Move to Jagran APP

सावन में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व : कमलानंद

जागरण संवाददाता, कोटकपूरा मोहल्ला हरनामपुरा स्थित श्री मोहन कल्याण आश्रम में आयोजित श्रीमद्भगवत

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jul 2017 04:15 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jul 2017 04:15 PM (IST)
सावन में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व : कमलानंद
सावन में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व : कमलानंद

जागरण संवाददाता, कोटकपूरा

loksabha election banner

मोहल्ला हरनामपुरा स्थित श्री मोहन कल्याण आश्रम में आयोजित श्रीमद्भगवत गीता ज्ञान यज्ञ प्रवचन कार्यक्रम के दौरान श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि ने सावन माह में शिव पूजा का महत्व बताते हुए कहा कि मानव जीवन ईश्वर की बंदगी के लिए प्राप्त हुआ है। ¨चता की बात यह है कि आज मानव अपनी ¨जदगी बंदगी में न लगाकर गंदगी में धकेल रहा है।

स्वामी जी ने कहा कि श्रावण माह में श्रवण की गई भागवत कथा अति दुर्लभ तथा फलदायी होती है। कथा के श्रवण से ही इस माह का नाम भी श्रावण माह पड़ा है। इस माह बढ़-चढ़कर परोपकार तथा पुण्य-लाभ वाले कर्म करने चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोई सांसारिक व्यक्ति कथा कह रहा हो तो वह झूठ भी हो सकती है। मगर जिस कथा को भगवान शिव ने खुद संत कुमारों को सुनाया है उसमें तो अवश्य ही सच्चाई ही होगी। कमलानंद जी ने श्रद्धालुओं को सावन माह के व्रतों का महत्व बतलाते हुए कहा कि जो भक्त यह व्रत रखता है भगवान शिव उसे पूर्ण फल प्रदान करते हैं। इस माह शिव¨लग का रुद्राभिषेक करना ऐसा है मानो खुद अमृतपान करना हो। अर्थात जो इस माह रुद्राभिषेक करता है समझो उसने अमृतपान कर लिया है। स्वामी जी ने कहा कि इस माह शिव भगवान की परिक्रमा, पंचाक्षर मंत्र का जाप, भोलेनाथ को नमन व जाप करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और कृपा करते हैं। उन्होंने कहा कि समता के बिना जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। हर्ष में फूलना तथा दु:ख में रोना जीवन की विषमता है। अपनी ¨नदा सुनकर बुरा लगना और प्रशंसा सुनकर प्रसन्न होना विषमता से भरा जीवन है। समता का आनंद ही कुछ और है। समतावान व्यक्ति ¨नदा और प्रशंसा, बदनामी और प्रतिष्ठा, आलोचना और प्रसिद्धि के क्षणों में भी नहीं घबराते और न ही कभी फूलते हैं। स्वामी जी ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी को ग्वाले ने कानों में कीलें ठोककर पीड़ा दी थी। मगर उनके मन में ग्वाले के प्रति कोई द्वेष नहीं था। इंद्र ने महावीर की स्तुति की तो उन्हें इस बात का हर्ष भी नहीं हुआ। महावीर जैसी आत्माएं हीं परमात्म स्वरूप में स्थित होती हैं क्योंकि परमात्मा का स्वभाव समता का है। समतावान व्यक्ति जीते जी ही इस संसार से मुक्त हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.