स्वामी श्रद्धानंद एक क्रांतिकारी संन्यासी
स्वामी श्रद्धानंद ने समाज को एक सूत्र में बांधकर अंग्रेजों के फूट डालने के सिद्धांत को विफल किया था। उनके बलिदान दिवस (23 दिसंबर) पर विशेष..
धर्म, संस्कृति और देश की रक्षा के लिए बलिदान दे देने वालों में स्वामी श्रद्धानंद का नाम लिया जाता है। उन्होंने स्वाधीनता की लड़ाई में अंगे्रजों से लोहा ही नहीं लिया, बल्कि सांप्रदायिक सद्भावना को कायम रखने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने आर्य समाज से जुड़कर समाज सुधार और शिक्षा के उत्थान के लिए कार्य किए, वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और दलितोद्धार सभा के जरिये अनगिनत लोगों की भलाई के कार्य किए। स्वामी जी ने असहाय, लाचार और गरीबों को गले लगाया और विधवाओं व दलितों को समाज में उनका हक दिलवाया।
1856 में जालंधर में जन्मे स्वामी श्रद्धानंद को बचपन में ईश्वर पर आस्था नहीं थी, लेकिन स्वामी दयानंद का प्रवचन सुनकर उनका जीवन बदल गया। स्वामी जी ने हरिद्वार में नितांत वैदिक भारतीय संस्कृति पर आधारित गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने जामा मस्जिद से हिंदू और मुसलमानों को सद्भावना का संदेश वेद मंत्रों के साथ दिया था। गांधी जी उनके कायरें की खूब तारीफ करते। गांधीजी को महात्मा का संबोधन पहली बार स्वामी श्रद्धानंद ने ही दिया था। समाज विरोधी तत्त्व उनसे चिढ़ते थे। एक मदांध युवक ने 23 दिसंबर 1926 को दिल्ली के चांदनी चौक में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
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