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1984 anti Sikh riots case: कोर्ट से दो लोग दोषी करार, 20 नवंबर को होगा फैसला

बुधवार को कोर्ट ने दो सिखों की हत्या के मामले में यशपाल सिंह और नरेश सहरावत को दोषी करार दिया। इन हत्या के साथ-साथ दंगा करने और हत्या की कोशिश का मामला भी चल रहा था।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 02:25 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 04:40 PM (IST)
1984 anti Sikh riots case: कोर्ट से दो लोग दोषी करार, 20 नवंबर को होगा फैसला
1984 anti Sikh riots case: कोर्ट से दो लोग दोषी करार, 20 नवंबर को होगा फैसला

नई दिल्ली, जेएनएन। 1984 में हुए सिख दंगों से जुड़े एक मामले में पटियाला हाउस कोर्ट से फैसला सुरक्षित रख लिया  हैैै। दोषी नरेश सहरावत और यशपाल सिंह को दो सिखों की हत्या के लिए कोर्ट ने बुधवार को दोषी करार किया था। बता दें दक्षिणी दिल्ली के महिपालपुर क्षेत्र में 1984 में दो सिखों की हत्या हुई थी। कोर्ट अब इस मामले में 20 नवंबर को फैसला सुनाएगी।

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दक्षिणी दिल्ली के महिपालपुर में दो सिखों की हत्या के मामले में पटियाला हाउस कोर्ट बृहस्पतिवार को फैसला सुनाएगी। इससे पहले कोर्ट ने बुधवार को 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े इस मामले में दो लोगों को दोषी करार दिया था। इसके बाद बुधवार को ही नरेश सेहरावत और यशपाल सिंह को हत्या व अन्य धाराओं के तहत दोषी करार दिए जाने के तुरंत बाद हिरासत में ले लिया गया था। उन्हें दक्षिणी दिल्ली के महिपालपुर में दो सिखों की हत्या का गुनहगार पाया गया है। बताया जा रहा है कि बृहस्पतिवार को कोर्ट दोषियों को सजा देने पर बहस कर अपना फैसला सुना सकती है। दोनों दोषियों को अधिकतम मृत्युदंड और न्यूनतम उम्रकैद की सजा सुनाई जा सकती है। सिख विरोधी दंगों से संबंधित कई मामलों में लंबे समय से चली आ रही सुनवाई के बाद एक मामले में बुधवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडेय की अदालत से फैसला आया।

कोर्ट ने कई सबूतों और अभियोजन पक्ष की दलीलों के बाद नरेश और यशपाल को महिपालपुर में हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या का दोषी पाया। यह मामला हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने दर्ज कराया था। दिल्ली पुलिस ने साक्ष्यों के अभाव में वर्ष 1994 में यह मामला बंद कर दिया था, लेकिन विशेष जांच दल (एसआइटी) ने मामले की दोबारा जांच की। इसके बाद कई लोगों को अलग-अलग अपराध के तहत गिरफ्तार किया गया। सिख विरोधी दंगों से संबंधित कई मामले अलग-अलग अदालतों में विचाराधीन हैं।

गौरतलब है कि 31 अक्टूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी की हत्या उनके अंगरक्षकों ने कर दी थी। अगले दिन ही दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। कई राज्यों में हत्या और आगजनी की वारदात हुईं। दंगों में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

आइपीसी की इन धाराओं में दिया गया दोषी करार

  • 149- गैर कानूनी ढंग से भीड़ जुटाना
  • 324- गंभीर चोट पहुंचाना
  • 302- हत्या
  • 307- हत्या का प्रयास
  • 395- डकैती
  • 436- आगजनी करना 

यहां पर बता दें कि एक दिन पहले ही मंगलवार को दिल्ली से सांसद मीनाक्षी लेखी के नेतृत्व में भाजपा व सिख नेताओं का प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति भवन पहुंचा था और 1984 के सिख विरोधी दंगा पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की मांग की थी। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बताया था कि मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आठ महीने विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया गया था, लेकिन इसके तीसरे सदस्य की नियुक्ति अब तक नहीं होने से जांच नहीं हो पा रही है। एसआइटी के तीसरे सदस्य की नियुक्ति शीघ्र की जाए।

मीनाक्षी लेखी ने कहा था कि 34 वर्षों से दंगा पीडि़त परिवार इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं। पुलिस व अन्य जांच एजेंसियों के उपेक्षापूर्ण रवैये से दंगे के दोषी खुलेआम घूम रहे हैं। सिख विरोधी दंगे से संबंधित मामले की जांच के लिए इस वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने एसआइटी का गठन किया था, जिससे पीड़‍ितों में इंसाफ की उम्मीद जगी थी। एसआइटी में तीन सदस्य होने चाहिए लेकिन एक पद अभी भी रिक्त है। एसआइटी को दो महीने में जांच रिपोर्ट देनी थी। इसके पास 186 मामले भी पहुंचे हैं, लेकिन एक पद रिक्त होने से जांच आगे नहीं बढ़ रही है।

उन्होंने कहा था कि सिख विरोधी दंगे के कई गवाहों की मृत्यु हो चुकी है। इसलिए यह जरूरी है कि जांच में तेजी लाई जाए। राष्ट्रपति को तीसरे सदस्य की नियुक्ति का आदेश देना चाहिए। प्रतिनिधिमंडल में पूर्व थलसेना अध्यक्ष जेजे सिंह, सिख फोरम के सदस्य व भाजपा नेता आरपी सिंह, अधिवक्ता गुरचरण सिंह गिल व रुपिंदर सिंह शामिल थे।

बता दें कि सिख दंगा साल 1984 में हुआ था। इस दंगे का कारण तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्‍या थी। इनकी हत्‍या उन्‍हीं के अंगरक्षक ने की थी जो सिख था। इसके बाद दंगा भड़क गया था। इस दंगे से देश बुरी तरह प्रभावित हुआ था। करीब 3000 लोगों से ज्‍यादा मौत हो चुकी थी। इसमें से सिर्फ 2000 लोग दिल्‍ली में मारे गए थे।


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