कोख में लाल, जमीन पर मां बेहाल
नितिन धीमान, अमृतसर : जमीन पर बैठीं महिलाओं को देखकर जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल की कार्यप्रणाली
नितिन धीमान, अमृतसर : जमीन पर बैठीं महिलाओं को देखकर जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। ये महिलाएं गर्भ से हैं और कोख में पल रहे बच्चे की जांच के लिए सिविल अस्पताल के मदर एंड चाइल्ड केयर सेंटर (एमसीएच) में पहुंची हैं, लेकिन इनकी जांच के लिए अस्पताल में केवल एक ही महिला डॉक्टर है। डॉक्टर के बुलावे के इंतजार में थक-हार कर ये महिलाएं फर्श पर बैठ गई हैं।
जलियावाला बाग मेमोरियल सिविल अस्पताल में गायनी डॉक्टरों की कमी के कारण गर्भवती महिलाओं को बेइंतहा दर्द झेलना पड़ रहा है। सुबह आठ बजते ही महिलाओं का हुजूम यहां उमड़ आता है। अस्पताल में दो गायनी डॉक्टर हैं, जो साढ़े आठ बजे आती हैं। एक डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में डिलीवरी के लिए चली जाती है, जबकि दूसरी इन महिलाओं की जांच के लिए कुर्सी संभाल लेती है। ओपीडी के बाहर सैकड़ों महिलाएं अपनी बारी की प्रतीक्षा करती हैं।
मंगलवार को गर्भवती महिलाओं की संख्या 300 का आंकड़ा पार कर गई। ओपीडी वार्ड में खड़ी महिलाएं घंटों इंतजार करने के बाद थक-हार कर जमीन पर बैठ गई। भीषण गर्मी में कुछ महिलाएं जमीन पर ही लेट गई। सोनिया निवासी रामबाग ने बताया कि वह सात महीने के गर्भ से है। पिछले तीन दिन से यहां चक्कर काट रही है। डॉक्टर तक पहुंच ही नहीं पाती। आज इस उम्मीद से सुबह आठ बजे पहुंची कि जल्दी जाऊंगी तो जल्दी आ जाऊंगी, पर आज भी निराश होकर लौटना पड़ रहा है।
ऐसा तब है जब पंजाब सरकार ने सिविल अस्पताल को प्रदेश को सर्वाधिक डिलीवरी करने और परिवार नियोजन के संदर्भ में नंबर वन अस्पताल घोषित किया है। वास्तविक स्थिति यह है कि एक गायनी डॉक्टर इतनी महिलाओं की जांच करने में अक्षम है। कई बार यह डॉक्टर आवेश में आकर महिलाओं को भला-बुरा भी कह देती है। सोमवार को एमसीएच में कोहराम मच गया। महिलाओं की अत्यधिक संख्या देखकर डॉक्टर ने सुरक्षा कर्मचारी की मदद से महिलाओं को बाहर निकाल दिया था।
दो डॉक्टरों के स्थानांतरण के बाद बढ़ी पीड़ा
स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2014 में मदर एंड चाइल्ड केयर सेंटर का शुभारंभ किया था। इस बहुमंजिला इमारत को अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों से लैस किया गया। दुखद पहलू यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने पिछले माह बिना सोचे समझे दो गायनी डॉक्टरों का स्थानांतरण कर दिया। फिलहाल दो डॉक्टर हैं। अमूमन एक गर्भवती की जांच में कम से कम दस मिनट का समय लगता है। ऐसे में 300 या इससे अधिक महिलाओं की जांच एक दिन में संभव नहीं।
जननी सुरक्षा योजना जैसी महत्वाकाक्षी योजनाओं को क्रियान्वित कर चैन की बासुरी बजा रहा स्वास्थ्य विभाग गर्भवती महिलाओं की पीड़ा को समझ नहीं पा रहा। गर्भस्थ शिशु के साथ-साथ प्रसूता की जान भी जोखिम में है।
डॉक्टरों के जाने से बढ़ी परेशानी : एसएमओ
सिविल अस्पताल के एसएमओ डॉ. राजिंदर अरोड़ा कहते हैं कि डॉक्टरों के स्थानांतरण के कारण परेशानी बढ़ी है। फिलहाल स्वास्थ्य विभाग ने
गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. जसविंदर को पुन: सिविल अस्पताल में भेजा है। उनके आने से इस समस्या का काफी हद तक निदान हो जाएगा। वह विभाग से संपर्क कर रहे हैं, ताकि दो और गायनी डॉक्टर यहां भेजे जाएं। गर्भवती महिलाओं को बिठाने के लिए अतिरिक्त कुर्सियों की व्यवस्था की जा रही है।