स्तनपान से नहीं ठहरता गर्भ, कैंसर का खतरा भी 25 फीसद कम
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : प्रसव के बाद जितनी जल्दी हो सके, बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए। जितनी देर
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : प्रसव के बाद जितनी जल्दी हो सके, बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए। जितनी देर तक स्तनपान कराया जा सके, कराना चाहिए। डॉक्टरों की राय है कि इससे महिलाओं में कैंसर का खतरा घटता है। 25 फीसद तक इससे कैंसर केसों में कमी आती है। यूट्रीन और ऑवेरियन कैंसर में स्तनपान से महिलाओं में एस्ट्रोजन (हारमोन) लेवल घटता है। इससे इन कैंसरों की चपेट में आने का खतरा भी कम हो जाता है। ऑस्टीयोपरोसिस और तमाम फ्रेक्चर्स में भी स्तनपान कराने से बचाव रहता है। स्तनपान नहीं कराने वाली महिलाओं में फ्रेक्चर्स का खतरा चार गुना अधिक होता है। स्तनपान को नेचुरल गर्भनिरोधक भी माना जाता है। छह महीने तक अगर महिला बच्चे को स्तनपान कराती है तो उन्हें गर्भ नहीं ठहरता। महिलाओं में इससे भावनात्मक स्थिरता आती है और नवजात के साथ उसका रिश्ता भी मजबूत होता है। स्तनपान कराने वाली महिलाओं मे तनाव भी कम होता है। स्तनपान से प्रसव के बाद वजन घटने का खतरा कम होता है। पीजीआइ सहित तमाम अस्पतालों में शहरी व ग्रामीण परिवेश की महिलाओं को ये बेसिक व जरूरी जानकारियां दी जा रही हैं।
11 नवजातों की मौत हो जाती है जन्म के पहले माह में
भारत में 11 नवजातों की मौत उनके जन्म के पहले ही महीने में, जबकि करीब 5 लाख बच्चों की मौत 2 से 12 महीने की उम्र में हो जाती है। ऐसे में यहा तो स्तनपान की ज्यादा जरूरत है। नियोनेटल संबंधी मृत्यु दर सभी पाच मौतों में करीब 40 फीसद, जबकि नवजातों के मामले में 60 फीसदी होती है। 'करीब 80-90 माताओं को यह लगता है कि उनका पहला दूध, जो पानी की तरह पतला और रग में पीलापन लिए होता है, उनके नौ महीनों के गर्भकाल के दौरान जमा हुआ दूध होता है जो बच्चे को पिलाना खतरनाक हो सकता है।
मां का दूध पहले दिन से ही पिलाएं
चूंकि वे अपना पहला दूध निकाल देती है और उसे फेंक देती है और आमतौर पर बच्चे को दूध पिलाना दो-तीन दिनों बाद शुरू करती है। यह सरासर एक भ्राति है और मा का पहला दूध असल में बच्चे के लिए बेहद फायदेमंद होता है। यह दूध उपयोगी खनिजों से भरा होता है और इसमें पौष्टिक तत्व मिले होते हैं जिसका मुकाबला किसी भी अन्य बनावटी दूध से नहीं हो सकता। पर्याप्त मात्रा में मा का दूध मिल जाने से बच्चे की सभी पौष्टिक जरूरतें पूरी हो जाती है।
दूध मनोवैज्ञानिक और शारीरिक जरूरतों को करता है पूरा
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. ऋतंभरा व डॉ. सोनिया गांधी के अनुसार नवजात के जोखिम को देखते हुए मा का दूध उसकी मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक जरूरतों को पूरा करता है। शुरुआत में स्तनपान बेहद जरूरी होता है क्योंकि उससे न सिर्फ मा की दुग्ध क्षमता में विकास होता है बल्कि बच्चे की सेहत के लिए भी यह फायदेमंद होता है। महिलाओं में अनूठे किस्म की पौष्टिक जरूरतें होती है। जैसे-जैसे जिंदगी बढ़ती है, ये जरूरतें भी बढ़ती जाती है।
स्वास्थ्यवर्धक खुराक से मिलती है ऊर्जा
एक स्वास्थ्यवर्धक खुराक से ऊर्जा मिलती है, मूड सही रहता है और वजन भी बराबर रहता है। स्वास्थ्यवर्धक खानपान से पीएमएस में कमी आती है, उर्वरकता बढ़ती है, दबाव झेलना आसान हो जाता है, गर्भधारण और देखभाल में आसानी होती है और मीनोपॉज के लक्षणों में सुधार आता है।