अब राजनीति में नई जोत जगाएंगे नवजोत!
.क्रिकेट के बाद भाजपा के साथ राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू अब फिर पंजाब की राजनीति में नई जोत जलाने को तैयार हैं।
अमृतसर [अशोक नीर]। क्रिकेट की दुनिया में कभी 'स्ट्रोक लेसÓ प्लेयर कहे जाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने 'सिक्सर प्लेयरÓ के रूप में शानदार इतिहास रचकर आलोचकों का मुंह बंद कर दिया था। वैसा ही कुछ सियासत के मैदान में भी दिखाने जा रहे हैैं। अपनी भारतीय जनता पार्टी के साथ ही गठबंधन में साथ अकाली दल से नाखुश रहे नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा 'स्ट्रोकÓ खेला है।
अप्रैल 2004 में भारत-पाकिस्तान के बीच चल रही क्रिकेट सीरिज के दौरान लाहौर में कमेंट्री कर रहे नवजोत सिंह सिद्धू को अमृतसर संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने चुनाव लडऩे के लिए टिकट देने की घोषणा की थी। सिद्धू अटल बिहारी वाजपेयी के आदेश पर राजनीति में उतरे थे। सिद्धू ने मात्र 18 दिन के चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुनंदन लाल भाटिया को एक लाख दस हजार वोटों से हराकर उनकी राजनीतिक जमीन को हिला दिया था। भाटिया ने छह बार लोकसभा का चुनाव जीता था। बाद में अदालत में चल रहे एक मामले के मद्देनजर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। 2007 के विधानसभा चुनाव के साथ हुए उप चुनाव में सिद्धू ने अमृतसर संसदीय क्षेत्र से ही चुनाव लड़ा था। सिद्धू ने तत्कालीन पंजाब सरकार के वित्त मंत्री सुरेंद्र सिंगला को 70 हजार से अधिक मतों से हराया था।
पढ़ें : राज्यसभा में बीजेपी को झटका, नवजोत सिद्धू का इस्तीफा अमृतसर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतने के बाद सिद्धू ने गुरुनगरी के विकास के लिए एक खाका तैयार किया। तब पंजाब में कैप्टन अमङ्क्षरदर सिंह की सरकार थी। अमृतसर के विकास के लिए जो ब्लू प्रिंट सिद्धू ने तैयार करवाया था, उसको अमलीजामा पहनाने को सिद्धू ने 2007 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल के प्रत्याशियों को जिताने के लिए 200 से अधिक सभाएं प्रदेशभर में की। सिद्धू कहते रहे हैैं कि उन्हें उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की सरकार के गठन के साथ ही वह गुरुनगरी का विकास करवा पाएंगे।
भाजपा को छोड़ ‘आप’ के हुए सिद्धू, देखें तस्वीरें
2009 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू को पार्टी ने पश्चिम दिल्ली से कहीं भी चुनाव लडऩे को कहा, लेकिन सिद्धू ने अमृतसर से ही चुनाव लडऩे को तरजीह दी। सिद्धू का मुकाबला कांग्रेस पार्टी के विधायक ओम प्रकाश सोनी से हुआ। सिद्धू मात्र सात हजार मतों से जीते थे।
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उन्हें यह मलाल रहा है कि उन्होंने गुरुनगरी के विकास के लिए 2007 से लेकर 2012 तक जितने भी प्लान बनाए, उन पर पंजाब सरकार ने कोई भी ध्यान नहीं दिया। सिद्धू ने इसका विरोध किया। यहां तक कि सिद्धू ने भूख हड़ताल रखने की घोषणा कर दी थी जिससे भाजपा हाईकमान में हड़कंप मच गया था। सिद्धू को विकास के काम करवाने के जो आश्वासन मिले थे वह फिर पूरे ना हुए। इसी बीच सिद्धू की भाजपा के प्रदेश स्तर के नेताओं के साथ दूरियां बढऩे लगीं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कमल शर्मा व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के दरबार में सिद्धू का हर फैसला नजरंदाज होता गया।
2014 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू की टिकट काटकर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को अमृतसर से चुनाव लड़ाया गया। अरुण जेटली कैप्टन अमङ्क्षरदर सिंह के बीच हुए चुनावी युद्ध में सिद्धू ने न तो जेटली का चुनाव प्रचार किया और न ही वोट डालने के लिए आए। सिद्धू की पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू के हलके से जेटली 35 हजार से अधिक मतों से हार गए थे। अमृतसर से टिकट कटने पर सिद्धू व अरुण जेटली के बीच दूरियां बढ़ गईं थी। जबकि इससे पहले सिद्धू जेटली को राजनीतिक गुरु का सम्मान देते थे।
सिद्धू की टिकट कटवाने में अकाली-भाजपाई हुए थे एकजुट
2014 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू को अमृतसर संसदीय क्षेत्र से टिकट न मिले, इसके लिए अकाली दल व भाजपा नेताओं के बीच साठगांठ हो गई थी। सिद्धू को टिकट न दी जाए, इसके लिए एक पत्रकार सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस पत्रकार सम्मेलन के आयोजन पर सिद्धू ने पार्टी हाईकमान के समक्ष गहरी आपत्ति दर्ज कराई। इसके बाद सिद्धू ने स्पष्ट किया कि था कि यदि पार्टी कहेगी तो वह चुनाव लड़ेंगे।
इसके बावजूद उन्होंने भाजपा के लिए हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में प्रचार किया और दोनों जगह पार्टी को काफी अच्छी जीत हासिल हुई।
2012 में मजीठिया व सिद्धू में था टकराव
2012 के नगर निगम के चुनाव में सिद्धू और अकाली नेता व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के बीच टकराव हो गया था। सिद्धू भाजपा के कुछ अपने समर्थकों को चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन अकाली दल ने इन वार्डों पर अपना हक जताया। सिद्धू कहते रहे हैं कि अकाली दल ने भाजपा के नेताओं को हराने के लिए अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए। उन्होंने बाकायदा पत्रकार सम्मेलन कर बिक्रम मजीठिया पर गंभीर आरोप लगाए थे।
स्थानीय स्तर पर भी असहज स्थिति रही
सिद्धू को अमृतसर में ही कई कार्यक्रमों में नजअंदाज किया जाता रहा और इससे तल्खी और बढ़ती गई। नतीजतन वे और उनकी पत्नी काफी मुखर होते गए और इसका अंजाम यह हुआ कि उन्होंने राज्यसभा की सीट तक छोड़ भाजपा को झटका दे दिया।
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