लिए चारा भी लेकर आते है। लोगों का कहा है कि जिला प्रशासन पुल न बनवाए कोई बात नहीं, लेकिन कुछ सालों बाद उनके गांवों की छोटी-बड़ी नावों को बदल जरूर दिया करें, जिससे उन लोगों कि ¨जदगी नाव के सहारे चलती रहे।


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