नितिन गडकरी बोले- गंगा का काम पूरा हो रहा है, तभी प्रियंका पानी पी रही हैं और यात्रा कर रही हैं
खुद को प्रधानमंत्री की रेस से बाहर बताते हुए नितिन गडकरी दावा करते हैं कि केंद्र में फिर से मोदी सरकार बनेगी।
अपने बेलौस अंदाज के लिए जाने जाने वाले केंद्रीय सड़क परिवहन, जलमार्ग व गंगा मंत्री नितिन गडकरी हाल के दिनों में कुछ ऐसे बयानों के कारण विवाद में घिर गए थे जो उन्होंने दिया ही नहीं था। ऐसे लोगों को वह सीधे सपाट शब्दों में कहते हैं- मेरे कंधे पर बंदूक रखकर मत चलाओ। वहीं चुनाव में भाषा की मर्यादा की सलाह देते हुए विपक्ष को याद दिलाते हैं कि चुनाव प्रदर्शन से जीते जाते हैं और पांच साल में सरकार ने वह कर दिखाया है जो 70 साल में नहीं हुए थे। खुद को प्रधानमंत्री की रेस से बाहर बताते हुए वह दावा करते हैं कि केंद्र में फिर से मोदी सरकार बनेगी। दैनिक जागरण के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक प्रशांत मिश्र और विशेष संवाददाता नीलू रंजन से बातचीत के अंश:
पिछली बार नरेंद्र मोदी को लेकर एक प्रकार की उम्मीद थी जनता में और वही उम्मीद भाजपा का मुख्य मंत्र था। इस बार के चुनाव में भाजपा के अभियान का केंद्र बिंदु क्या है?
-कोई भी पार्टी और नेता के सत्ता में आने के बाद जनता और देश के लिए पांच साल में उसने क्या काम किया, यह प्रदर्शन ही उसकी परीक्षा होती है। हम कह सकते हैं कि जो 50 साल में कांग्रेस पार्टी ने नहीं किया, वह पांच साल में हमने करके दिखाया। उसी के आधार पर हमलोग खड़े हैं और मेरा विश्वास है इसमें निश्चित रूप से हमारी जीत होगी।
लेकिन माना तो यह जा रहा है कि इस बार का मुख्य मुद्दा राष्ट्रवाद और बालाकोट है?
- वह अलग बात है कि बालाकोट को लेकर भी कुछ लोग अतार्किक सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे लोगों को जनता जवाब देगी। लेकिन हमें मूल मुद्दों-आर्थिक नीति, विदेश नीति, सुरक्षा नीति के आधार पर लोकतंत्र को मजबूत करना चाहिए। वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, यह स्वाभाविक है, नैसर्गिक है। मनभेद नहीं होने चाहिए। हम एक-दूसरे के विरोधी हैं, दुश्मन नहीं हैं और राष्ट्र के हित में हम सब एक हैं।
हम सब अमेरिका, ब्रिटेन से भी ज्यादा परिपक्व लोकतंत्र बनाने के लिए मिलकर कोशिश करें। इसके लिए तो मुद्दों पर बात करनी होगी। जातिवाद, आरक्षण सहित छोटे-मोटे विवादों पर भावनात्मक मुद्दों से चुनाव का एजेंडा बदल जाता है और गलत विषय पर चला जाता है।
पिछले पांच साल में मोदी ने पूरी दुनिया में देश के साथ-साथ भाजपा की प्रतिष्ठा, आन-बान-शान बढ़ाई है। साथ ही यह भी सच है कि कुछ प्रश्न 70 साल के हैं। हमलोगों ने कुछ सुलझाने की कोशिश की। हम ये भी दावा नहीं करते कि हमने 100 प्रतिशत समाधान ढूंढा है। पर हम ये दावा जरूर कर सकते हैं कि जो 50 साल में नहीं हुआ उससे कई गुना ज्यादा काम हमने पांच साल में किए हैं। अगले पांच साल में इससे भी कई गुना ज्यादा काम नए भारत की सोच के साथ करेंगे।
सरकार के स्तर पर कई उपलब्धियां गिनाई जा रही हैं। पर आपके मंत्रालय से जुड़ा कोई ऐसा काम जो लगता है कि चुनाव को एक दिशा दे सकता है?
-मेरा कोई काम चुनाव को दिशा दे सकता है या नहीं दे सकता है, यह देखना मेरा काम नहीं है। आप लोग उसका मूल्यांकन करें। यदि मैं कहूं कि मेरे काम से चुनाव की दिशा बदलेगी तो यह अहंकार की बात होगी। मैं तो यह मानता हूं कि जो भी करने लायक था, मैंने किया। 11 लाख करोड़ रुपये के रोड प्रोजेक्ट को अवार्ड किया। और सबसे बड़ी बात कि 11 लाख करोड़ रुपये के किसी भी काम के लिए एक भी कांट्रेक्टर को मेरे पास आना नहीं पड़ा। यानी करप्शन फ्री सिस्टम के साथ पूरा काम हुआ।
इसी तरह ट्रांसपोर्ट सेक्टर में बायोफ्यूल, इथोनॉल, मेथोनॉल, बायो डीजल, सीएनजी, इलेक्ट्रिक पर काम हुआ इलेक्ट्रिक टैक्सी, इलेक्ट्रिक बाइक, इलेक्ट्रिक रिक्शा आई। सागर माला में 16 लाख करोड़ रुपये के काम प्रस्तावित किए थे। उसमें लगभग पांच लाख करोड़ के काम शुरू हो गए। नमामि गंगे के तहत 26 हजार करोड़ के गंगे में 285 प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। केवल गंगा में नहीं, यमुना, काली जैसी 40 नदियों और नालों में काम कर रहे हैं। इनमें 30 प्रतिशत प्रोजेक्ट पूरे हो गए। परिणाम गंगा अविरल और निर्मल हो गई। इसीलिए कुंभ में इस बार लोगों ने आशीर्वाद दिया।
गंगा जलमार्ग का काम लगभग पूरा हो रहा है। (हंसते हुए) वहां प्रियंका जी इसीलिए जा पाईं क्योंकि हमने जलमार्ग बनाया और पानी इसीलिए पी रही हैं कि क्योंकि हमने पानी शुद्ध किया। डाल्फिन फिर से दिखने लगा। प्रयागराज मैं गया था तो साइबेरियन पक्षी देखे। कछुआ दिखने लगे। वाइल्ड लाइफ फिर से आया। हिलसा जो बांग्लादेश की मछली है, प्रयागराज तक आ गई है। अगले मार्च के अंत तक गंगा पूरी तरह निर्मल हो जाएगी।
आप बड़े-बड़े प्रोजेक्ट पूरा होने की बात कर रहे हैं। लेकिन डाटा दिखा रहा है कि रोजगार उस ढंग से नहीं आ रहा है। आखिर ये विरोधाभास कैसे?
- आर्थिक सेक्टर में सबका सहयोग होता है। उसमें कुछ सेक्टर में दिक्कत थी। ग्लोबल इकोनॉमी के कारण कृषि क्षेत्र में संकट है। जो-जो सेक्टर अड़चन में थे, हमारी कोशिश है कि हम उसे और तेज करें। पर मेरे क्षेत्र में जो 17 लाख करोड़ रुपये के काम हुए, उनसे करोड़ों नौकरियां मिली हैं। कुछ सेक्टर में काफी अच्छा काम है, कुछ सेक्टर में परेशानी है। हम कोशिश कर रहे हैं कि इसमें समाधान ढूंढ कर आगे बढ़ें।
यानी आप मानते हैं कि पिछले पांच साल में कुल मिलाकर नौकरियां कम हुई हैं?
-नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता। जॉब क्रिएट हुए हैं और पहले की तुलना में ज्यादा भी हुए हैं। पर जितनी बेरोजगारों की संख्या है, उसकी तुलना में और काम करने की आवश्यकता है। हमारी आर्थिक नीति यही है कि अधिकतम रोजगार का निर्माण कैसे हो। इसीलिए हम कहते हैं कि रोजगार मांगने वाले नहीं, रोजगार देने वाले बनो। इसके लिए स्टार्टअप, स्टैंडअप, न्यू इनोवेशंस पर जोर दे रहे हैं।
आपने माना कि कृषि क्षेत्र संकट में है। ऐसे में विपक्ष के ऋण माफी के एजेंडे से निपटना मुश्किल होगा?
