अस्पताल में ही लाश बन गए 718 नवजात
नितिन धीमान, अमृतसर सरकारी अस्पताल के आइसीयू में 718 नवजात लाश बन गए। महज तीन वर्षो में ही। यह
नितिन धीमान, अमृतसर
सरकारी अस्पताल के आइसीयू में 718 नवजात लाश बन गए। महज तीन वर्षो में ही। यह दुर्भाग्यवश नहीं हुआ, अपितु समय पर इलाज ना मिलने के कारण इन बच्चों की धड़कनें थमीं। यह खुलासा सूचना अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में हुआ है। आरटीआइ कार्यकर्ता राजिंदर शर्मा राजू ने मंगलवार को मौतों का आंकड़ा प्रस्तुत किया, जो हैरानीजनक है।
उन्होंने बताया कि उत्तर भारत के प्रमुख गुरुनानक देव अस्पताल में इलाज के दौरान नवजात बच्चों और मरीजों की मौत के मामले आए दिन सुर्खियां बन रहे हैं। इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने सूचना अधिकार कानून के अंतर्गत अस्पताल प्रशासन से वर्ष 2010 से 2016 तक हुई मौतों की जानकारी मांगी। 22 मार्च को मांगी गई यह जानकारी देने से अस्पताल प्रशासन ने इंकार करते हुए यह पत्र नगर निगम की झोली में डाल दिया। नगर निगम ने भी पत्र भेजकर कहा कि उनके पास ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। इसके बाद अस्पताल के आरटीआइ विंग ने अपनी गर्दन बचाने के लिए मौत का आधा-अधूरा आंकड़ा प्रस्तुत किया। 2010 की बजाय 2013 से 2016 की समयावधि में हुई मौतों की जानकारी दी गई। इसमें बताया गया कि इन तीन वर्षो में आईसीयू (निक्कू) में 718 नवजात बच्चों की मौत हुई है। राजिंदर शर्मा ने बताया कि इतनी मौतों का आंकड़ा देखकर वह दंग रह गए। इसके बाद मौत के कारणों की पड़ताल करने के लिए उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास किए। खुलासा हुआ कि आईसीयू में वेंटीलेटर की संख्या सीमित होने के कारण कई बच्चों को समय पर वेंटीलेटर नहीं व चिकित्सकीय सुविधा नहीं मिल पाई।
छह साल में 2823 बच्चों की गई जान
आरटीआइ विंग द्वारा जारी दूसरी सूची इससे भी ज्यादा हैरानीजनक है। इसमें बताया गया है कि छह वर्षो में 2823 बच्चों की जान गई। ये बच्चे विभिन्न बीमारियों से ग्रसित थे और उपचार के लिए बच्चा वार्ड में दाखिल किए गए थे। राजिंदर शर्मा के अनुसार इन मौतों का वास्तविक कारण डॉक्टरों की लापरवाही सामने आ रहा है।
209 गर्भवती महिलाओं ने तोड़ा दम
तीसरी सूची में उल्लेख किया गया है कि 2010 से 2016 तक 37,494 गर्भवती गायनी वार्ड में पहुंचीं। इनमें से 209 की मौत हुई। जवाब में यह तर्क भी दिया गया कि डायल-108 एंबुलेंस के जरिए लाई गई कुछ गर्भवती महिलाएं रास्ते में ही दम तोड़ गई। इसी प्रकार मेडिसिन विभाग में 4513, सर्जरी विभाग में 1244, आर्थो विभाग में 150 लोगों की इलाज के दौरान जान गई।
अस्पताल के पास पूरे साधन, योग्य स्टाफ : डॉ. रामस्वरूप
गुरुनानक देव अस्पताल के मेडिकल सुप¨रटेंडेंट डॉ. रामस्वरूप का कहना है कि निसंदेह मौतें हुई हैं, लेकिन इसकी कारण साधनों की कमी नहीं कहा जा सकता। अस्पताल के पास स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की फौज है। वास्तविक स्थिति यह है कि अस्पताल में ज्यादातर वे लोग आते हैं जिन्हें निजी अस्पतालों में इलाज के बाद जवाब दे दिया जाता है। अमृतसर, तरनतारन, पठानकोट, जालंधर यहां तक कि हिमाचल से भी मरीज यहां आते हैं। डॉ. रामस्वरूप ने स्पष्ट किया कि गायनी वार्ड में प्रतिवर्ष 6600 से अधिक डिलीवरी होती हैं। ज्यादातर महिलाएं डिलीवरी के दिन ही पहुंचती हैं। बच्चों के आइसीयू में वेंटीलेटर की पूरी व्यवस्था है, लेकिन कई बार बच्चों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें रेफर कर दिया जाता है।