जब मेरी कविताओं की डायरी रद्दी वाले को दे दी तो बड़ा दुख हुआ : लूथरा
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : लिखने का शौक बचपन से था लेकिन इस लेखनी को कभी गंभीर नहीं लिया। ऐसे में एक
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : लिखने का शौक बचपन से था लेकिन इस लेखनी को कभी गंभीर नहीं लिया। ऐसे में एक समय ऐसा आया जब मैं सिविल का पेपर देने के लिए बाहर गया हुआ था और जब वापस आया तो देखा कि एक डायरी मुझे नहीं मिल रही है। काफी समय तक उसे ढूंढने के बाद घर वालों ने बताया कि उसे तो रद्दी वाले को दे दिया। यह सुनकर मुझे सबसे ज्यादा दुख हुआ क्योंकि वह पूरी डायरी मैंने कविताओं से लिखकर भरी हुई थी। यह कहना था आइजी तेजिंदर सिंह लूथरा का। लूथरा रविवार को यूटी गेस्ट हाउस में आयोजित रूबरू कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने जहां जीवन के कई पलों को पत्रकारों और आला अधिकारियों के साथ साझा किया वहीं कविताएं भी सुनाई। उन्होंने बताया कि उनका पहला काव्य संग्रह 2012 में आया और आने वाले साल में जल्द ही और भी काव्य संग्रह आने वाले हैं।
मुंबई के हमलों से आई गंभीरता
साहित्यक रचनात्मक को लेकर आइजी बोले कि 26/11 में हुए मुंबई हमलों के बाद विचलित हो गए और कविताओं को गंभीरता से लिखना शुरू किया। इससे पहले कभी भी गंभीर होकर कविताएं नहीं लिखीं थीं। उन्होंने बताया कि आज जो उनकी कविताओं का विषय होता है वह आम आदमी के संषर्ष व जीवन से प्रेरित होता है।
कविता लिखने के लिए समय की जरूरत नहीं
जब आइजी लूथरा से पूछा गया कि पुलिस की नौकरी करते समय कविताओं के लिए किस तरह समय निकाल पाते हैं तो उन्होंने बताया कि उन्हें नहीं लगता है कि कविताओं को लिखने के लिए अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है। लिखने के लिए माहौल की बात करे तो माहौल का होना कोई मायने नहीं रखता। कविता तो आपने आप से बात करने का माध्यम है।
पता नहीं था पुलिस अफसर हैं
चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के वाइस चेयरमैन माधव कौशिक ने अपने विचार रखते हुए कहा कि मेरी मुलाकात तेजिन्द्र लूथरा से दिल्ली में हुए साहित्य कार्यक्रम में कवि के रूप में हुई। लेकिन शहर आने के बाद मुझे पता चला कि यह लूथरा आइजी हैं।