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डीजीपी के पीए के लाडले को बचाने के लिए दंपती से 50 हजार में समझौता

रोहित कुमार, मोहाली : पंजाब पुलिस मुख्यालय में डीजीपी अमले में तैनात इंस्पेक्टर कुलबिंदर सिंह (सीनिय

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 01:00 AM (IST)
डीजीपी के पीए के लाडले को बचाने के लिए दंपती से 50 हजार में समझौता
डीजीपी के पीए के लाडले को बचाने के लिए दंपती से 50 हजार में समझौता

रोहित कुमार, मोहाली : पंजाब पुलिस मुख्यालय में डीजीपी अमले में तैनात इंस्पेक्टर कुलबिंदर सिंह (सीनियर असिस्टेंट) के लाडले को आखिर मोहाली पुलिस ने बचा ही लिया। जिस दंपती को अपनी एसयूवी कार से नाबालिग ने टक्कर मारी थी, उनसे पचास हजार रुपये में समझौता कर लिया गया है। मोहाली पुलिस आम केसों में शपथ पत्र नहीं लेती लेकिन इस एक्सीडेंट केस में दंपती से हलफिया बयान लिया गया है। बयान में ये भी लिखवा लिया गया कि इसके बाद अगर कोई पक्ष कार्रवाई करना चाहेगा तो ये सिर्फ झूठे आरोप होंगे। वहीं, पुलिस सूत्रों के मुताबिक जिस समय हादसा हुआ, उसमें इंस्पेक्टर का बेटा अकेला नहीं बल्कि उसके साथ दोस्त भी थे, कार काफी रफ्तार में थी। जो नाबालिग गाड़ी चला रहा था, वह खरड़ की गोविंद कॉलोनी का रहने वाला है। उसके पास दुघर्टना के समय न तो लाइसेंस था और न ही वाहन के दस्तावेज। सूत्रों के मुताबिक औद्योगिक क्षेत्र फेज-8 में जब लोगों ने नाबालिग को पुलिस के हवाले किया तो मामले के आइओ राजीव कुमार मौके पर पहुंचे। नाबालिग ने बताया कि उसके पिता पंजाब पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा के साथ लगे हैं। जिसके बाद फोन पर थाने के पुलिस कर्मचारियों ने पिता से बात करवाई और नाबालिग को छोड़ दिया।

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खरड़ थाने का हवाला दे वापस ले लिया मामला

आइओ राजीव कुमार से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि मुझे पुलिस मुख्यालय से फोन आया था। डीजीपी साहब का पीए बोल रहा हूं। इसके बाद मैंने एसएचओ को मामले की जानकारी दे दी। उन्होंने मामला खरड़ थाने की बात कह आगे की कार्रवाई वहा होने की बात कह मुझसे वापस ले लिया। जबकि युवक को औद्योगिक क्षेत्र फेज-8 में पकड़ा गया था तो वहा कार्रवाई होनी चाहिए थी।

तीन साल में 1100 लोगों की गई जान

मोहाली पुलिस सड़क हादसों में चालान पेश करने में नाकाम साबित हो रही है। जिले में 300 से ज्यादा मामलों में चार्जशीट ही फाइल नहीं हुई। वहीं, पिछले तीन साल में सड़क दुर्घटनाओं में 1100 लोगों की जान गई है। 600 से ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं में घायल हुए हैं।

700 मामलों में आरोपियों को ढूंढ़ ही नहीं पाई पुलिस

जनवरी 2013 से दिसंबर 2016 तक दो हजार से ज्यादा सड़क हादसे रिपोर्ट किए गए। 700 मामलों में पुलिस आरोपियों तक ही नहीं पहुंच पाई। जिस कारण मामले अदालत में पहुंचे ही नहीं। खरड़ थाना सबसे ऊपर है जिसमें 227 मामलों में चार्जशीट फाइल ही नहीं की गई। इन हादसों में 114 लोगों की जान गई। 12 मामलों में चालान पेश किए गए। दो मामले रद किए गए जबकि 23 मामले आउट ऑॅफ कोर्ट सेटल कर दिए गए।

समझौते के लिए पुलिस नहीं बना सकती दबाव

कानून से जुड़े लोगों का कहना है कि लोग बाहर ही समझौता कर लेते हैं। इसलिए आरोपियों को सजा नहीं मिलती। एडवोकेट ऋषिपाल ने बताया कि अगर सड़क हादसों को रोकना है तो समझौता करने के बजाय मामले को कोर्ट में ले जाना चाहिए। लेकिन लंबी कानूनी प्रक्रिया और कोर्ट में आने के डर से लोग बाहर ही मामले को रफा-दफा कर लेते हैं। ऐसे में बच्चों के हौसले बुलंद होते हैं जोकि गलत है। एडवोकेट दीक्षात ने कहा कि इस मामले में पुलिस को कानून के हिसाब से काम करना चाहिए। पुलिस समझौते के लिए दबाव नहीं बना सकती।


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