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बैंकों की हड़ताल का दिखा असर, ट्राईसिटी में 10 हजार करोड़ का काम प्रभावित

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : बैंकों के निजीकरण के विरोध में शुक्रवार को देशभर के 10 लाख से ज्यादा बैंक

By Edited By: Published: Fri, 29 Jul 2016 09:00 PM (IST)Updated: Fri, 29 Jul 2016 09:00 PM (IST)
बैंकों की हड़ताल का दिखा असर, ट्राईसिटी में 10 हजार करोड़ का काम प्रभावित

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : बैंकों के निजीकरण के विरोध में शुक्रवार को देशभर के 10 लाख से ज्यादा बैंककर्मी हड़ताल पर रहे। हड़ताल का असर चंडीगढ़ में देखने को मिला, ट्राईसिटी के अलग-अलग बैंकों के करीब 2000 बैंककर्मियों ने सेक्टर-17 के बैंक स्क्वायर पर इकट्ठे हुए और केंद्र सरकार की नीतियों की जमकर आलोचना की और बैंकों के निजीकरण और श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध किया। युनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के बैनर तले इकट्ठे हुए बैंककर्मियों ने इस हड़ताल को सांकेतिक बताया और भविष्य में उनकी अनदेखी करने पर अपना आंदोलन तेज करने के संकेत दिए। उधर, पंजाब नेशनल बैंक ऑफिसर एसोसिएशन के आर्गेनाइजेशन सेक्रेट्री अशोक गोयल ने बताया कि ट्राईसिटी में रोजाना 10 हजार करोड़ रुपये की बैंकिंग होती है, ऐसे में बैंकों के बंद रहने से 10 हजार करोड़ रुपये का कामकाज रूका।

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ऑल इंडिया स्टेट बैंक ऑफ स्टाफ फेडरेशन के महासचिव संजीव कुमार बंदिश ने बताया कि सरकार अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के दबाव के चलते भारत के सरकारी बैंकों का निजीकरण करने जा रही है, जबकि हकीकत यह है कि सरकारी बैंकों की स्थिति काफी अच्छी है, लेकिन सरकार जानबूझ कर बैंकों की खस्ताहालत बताकर इनका निजीकरण कर बैंकिंग क्षेत्र में एफडीआइ को बढ़ावा देना चाहता है, इससे दो तरह के नुकसान है एक तो बैंकों का दायरा केवल मेट्रो शहरों में बढ़ेगा, दूसरा बैंक कर्मी के हितों का नुकसान होगा।

अतंरराष्ट्रीय दबाव में है सरकार

बीईएफआइ के महासचिव डीके चौधरी ने बताया ने बताया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार देश में तो कहती है कि बैंकों का निजीकरण से बड़े बैंकिंग क्षेत्र का दायरा बढ़ेगा और इससे खस्ता हालात में चल रहे बैंकों की दशा में सुधार होगा, वहीं, विदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बैंक व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों को रिझाने के लिए जनधन योजना और वित्तीय संकट के समय भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के बेहतर प्रबंधन की प्रशंसा करते हैं, ऐसे में साफ जाहिर है कि सरकार पूंजीपति देशों के दबाव में बैंकिंग क्षेत्र के निजीकरण करने जा रही है।

डिफाल्टरों के खिलाफ आपराधिक धारा के तहत हो कार्रवाई

ऑल इंडिया स्टेट बैंक ऑफ स्टाफ फेडरेशन के सचिव जगदीश राय ने बताया कि सरकार वित्तीय सुधारों के नाम पर बैंकों का निजीकरण करने जा रही है, जबकि हकीकत यह है कि बैंकों की वित्तीय स्थिति ठीक है और अगर कहीं नुकसान हो भी हो रहा है तो उसमें भी सरकार ही जिम्मेदार है। मौजूदा समय में देश के 8 हजार लोगों के पास 80 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम फंसी हुई है। व्यवसायी हजारों करोड़ रुपये कर्ज लेकर मजे से घूम रहे हैं, जबकि किसान कुछ हजार रुपये के कर्ज के चलते अपनी जान दे रहे हैं।

श्रम कानूनों में बदलाव बर्दाश्त नहीं

ऑल इंडिया स्टेट बैंक ऑफ स्टाफ फेडरेशन के संयोजक एचबीएस बतरा ने बताया कि सरकार की योजनाएं दमनकारी है, छोटे बैंकों के साथ बड़े बैंकों का फायदा सिर्फ विदेशी बैंकों को होगा, भारतीय बैंकों को नहीं। उन्होंने कहा कि यह बड़े बैंक केवल मेट्रो शहरों में अपनी शाखाएं चलाएंगे, जबकि छोटे बैंक ग्रामीण और उन जगहों पर अपनी बैंकिंग सेवाएं दे रहे हैं। मौजूदा समय की भारत सरकार विदेशी नीतियों के हिसाब से अपनी योजनाएं बना रहे हैं। इसी श्रेणी में श्रम कानूनों में बदलाव किया जा रहा है जिससे उत्पीड़न और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि जल्द इस बाबत उनकी मीटिंग सरकार के नुमाइंदों से होने जा रही है अगर सहमति नहीं बनी तो वह आने वाले दिनों में अपना आंदोलन तेज करेंगे।

हड़ताल का दिखा पूरा असर

स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के ऑफिसर यूनियन के जोनल सेकेट्री हरमिंदर सिंह ने बताया कि हड़ताल के चलते स्टेट बैंक पटियाला की तकरीबन 100 करोड़ रुपये की बैंकिंग प्रभावित रही। उन्होंने बताया कि चंडीगढ़ में उनकी 35 शाखाएं हैं, जो पूरी तरह से दिनभर बंद रही। उपभोक्ताओं को दिक्कत न हो, इसके लिए बैंक ने चंडीगढ़ में स्थित अपने सेक्टर-46 एटीएम में पहले ही कैश डलवा दिया था।

लोगों को हुई खासी परेशानी

बैंकों के बंद रहने से लोगों को खासी परेशानी हुई। इस दौरान लोगों को चेक लगाने, बैंक में पैसे जमा करवाने, भेजने व अन्य संबंधित काम रूके रहे। श्याम लाल ने बताया कि उन्होंने शुक्रवार को एक जरूरी चेक लगाना था, लेकिन बैंक बंद होने की वजह से वह चेक नहीं लगा पाए, जिसकी वजह से उन्हें खासी परेशानी हुई।


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