श्री सिकंदर जी ध्यानार्थ.. बचपन को मिला सतनाम का सहारा
नितिन धीमान, अमृतसर वर्ष 1998 की रात। दस बज चुके थे। मूसलाधार बारिश हो रही थी। हाथी गे
नितिन धीमान, अमृतसर
वर्ष 1998 की रात। दस बज चुके थे। मूसलाधार बारिश हो रही थी। हाथी गेट निवासी सतनाम सिंह और उनका परिवार सोने की तैयारी में था। अचानक डोर बेल बजी। दरवाजा खोला तो देखा कि एक वृद्ध महिला बाहर खड़ी थी। बारिश के कारण भीग चुकी थी। बदहवास सी इस महिला ने कहा- साहब मेरे बेटे को थैलेसीमिया रोग है। आज उसे खून की जरूरत थी। सब जगह से निराशा हाथ लगी है, आप मेरी मदद कर दीजिए। महिला की हालत देखकर सतनाम ने उसी क्षण अपने एक परिचित को फोन किया और खून का बंदोबस्त करने के लिए कहा। करीब आधे घटे बाद इस महिला को खून उपलब्ध करवा दिया गया।
बेशक यह महिला सतनाम के लिए अपरिचित थी, लेकिन उन्हें एक प्रेरणादायी संदेश दे गई। यही प्रेरणा उनके लिए प्रण बनी। असल में लोग इस महिला को 'खून मागने वाली औरत' कहते थे, क्योंकि वह अपने बेटे को बचाने के लिए हर व्यक्ति से खून मागा करती थी। इस घटना के बाद सतनाम ने प्रण लिया कि अब वह ऐसी व्यवस्था बनाएंगे कि खून की वजह से किसी बच्चे की जान नहीं जाएगी। सतनाम ने इस महिला का फोन नंबर लिया और हर तरह से मदद का आश्वासन दिया। वृद्धा हर महीने उनके घर आती और खून लेकर चली जाती।
अपना संकल्प पूरा करने के लिए सतनाम ने 1998 में 'अमृतसर थैलेसीमिया सोसाइटी' का गठन किया। इस संस्था में ऐसे 12 लोगों को शामिल किया गया, जिनके बच्चे थैलेसीमिया जैसी घातक बीमारी से ग्रसित थे। अब सवाल यह था कि आखिर बच्चों के लिए हर माह खून की व्यवस्था कैसे की जाए? कुछ दिन तक तो सरकारी अस्पतालों के ब्लड बैंकों से खून लेते रहे, लेकिन अस्पतालों में भी खून का स्टॉक कम ही रहता था। ऐसे में संस्था के सदस्य खून रक्तदान करके बूंद-बूंद रक्त सहेजने लगे। यह खून थैलेसीमिया प्रभावित बच्चों को दिया जाने लगा। धीरे-धीरे उनका कुनबा बड़ा होता गया। इस रोग से ग्रसित 150 बच्चों के अभिभावक सोसाइटी के साथ जुड़ गए। सभी सदस्यों ने प्रण लिया कि प्रतिवर्ष चार बार गुरुनानक देव अस्पताल में रक्तदान शिविर लगाकर बच्चों के लिए रक्त एकत्रित करेंगे।
एक सोच ने बच्चों की टूटती हुई सांसों को थाम लिया। सतनाम बताते हैं कि सोसाइटी उन बच्चों को भी रक्त देती है, जिनके परिजन सोसाइटी के सदस्य नहीं हैं। सतनाम बताते हैं कि थैलेसीमिया रोग से ग्रसित बच्चों के शरीर में बार-बार खून बदलना अनिवार्य होता है। अमृतसर, तरनतारन, जालंधर और कपूरथला समेत प्रदेश के कोने-कोने से लोग खून प्राप्त करने के लिए उनके पास पहुंचते हैं। मैं हर रोज उस वृद्ध महिला को नमन करता हूं, जिसकी प्रेरणा ने मुझे इस पुण्य कार्य का भागीदार बनाया।
थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए सरकार की नीति
सतनाम को गिला है कि थैलेसीमिया प्रभावित बच्चों को दवाएं व खून उपलब्ध करवाने के लिए पंजाब सरकार ने कुछ नहीं किया। सरकारी नियम के अनुसार सिर्फ उन बच्चों का इलाज नि:शुल्क हैं जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। सरकार का यह नियम कतई उचित नहीं है। समय पर खून न मिलने के कारण कई बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं।