धान की पराली को इस्तेमाल में लाया जा सकता है: डॉ. संधू
जासं, फरीदकोट धान व गेहूं की फसली काश्तकारी रकबे का 60 प्रतिशत हिस्से में अपनाया जाता है। गेहूं की
जासं, फरीदकोट
धान व गेहूं की फसली काश्तकारी रकबे का 60 प्रतिशत हिस्से में अपनाया जाता है। गेहूं की कटाई के बाद खेत में पड़े नाड़ की तूड़ी बना कर किसानों की ओर से इस्तेमाल में ली जाती है, परंतु धान की नाड़ को किसानों द्वारा आग लगा दी जाती है। जिससे खेत की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है। इस नाड़ को जलाने के बजाए नई तकनीक द्वारा जमीन में ही गलाया जा सकता है। यह जानकारी डॉ. आत्मा सिंह संधू मुख्य खेतीबाड़ी विभाग फरीदकोट ने दी।
उन्होंने कहा कि किसान नई कृषि तकनीक का इस्तेमाल करके धान की नाड़ को जमीन में ही गला कर पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं। जिससे जमीन की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि धान की कटाई के बाद जो पराली प्राप्त होती है। उसे इस्तेमाल में लाने के लिए संबंधी पैडी स्टरा चोपर कम शरेंडर तकनीक तैयार की गई है। जो धान की पराली को खेत में ही कतरा कतरा कर खेत में ही खिलार देती है। जिसके बाद उस पर गेहूं की बिजाई जीरोटिल डरिल या हैपी सिडर तकनीक से की जा सकती है। इस तकनीक द्वारा पराली को इस्तेमाल में लाया जा सकता है। डॉ. अमनदीप केशव प्रोजेक्ट डायरेक्टर आत्मा ने बताया कि धान की कटाई के बाद गेहूं की बिजाई में कम समय होने से किसान पराली को आग लगा देते हैं। जिसके चलते जमीन के अंदर जरूरी तत्व नष्ट हो जाते हैं और जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। जिससे जनजीवन व आवाजाई भी प्रभावित होती है। वहीं जमीन में सुक्षमजीव व अन्य मित्र कीट पतंगे खत्म हो जाते हैं।
डॉ. आत्मा सिंह ने किसानों को बताया कि इस तकनीक का महत्वता को देखते हुए इस तकनीक को अपने खेतों में अपनाना चाहिए। इस मौके पर डॉ. भूपेश जोशी, इंजीनियर हरचरण सिंह, हरप्रीत सिंह के अलावा अलग अलग गांवों के किसान हाजिर थे।