4-5) ढलियारा में हुए बस हादसे में बहादुर शैली ने बचाई 60 जिंदगियां
नितिन धीमान, अमृतसर : बच्चों को मोबाइल पर मशगूल देखकर अभिभावकों के मुंह से यही निकलता है-पूरा दिन इस
नितिन धीमान, अमृतसर : बच्चों को मोबाइल पर मशगूल देखकर अभिभावकों के मुंह से यही निकलता है-पूरा दिन इसी से चिपके रहते हो, पढ़ाई-लिखाई भी कर लिया करो। वर्चुअल वर्ल्ड में अपनों व बेगानों से कनेक्ट में रहने की ललक के चलते बच्चे अभिभावकों की इस झिड़की की परवाह नहीं करते। निश्चित ही मोबाइल का ज्यादा प्रयोग बच्चों पर विपरीत प्रभाव डालता है, लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि 14 साल की एक बच्ची ने मोबाइल का सदुपयोग करके कई लोगों की जान बचाई है।
दरअसल, हिमाचल प्रदेश के ढलियारा में हुए हादसे के बाद आपातकालीन सहायता मंगवाने वाली 14 साल की शैली भगत थी। यह बच्ची भी अपनी मां कुसुम के साथ बस में सवार थी। गुरुनानक देव अस्पताल अमृतसर में दाखिल शैली बताती है कि मैं मोबाइल पर मैसेज देख रही थी। अचानक हमारी बस हिचकोले खाने लगी। मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले ही जोरदार धमाके से बस सड़क से नीचे उतर गई और पलटते हुए खाई में जा गिरी। मैं अपनी मां के साथ सबसे अगली सीट पर बैठी थी। पीछे की सभी सीटें मुड़कर हम पर आ गई थीं। मैं और मां इन सीटों के नीचे दब गईं। पीछे बैठे लोग भी सीटों के अंदर फंसे हुए थे। बस खाई मे गिरी थी और बाहर निकलने का कोई रास्ता भी न था। बस में चीखो—पुकार मच चुकी थी।
सीट के नीचे दबे—दबे मैंने अपनी मां से पूछा कि आप ठीक हो। मां ने हां में उत्तर दिया। मेरे हाथ में मोबाइल जस का जस था। मैंने किसी तरह अमृतसर में पापा को फोन लगाया और घटना की जानकारी दी। इसके बाद गूगल पर हेल्पलाइन नंबर सर्च किए। मेरी टांगें और हाथ सीट के नीचे इस तरह फंसे हुए थे कि पूरी ताकत लगाने के बावजूद भी हिल नहीं पा रही थी। मैंने दाहिने हाथ में मोबाइल पकड़ा था और इसी हाथ की अंगुलियों से नंबर डायल कर दिया। मोबाइल को कान तक नहीं ला सकती थी, इसलिए स्पीकर मोड का ऑप्शन प्रेस कर हेल्पलाइन नंबरों पर बात की।
फोन करने के पंद्रह मिनट बाद ही सरकारी व समाजसेवी संस्थाओं की एंबुलेंस घटनास्थल पर पहुंच गईं। उनके साथ ही पुलिस व आसपास के लोग भी मौके पर आए। इसके बाद राहत कार्य शुरू हुआ। इस दर्दनाक घटना में दस लोगों की मौत हो गई, जबकि 60 से अधिक लोग जख्मी हुए।
अमृतसर के हरिपुरा क्षेत्र में रहने वाली शैली के पिता सुभाष भगत ने बताया कि इस हादसे में शैली की मां के पैर व छाती की हड्डी फैक्चर हुई है। शैली के कंधे व कमर में चोटें लगीं। बेटी की सूझबूझ के कारण 60 लोगों की ¨जदगी बची है। ऐसा नहीं कि यदि बेटी आपातकालीन नंबर सर्च करके फोन न करती तो सहायता न मिलती, लेकिन सहायता मिलने में कुछ और देर लग सकती थी और मौत का आंकड़ा बढ़ सकता था। हालांकि उन्हें मलाल है कि पंजाब सरकार ने घायलों को आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं करवाई। हिमाचल सरकार ने उनकी पत्नी व बेटी को दस हजार का मुआवजा देहरा अस्पताल में ही दे दिया था।
दूसरी तरफ गुरुनानक देव अस्पताल के मेडिकल सुप¨रटेंडेंट डॉ. रामस्वरूप शर्मा ने कहा कि शैली ने बहादुरी और सूझबूझ का परिचय दिया है। अस्पताल प्रशासन द्वारा उसे विशेष सम्मान दिया जाएगा।