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Lok Sabha Election: धर्मसंकट में नेता, पार्टी का साथ दें या करें दूसरी पार्टी में गए परिजनों का प्रचार

इस लोकसभा चुनाव में कई सीटें ऐसी हैं जहां पर प्रत्‍याशी एक ही घर से हैं लेकिन अलग-अलग पार्टियों से किस्‍मत आजमा रहे हैं। ऐसे में उनपर एक दूसरे का समर्थन करना काफी भारी पड़ रहा है

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 02:51 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 08:32 AM (IST)
Lok Sabha Election: धर्मसंकट में नेता, पार्टी का साथ दें या करें दूसरी पार्टी में गए परिजनों का प्रचार
Lok Sabha Election: धर्मसंकट में नेता, पार्टी का साथ दें या करें दूसरी पार्टी में गए परिजनों का प्रचार

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। लोकसभा चुनाव 2019 कई मायनों में बेहद दिलचस्‍प हो गया है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि कई जगहों पर एक ही परिवार के लोग दो अलग-अलग पार्टियों से चुनावी मैदान में हैं। इसमें बिहार की पटना साहिब सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा और उनकी पत्‍नी पूनम सिन्हा जो लखनऊ से सपा की प्रत्याशी हैं, का भी नाम शामिल है। इसके अलावा ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में भी है जहां कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे सुजय विखे पाटिल भाजपा से महाराष्‍ट्र की अहमदनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसा ही कुछ हिमाचल प्रदेश में भी हो रहा है जहां कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा को मंडी से अपना प्रत्‍याशी बनाया है। आपको बता दें कि आश्रय के पिता अनिल शर्मा भाजपा से विधायक हैं। ऐसे में हर जगह चुनावी जंग काफी खास हो गई है।

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आपको यहां पर बता दें कि सुजय को लेकर उनके पिता राधाकृष्‍ण पार्टी नेताओं के निशाने पर हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि कांग्रेसी होते हुए वह भाजपा प्रत्‍याशी के लिए वोट मांग रहे हैं। दो दिन पहले उन्‍होंने निवास पर अपने बेटे के लिए खुलेतौर पर वोट मांगा। सुजय पेशे से न्यूरोसर्जन हैं और पिछले माह ही भाजपा में शामिल हुए हैं। बहरहाल, उनका मामला काफी कुछ आश्रय और अनिल से भी मिलता है। अनिल शर्मा हिमाचल प्रदेश में ऊर्जा मंत्री थे, लेकिन कांग्रेस द्वारा बेटे को मंडी से प्रत्‍याशी बनाए जाने के बाद उन्‍होंने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया था। यहां पर भी वह वह अपने पार्टी नेताओं के निशाने पर हैं। अनिल और राधाकृष्‍ण के लिए यह काफी बड़ा धर्म संकट है कि आखिर घुर विरोधी पार्टी के प्रत्‍याशी के लिए खुलेतौर पर प्रचार कैसे किया जाए।

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शत्रुघ्‍न सिन्‍हा के लिए भी ऐसा ही धर्म संकट है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि लखनऊ से जहां उनकी पत्‍नी पूनम मैदान में हैं वहीं कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्‍णम को मैदान में उतारा है। शॉटगन के नाम से मशहूर शत्रुघ्‍न खुद पटना साहिब से कांग्रेस के उम्‍मीद्वार हैं। ऐसे में उनके सामने भी यही धर्म संकट है कि वह अपनी पत्‍नी का चुनाव प्रचार कैसे करें।

इसी तरह का हाल गौतमबुद्ध नगर का भी है जहां पर पहले चरण के दौरान मतदान हुआ था। यहां पर ठाकुर जयवीर सिंह भाजपा से एमएलसी और उनके बेटे अरविंद कुमार सिंह को कांग्रेस ने अपना प्रत्‍याशी बनाया है। इसी तरह से आंध्र प्रदेश की अराकू लोकसभा सीट से पिता और पुत्री के बीच ही कड़ा मुकाबला है। यहां विरीचेरला किशोर चंद्र देव, तेलुगू देशम पार्टी की तरफ से खड़े हैं तो उनकी बेटी श्रुति देवी को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है। अब जरा एक नजर उन लोगों पर भी डाल ली जाए जिनका जिक्र हमनें ऊपर किया है।

पूनम सिन्हा की बात करें तो वह 1968 में मिस यंग इंडिया रह चुकी हैं। इसके अलावा उन्‍होंने सिनेमा के पर्दे पर भी कोमल के नाम से काम किया है। फिल्‍मों की बात की है तो आपको बता दें कि वह दो फिल्‍म प्रोड्यूस भी कर चुकी हैं। वर्तमान में वह लखनऊ की अब तक की सबसे धनवान प्रत्‍याशी हैं। उन्‍हें सपा ने अपना उम्‍मीद्वार बनाया है। पूनम की चल और अचल सम्पत्ति करीब 81 करोड़ रुपए की है। पति शत्रुघ्न सिन्हा की सम्पत्ति मिला दें तो दोनों की सम्पत्ति करीब दो अरब हो जाती है।

आश्रय शर्मा का जन्म 17 दिसंबर 1986 को हुआ था। मंडी से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्‍होंने आगे की पढ़ाई दिल्ली से की है। दिल्ली से ही होटल प्रबंधन में डिग्री हासिल की है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 2016 में उन्हें प्रदेश कांग्रेस का सचिव नियुक्त किया था। बाद में उन्हें सराज हलके का प्रभारी बनाया गया था। जहां तक उनके दादा पंडित सुखराम की बात है तो वह प्रदेश और केंद्र में मंत्री रह चुके हैं।

विरीचेरला किशोर चंद्र देव, पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। पहले वह कांग्रेस में थे लेकिन फिलहाल अब टीडीपी में हैं। उन्होंने इसी वर्ष फरवरी को टीडीपी ज्‍वाइन की है। चंद्र देव 6 बार सांसद रह चुके हैं।

आमजन की बात करें तो हर कोई इस चुनावी जंग में मोहरे बने नेताओं को टकटकी लगा कर देख रहा है। देखना इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि दूसरी पार्टी के प्रत्‍याशी, भले ही वह उनका बेटा ही क्‍यों न हो, राजनीति की दृष्टि से काफी अटपटा लगता है। हालांकि भारतीय राजनीति में इस तरह के कुछ उदाहरण तो मिल ही जाएंगे जिसमें एक ही परिवार के लोग दो अलग-अलग पार्टियों में बड़े कद के नेता हैं। माधवराज सिंधिया उनके बेटे ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और उनकी बुआ वसुंधरा राजे या राजमाता वि‍जयाराजे सिंधिया इसका जीता जागता उदाहरण है।

चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें


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