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मालवा की विरासत को संजोए रखा सीयूपी म्यूजियम

साहिल पुरी, बठिंडा बेशक लोग अपनी विरासत व इतिहास को भुलते जा रहे हैं, लेकिन पुरातत्व खोज विज्ञानी

By Edited By: Published: Sat, 20 Dec 2014 07:10 PM (IST)Updated: Sat, 20 Dec 2014 07:10 PM (IST)
मालवा की विरासत को संजोए रखा सीयूपी म्यूजियम

साहिल पुरी, बठिंडा

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बेशक लोग अपनी विरासत व इतिहास को भुलते जा रहे हैं, लेकिन पुरातत्व खोज विज्ञानी प्रो. सुभाष परिहार तीस साल से मालवा की विरासत व पंजाब के इतिहास के पन्नों को खंगालने में जुटे हैं। इन दिनों केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में उनकी ओर से तैयार म्यूजियम मालवा की विरासत व इतिहास का गवाह बन रहा है। जिसमें एक ही छत के नीचे पंजाबी विरासत की झलक मिलने के साथ ही हड़प्पा सभ्यता, काली बंगा, सिरकप्प, पलेवा व अन्य जगह से प्राप्त 400 साल से अधिक पुराने प्रमाण संभाल कर रखे गए हैं। यह म्यूजियम अपने आप में मालवा का सबसे बड़ा म्यूजियम माना जा रहा है।

इस म्यूजियम में पंजाबी विरासत से संबंधित सौ से अधिक वस्तुओं को रख गया है। जिसमें पुराने समय में घरों में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के अलावा व्यापार से संबंधित वस्तुएं शामिल हैं। इसके अलावा बठिंडा के सबसे पुरानी फोटो व पुरानी इमारतों की खूबसूरत तस्वीरों को कैमरे में कैद कर रखा है। म्यूजियम में प्राचीन समय में प्रयोग होने वाले चरखों के साथ 19 फीट लंबा गांधी चरखा भी शोभा बढ़ा रहा है।

पुरातन बठिंडा का प्रमाण भी म्यूजियम में शामिल

बठिंडा के नाम के साथ कई काल्पनिक कहानियां जुड़ी हैं, लेकिन प्रो. सुभाष परिहार ने इस म्यूजियम में बठिंडा के पुरातन नाम का लिखित प्रमाण शामिल किया है। हालांकि असल पत्थर पर लिखित अभिलेख पाकिस्तान के लाहौर म्यूजियम में रखा गया है। जिसकी तस्वीर प्रमाण के तौर पर सीयूपी म्यूजियम में रखी गई है। इस प्रमाण में बठिंडा का सबसे पुरातन नाम त्रिभंडानापुर बताया गया है। इसके अलावा म्यूजियम में कई पुरानी पुस्तकों, दस्तावेज व बर्तनों का संग्रह किया गया है।

50 से अधिक शोध पेपर, सात पुस्तकें लिख चुके हैं प्रो. परिहार

पैंतीस साल के सफर में प्रो. सुभाष परिहार 50 से अधिक शोध पत्र लिख चुके हैं, जोकि भारत सहित इटली, नीदरलैंड, इंग्लैंड व पाकिस्तान में प्रकाशित हो चुके हैं। वे इन दिनों अपनी सातवीं पुस्तक मुस्लिम आर्किटेक्चर ऑफ पंजाब 1206 से 1707 में पंजाब में मुस्लिमकाल में बनी आलीशान इमारतों पर खोज करने में व्यस्त हैं। इससे पहले वे अपनी पुस्तक आगरा टू लाहौर जीटी रोड व पुस्तक सरहिंद में पंजाब के इतिहास से जड़ी अहम जानकारियों को पाठकों को दे चुके हैं।

उनका कहना है कि किसी इतिहास को लेकर लोगों में झूठी कहानियां जुड़ी होती हैं, लेकिन उन्होंने अपनी सभी पुस्तकों में प्रमाणों की तस्वीर व अन्य अहम जानकारियां देकर लोगों तक अहम जानकारियां पहुंचाने की कोशिश की है।


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