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शहीदों के गुप्त ठिकानें बनें संग्रहालय, परिजन कर रहे पैदल मार्च

शहीदों के परिजन शहीदों से जुड़े ठिकानों को संग्रहालय बनाने की मांग कर रहे हैं। इस मांग लेकर वह लंबे समय से पैदल मार्च पर हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 10:28 AM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 10:36 AM (IST)
शहीदों के गुप्त ठिकानें बनें संग्रहालय, परिजन कर रहे पैदल मार्च
शहीदों के गुप्त ठिकानें बनें संग्रहालय, परिजन कर रहे पैदल मार्च

फिरोजपुर [प्रदीप कुमार सिंह]। आजादी आंदोलन के दौरान फिरोजपुर के तूड़ी बाजार स्थित दो मंजिला इमारत ही क्रांतिकारियों का गुप्त ठिकाना था। यहीं पर शहीद भगत सिंह ने पहचान छुपाने के लिए अपनी दाढ़ी व केस कत्ल करवाए थे। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का यह पहला गुप्त केन्द्रीय कार्यालय भी था। शहीदों के इस गुप्त ठिकाने को संग्रहालय का रूप दिए जाने की मांग को लेकर संघर्ष किया जा रहा है। अगर बात नहीं सुनी गई, तो सीएम अमरिंदर सिंह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की जाएगी।

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ये बातें 10 अगस्त 1928 से 9 फरवरी 1929 तक गुप्त ठिकाने को डॉ. बीएस निगम के जाली नाम से किराए पर लेने वाले क्रांतिकारी डॉ. गया प्रसाद के 51 वर्षीय बेटे और आइआइटी कानपुर में सिविल इंजीनियर कांति कुमार ने कहीं। उन्होंने कहा कि पीएसयू व नौजवान भारत सभा द्वारा गुप्त ठिकाने को संग्रहालय का रूप दिए जाने के लिए 8 जनवरी से आंदोलन छेड़ा गया है। इन संगठनों के आवाहन पर शहीद भगत सिंह के भांजे प्रो. जगमोहन सिंह लुधियाना से, क्रांतिकारी महावीर सिंह के पोते जयपुर से आसीम राठौर, पटना से क्रांतिकारी वीके दत्त की बेटी डॉ. भारती बागची के अलावा अन्य शहीदों व स्वतंत्र सेनानियों के परिजन देश भर से पहुंच रहे हैं।

इसी गुप्त ठिकाने पर चांद के फांसी अंक को लिखा गया था, जिसमें शहीदों की जीवनियां है। यहीं पर क्रांतिकारी बम बनाने की सामग्री एकत्र करने के अलावा निशानेबाजी की प्रेक्टिस करते थे। फिरोजपुर, दिल्ली और लाहौर के अलावा इस्लामाबाद व अफगानिस्तान के बीच होने व यहां से ट्रेन की सेवाएं उपलब्ध होने के कारण क्रांतिकारियों ने यहां गुप्त ठिकाना बनाया था।

उन्होंने कहा कि उनके पिता डॉ. गया प्रसाद की कानपुर में 10 फरवरी 1993 को मत्यु हो गई थी। वे लाहौर षडयंत्र केस में सजा याफता दस लोगों में शामिल थे। जिस केस में भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी दी गई। जबकि शेष को सजा हुई। इस ठिकाने को संग्रहालय बनाया जाना शहीदों की सोच को भावी पीढी तक ले जाने के लिए अहम है। क्रांतिकारियों के साहित्य भी लाइब्रेरी बनाकर सहेजने चाहिएं।

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