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सौ करोड़ में 20 फीसदी गंगाजल

जन जन की आस्था की प्रतीक गंगा में हम जो पानी देख रहे हैं वह विभिन्न दूषित नालों और नदियों का है। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी में महज 20 फीसदी गंगाजल और 80 प्रतिशत अवजल है।

By Edited By: Published: Mon, 21 May 2012 02:54 PM (IST)Updated: Mon, 21 May 2012 02:54 PM (IST)
सौ करोड़ में 20 फीसदी गंगाजल

वाराणसी। जन जन की आस्था की प्रतीक गंगा में हम जो पानी देख रहे हैं वह विभिन्न दूषित नालों और नदियों का है। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी में महज 20 फीसदी गंगाजल और 80 प्रतिशत अवजल है। अब सारी सरकारी कवायद इसी पानी को एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) के जरिए शोधित कर वापस गंगा में गिराने की हो रही है। अकेले काशी में ही गंगा एक्शन प्लान के तहत 26 वर्षो में एक अरब से कहीं अधिक की धनराशि खर्च की जा चुकी है लेकिन हालात इतने बदतर हैं कि गंगा में गिरने वाले तकरीबन 400 एमएलडी सीवर जल के विपरीत अब तक महज 100 एमएलडी सीवर जल के शोधन का ही बंदोबस्त हो सका। शेष 300 एमएलडी सीवर जल आज भी गंगा में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से गिर रहा है। ऐसा भी नहीं कि शेष सीवर जल के लिए कोई प्लान ही नहीं बना। प्लान बना तो तमाम पर वे सभी सरकारी इच्छा शक्ति के अभाव में सिर्फ फाइलों तक ही सीमित होकर रह गए। नगवा नाले से तकरीबन 60 एमएलडी, आरपीघाट पर 15 एमएलडी, राजघाट के निकट 50 एमएलडी नाले का पानी गंगा में गिरते किसी भी समय देखा जा सकता है। छोटे-छोटे नालों की संख्या 30 के ऊपर है। कल-कारखानों से गिरने वाला तकरीबन 40 एमएलडी केमिकल युक्त अवजल गंगा के पानी को जहरीला बना रहा है। इसे रोकने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल हुई ही नहीं है। हालांकि नगवा नाले के लिए रमना में 60 एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट और शहर व वरुणापार के सीवर जल की निकासी के लिए 120 व 140 एमएलडी के दो ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित हैं। ये सारे प्रस्ताव 2003 से ही शासन और प्रशासन की चौखट पर माथा टेक रहे हैं। जिस समय एक्शन प्लान बना, उस समय नगर की सीवर जल की निकासी 240 एमएलडी के आसपास थी। अब सीवर जल की निकासी 400 एमएलडी पहुंच गई लेकिन प्रोजेक्ट अस्तित्व में नहीं आ सका जबकि इन सारे प्रोजेक्टों को वर्ष 2005 में ही अंतिम रूप दे दिया जाना था। वर्ष 2012 में भी पांच माह समाप्त होने को है लेकिन आज भी यह योजनाएं अधर में ही हैं। इधर, गंगा में अवजल की मात्रा जहां बढ़ती जा रही है वहीं नदी का डिस्चार्ज (प्रवाह) घटने से काशी में गंगा अब नाले का रूप अख्तियार करती जा रही हैं। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई से जुड़े अधिकारी ही बताते हैं कि शासन-प्रशासन की इच्छाशक्ति के अभाव में निर्मलीकरण से जुड़ी सारी योजनाएं आधी-अधूरी स्थिति में हैं। ऐसे में सीवर जल का गंगा में गिरना स्वाभाविक है। गंगा एक्शन प्लान की विफलता का कारण भी यही है। सरकारी इच्छाशक्ति यह कि गंगाजल का प्रदूषण मापने के लिए अब तक कोई व्यवस्था ही नहीं की जा सकी है। हाईकोर्ट ने 1978 में उप्रप्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को गंगाजल का प्रतिदिन विश्लेषण करने और नगर में जगह-जगह बोर्ड लगा डाटा डिस्प्ले करने का निर्देश दिया था लेकिन इसका पालन आज तक नहीं किया जा सका।

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