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पैसा पब्लिक का लगना है, किसी भी जेब से निकले पर लोगों को सुविधाएं तो मिले

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : हाईकोर्ट ने चंडीगढ़-अंबाला राष्ट्रीय राजमार्ग से निकलने वाले खरड़ बाईपास प

By Edited By: Published: Sun, 24 Jul 2016 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jul 2016 01:00 AM (IST)
पैसा पब्लिक का लगना है, किसी भी जेब से निकले पर लोगों को सुविधाएं तो मिले

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : हाईकोर्ट ने चंडीगढ़-अंबाला राष्ट्रीय राजमार्ग से निकलने वाले खरड़ बाईपास पर एलीवेटेड हाईवे बनाने में हो रही देरी पर कड़ा रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने एनएचएआइ को कड़ी फटकार लगाते हुए अगली सुनवाई के दौरान उनके जीएम टेक्रिकल और प्रोजेक्ट डायरेक्टर को हाईकोर्ट में तलब किया है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पिछली सुनवाई के दौरान सैद्धातिक रूप से मंजूरी देने के बावजूद डेढ़ माह से कोई बैठक तक नहीं हुई और न ही कोई अधिकारी यहा मौजूद है। ऐसे में अगली सनुवाई से पूर्व अपने जवाब के साथ दोनों अधिकारी मौजूद रहे। मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने एमसी जीरकपुर से पूछा कि एलीवेटेड हाईवे को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं। इस पर एमसी ने गेंद एनएचएआइ के पाले में डाल दी। कोर्ट ने इसपर एनएचएआइ की ओर से मौजूद काउंसिल से पूछा कि इस बारे में जवाब क्यों नहीं दाखिल किया गया।

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समय मांगने पर कहा, पहले आपकी नींद क्यों नहीं टूटी

इस पर एनएचएआइ के काउंसिल ने कहा कि उन्हें कुछ समय दिया जाए. इस पर हाईकोर्ट ने एनएचएआइ को फटकार लगाते हुए कहा कि 13 मई को अथॉरिटी ने कोर्ट में स्वीकार किया था कि एलीवेटेड हाईवे का निर्माण किया जाना है। जब इस दिशा में आगे बढ़ने का समय था, उस समय एनएचएआइ की नींद नहीं टूटी. लगभग डेढ़ माह से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी एनएचएआइ एक मीटिंग तक नहीं करवा पाया है। इस पर हाईकोर्ट ने पूछा कि एनएचएआइ का कौन सा अधिकार कोर्ट में मौजूद है। काउंसिल ने बताया कि इस समय कोई अधिकारी मौजूद नहीं है।

एमसी से पूछा, फंड की व्यवस्था कैसे करोगे

इस पर हाईकोर्ट ने एमसी जीरकपुर से पूछा कि वे किस प्रकार फंड की व्यवस्था एनएचएआइ को करेंगे। एमसी जीरकपुर ने कहा कि वे इसके लिए तैयार हैं। हाईकोर्ट ने इस पर एनएचएआइ से कहा कि देश भर में प्रोजेक्टों पर काम किया जा रहा है तो यहा पर इतनी देरी क्यों हो रही है। पैसा पब्लिक का लगना है भले ही केंद्र का लगे या राज्य का लोगों की दाईं जेब से पैसा निकले या बाईं जेब से, उन्हें फर्क नहीं पड़ता लेकिन आखिर उन्हें उस पैसे की कीमत के रूप में सुविधाएं भी तो मिलनी चाहिए।


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