-ऋण माफी कोई स्थायी समाधान नहीं है। चीनी का भाव ब्राजील तय करता है। पूरी दुनिया में 20 रुपये चीनी का भाव है, हम 34 रुपये का भाव दे रहे हैं। दाल पर्याप्त से भी अधिक है। गेहूं सरप्लस है। चावल सरप्लस है। मक्के का भाव अमेरिका तय करता है। सोयाबीन का भाव अर्जेंटीना तय करता है। पामोलीन का भाव मलेशिया तय करता है। हमें कृषि में विविधीकरण करना पड़ेगा। इसके लिए हम इथेनॉल की इकोनॉमी ला रहे हैं।
पराली से बायोफ्यूल बनाने की योजना ला रहे हैं। पहली बार देश के इतिहास में हमने स्पाइसजेट का विमान देहरादून से दिल्ली तक 25 फीसद बायोएविएशन फ्यूल पर चलाया। 26 जनवरी को हमारे हेलीकॉप्टर और फाइटर जेट 100 फीसद बायोएविएशन फ्यूल पर चले। यदि हम तेल का दो लाख करोड़ का भी आयात कम करेंगे और यहां बनाएंगे तो इससे 50 लाख युवाओं को रोजगार मिलेगा। किसानों का विकास होगा और परिस्थिति बदल जाएगी।
आप चीनी बेल्ट वाले राज्य महाराष्ट्र से आते हैं। लोकसभा सीट केलिहाज से भी आप दूसरे सबसे बड़े प्रदेश से आते हैं। क्या गन्ना किसानों का रोष परेशान कर रहा है?
-हमने तो चीनी की 34 रुपये की कीमत लगाकर पूरी मदद की और किसानों को पैसे दिए। विश्व बाजार में 20 रुपये का भाव है। चीनी निर्यात नहीं हो रही है। फिर भी हमने किसानों के साथ रहकर समस्या का समाधान किया है। मुझे बताइए, इससे ज्यादा क्या हो सकता है।
यदि राजनीति की बात करें तो आरोप-प्रत्यारोप और बातचीत का लहजा थोड़ा बिगड़ रहा है। आपको क्या लगता है?
-मुझे लगता है कि लोकतंत्र में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, मनभेद नहीं होने चाहिए। इसीलिए सभी को मिलकर राजनीति का दर्जा बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। मेरे खिलाफ जो उम्मीदवार खड़ा है, वह कभी भाजपा का सांसद था। मुझे पूछा गया कि ये तो आपका चेला है, आप इसको आशीर्वाद नहीं देंगे। तो मैंने कहा कि आशीर्वाद भी दूंगा और शुभेच्छा भी दूंगा, पर पूरे चुनाव में उसका नाम नहीं लूंगा। मुझे लगता है कि सबने इसका पालन किया तो गुणात्मक परिवर्तन होगा। पर प्रधानमंत्री किसी पार्टी का नहीं होता, उसको चोर कहना अच्छी बात नहीं है।
लेकिन धीरे-धीरे कटुता बढ़ती जा रही है। भाषा की शालीनता का स्तर गिर रहा है?
-आपकी बात सही है। कटुता कम होनी चाहिए। शालीनता बनी रहनी चाहिए और एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। यही भाव मुझे उचित लगता है।
आपने बात की कि जातिवाद नहीं होना चाहिए। लेकिन जातिवाद तो इस देश की हकीकत है?
-सब कुछ करना मेरे वश में नहीं है। मैं एक ही बात करता हूं कि मैं जातिवाद का पालन नहीं करता। घर, परिवार और राजनीतिक दृष्टिकोण में मैंने जातिवाद का कभी सहारा नहीं लिया।
लेकिन टिकटों के वितरण में आपकी पार्टी भाजपा में तो यह सब दिखता है?
-देखिये हमारी पार्टी जातिवाद से मुक्त है। हमारे यहां परिवारवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता तीनों बातें नदारद हैं। गरीब तो गरीब होता है, उसकी कोई जात नहीं होती। भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई ये सब की समस्याएं हैं। इसीलिए गांव-गरीब, मजदूर-किसान का कल्याण करना और भय-भूख-भ्रष्टाचार और आतंक से मुक्ति देना व सुखी-संपन्न-समृद्ध हिंदुस्तान बनाना हमारा मकसद है। यही हमारा मिशन है। यही हमारी विचारधारा है।
समाज के अंतिम व्यक्ति-जो शोषित, पीड़ित, दलित है, जब तक उसको रोटी-कपड़ा और मकान नहीं मिलता, तब तक हमारा कार्य पूरा नहीं होगा। सुशासन, विकास का साथ लेकर गरीबी और बेरोजगारी को दूर करें। इस स्पष्टता के साथ हमारी विचारधारा है।