विदेशी मठ प्रमुखों को सूचना नहीं
सारनाथ में सितंबर में होने वाले बुद्धिस्ट कानक्लेव को लेकर भले ही सरकारी महकमों में हलचल शुरू हो गई हो, लेकिन बुद्ध की तपोभूमि में मौजूद तमाम विदेशी मठ अब भी शांत बैठे हैं।
वाराणसी। सारनाथ में सितंबर में होने वाले बुद्धिस्ट कानक्लेव को लेकर भले ही सरकारी महकमों में हलचल शुरू हो गई हो, लेकिन बुद्ध की तपोभूमि में मौजूद तमाम विदेशी मठ अब भी शांत बैठे हैं। सरकार व प्रशासनिक अमले की लापरवाही कहें या अदूरदर्शिता कि अब तक यहां मौजूद आधा दर्जन से अधिक देशों के मठ प्रतिनिधियों को कानक्लेव के बाबत कोई जानकारी पर्यटन विभाग की ओर से नहीं दी गई है। विदेशी मठों के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट कर दिया है कि पिछले बौद्ध महोत्सव की तरह इस बार होने वाला बुद्धिस्ट कानक्लेव सरकारी आयोजन तक सिमट कर रह गया तो विदेशी पर्यटकों का तो टोटा होगा ही, बौद्ध अनुयायी भी नहीं आएंगे।
एक को ही मिलता है निमंत्रण- सरकार व स्थानीय स्तर पर आयोजन के दौरान यह तो बताया जाता है कि फलां आयोजन में इन देशों के प्रतिनिधि व हजारों पर्यटक जुटेंगे लेकिन कभी उन्हें समय से विधिवत निमंत्रण नहीं भेजा जाता। जानकारी के अनुसार सारनाथ में अब तक बौद्ध धर्म से जुड़े जितने कार्यक्त्रम हुए हैं, महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया को ही सूचना दी जाती है। आयोजन में उन्हें ही आमंत्रित किया जाता है जबकि बौद्ध धर्म से जुड़े जापान, चीन, थाईलैंड, कोरिया, म्यामांर समेत अन्य देशों के मठ-मंदिर भी सारनाथ में मौजूद हैं। बड़ी संख्या में इन देशों के नागरिक भी बनारस घूमने आते हैं। समय से जानकारी और आमंत्रण न मिलने की स्थिति में इन देशों के बौद्ध अनुयायी अपने को अपमानित महसूस करते हैं और चाहकर भी ऐसे आयोजनों में शामिल नहीं हो पाते।
वहां होती भीड़ और यहां सन्नाटा- सारनाथ में मौजूद श्रीलंका, जापान, तिब्बत, चीन, कोरिया, थाईलैंड अथवा म्यांमार जैसे बौद्ध देशों के निजी कार्यक्त्रम यहां आयोजित होते रहते हैं। इन कार्यक्त्रमों में सैकड़ों विदेशी पर्यटक शामिल होते हैं जबकि सरकार की ओर से आयोजित होने वाले समारोह में गिनती के ही विदेशी पर्यटक होते हैं। मूल वजह सरकारी स्तर पर उन्हें अपने कार्यक्त्रम के बारे में समय से अवगत न कराना और निमंत्रण न भेजना है।
सभी बौद्ध मंदिरों को मिले बराबर का दर्जा- सरकारी स्तर पर उपेक्षा से आहत थाई बौद्ध मंदिर (सारनाथ) के प्रभारी भिक्षु गुरु धम्मो ने कहा कि आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि सितंबर में होने वाले बुद्धिस्ट कानक्लेव की सूचना दैनिक जागरण के माध्यम से मिली है। कानक्लेव एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां सभी बौद्ध भिक्षु एक स्थान पर अपनी बात रख सकते हैं। भारत में बौद्ध धर्म से संबंधित आयोजन में हम सहयोग देने को तैयार हैं लेकिन हमें भी तो सम्मान मिले।
जापानी बौद्ध मंदिर के प्रभारी कालजंग बोले कि किसी भी बौद्ध आयोजन की रूपरेखा तैयार करते वक्त पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन कोई राय मशवरा नहीं करता। कभी बुलाया भी गया तो बैठक की बात कमरे तक ही रह जाती है, लागू नहीं होती। सुझाव लेने के बाद भी जब अमल न करना हो तो ऐसी बैठकों का फायदा ही क्या। आयोजन को सफल बनाना हो तो सभी मठ के प्रभारियों को आमंत्रित करने के साथ ही समस्या व सुझाव पर ध्यान देना चाहिए।
तिब्बती बौद्ध मंदिर प्रभारी भिक्षु शेरब ज्ञ्?यात्सो का कहना है कि सरकार को किसी भी आयोजन की जानकारी कम से कम चार माह पूर्व देनी चाहिए। जब तक सरकार आयोजन से तीन दिन पूर्व निमंत्रण भेजेगी, पर्यटक तो छोडि़ए स्थानीय लोग भी शरीक नहीं होंगे।
चाइनीज बौद्ध मंदिर के भिक्षु मोगोल केसलो कहते है कि बौद्ध धर्म के विकास को ऐसे आयोजन महत्वपूर्ण हैं। ऐसे आयोजनों में जब विदेशी आते हैं तो वे यहां की कला व संस्कृति से भी परिचित होते हैं। पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा मिलता है, मेल जोल बढ़ने से दोनों देशों को फायदा होता है।
मिझुमा सुखा बर्मा बौद्ध विहार के प्रभारी भिक्षु नंदा वंश का कहना है कि कानक्लेव में आने वाले पर्यटकों की समस्याओं का निदान करना व उनकी सुविधाओं का ध्यान रखना सरकार की बड़ी जिम्मेदारी होगी। अक्सर ऐसे आयोजनों में मुख्य अतिथि के आने व जाने तक ही सरकारी मशीनरी फास्ट रहती है। उनके जाते ही वे दूर देश से आए लोगों को भूल जाते हैं। यह अपमान है।
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