प्रेम से बड़ा धन कोई नहीं
विश्वायतन सतुआ बाबा धाम की जगद्गुरु साई मां का मानना है कि मानव जीवन ईश्वर का एक बड़ा वरदान है और इसे अपने सुख के लिए ही नहीं व्यय करना चाहिए। शांति भाव के साथ सेवा ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। यही सच्चा मार्ग है और व्यक्ति को सुख प्रदान करता है।
विश्वायतन सतुआ बाबा धाम की जगद्गुरु साई मां का मानना है कि मानव जीवन ईश्वर का एक बड़ा वरदान है और इसे अपने सुख के लिए ही नहीं व्यय करना चाहिए। शांति भाव के साथ सेवा ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। यही सच्चा मार्ग है और व्यक्ति को सुख प्रदान करता है। उनका मानना है कि आज समाज दिग्भ्रमित है। इसीलिए तरह-तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। इसका एक कारण यह भी है कि हमारे आचार-विचार निम्नतर हो चले हैं। जगद्गुरू साई मां का कहना है कि सभ्य समाज, स्वस्थ संस्कृति और अपनी मर्यादा की गरिमा के लिए हमें अच्छा मानव बनना होगा। इसके लिए लोगों में प्रेमभाव भी जरूरी है। सुख, शांति, प्रगति नाम और बहुत सी चीजों को बेहतर रखने के लिए प्रेम से बड़ा धन व सरल व्यवहार से बड़ी कोई दूसरी शक्ति नहीं है। जगद्गुरु साईं मां से अनिल त्रिगुणायत की बातचीत के प्रमुख अंश:
महाकुंभ में हर आश्रम समाज के लिए समर्पित होने की बात करते हैं। वस्तुत: समाज की सेवा कैसे की जा सकती है?
संतों और आश्रमों को असहायों और निरीह लोगों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। मैंने अपना पूरा जीवन असहाय व निरीह लोगों को समर्पित कर दिया है। पूरी दुनिया में असहाय नजर आते हैं। हम वैश्रि्वक स्तर पर मानवीयता की स्थापना चाहते हैं। लगभग 34 देशों में सक्रियता के साथ हम समाज को नई दिशा देने के लिए कार्य सेवा कर रहे हैं। वैसे तो मेरे पास विश्व के कोने-कोने से अनुयायी आते हैं किंतु हम उन्हीं को समग्र बनाते हैं जिनमें समाज को कुछ अलग से दे पाने की जिजीविषा होती है।
इस दिशा में क्या प्रयास किए जा रहे हैं? क्या आश्रम की ओर से प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की गई है?
लोगों की सेवा एक मिशन है और इसे सुनियोजित रूप दिया ही जाना चाहिए। हमारे पास ज्ञान की खोज में अमेरिका, कनाडा, दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के तमाम देशों के लोग आते हैं। इनके लिए अलग-अलग स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। किसी को पंद्रह दिन, किसी को एक माह और किसी को छह माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। हमारा मुख्य फोकस लोगों में शांति व सहृदयता का रस घोलना है। विश्व बंधुत्व की परिकल्पना के साथ हम उन्हें इस लायक बनाना चाहते हैं कि वे यहां से निकलकर आधुनिक दुनिया को सत्य के मार्ग पर चलना सिखा सकें।
जीने का सच्चा मार्ग क्या है। मानव अपने जीवन को किस स्तर पर सार्थक कर सकता है?
भौतिक दुनिया में रहने वाले कदाचित अपने मूल उद्देश्यों से भटक जाते हैं। आज के दौर में यह अधिक दिखाई पड़ता है। संभवत: इसमें उनका भी दोष पूर्णरूपेण नहीं है, आसपास के वातावरण, अंधानुकरण इसके पीछे कारण हो सकते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए श्रद्धा-आस्था जरूरी है। जीवन को सफल बनाने हेतु हमें अपना कुछ योगदान देना ही होगा। हमारा मानना है कि मानव जीवन ईश्वर का एक बड़ा वरदान है और इसे अपने सुख के लिए ही नहीं व्यय करना चाहिए। सेवा और शांति भाव के साथ सेवा ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। यही सच्चा मार्ग है और व्यक्ति को सुख प्रदान करता है। हमारी कोशिश है कि सुख, शांति, प्रदूषण मुक्त वातावरण, अच्छी जीवन शैली, बेहतर स्वास्थ्य, स्वस्थ सामाजिकता और सभी से प्रेम व्यवहार की अवधारणा पर चलने/ क्त्रियाशील होने की शिक्षा अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे।
गंगा के प्रदूषण को लेकर देश स्तर पर चिंता जताई जा रही है? आपको लगता है कि इसके लिए किए जा रहे सरकारी प्रयास काफी हैं?
मेरा मानना है कि यदि हम गंगा को लेकर अभी से सचेत नहीं हुए तो हमारी अपने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। गंगा इस देश की जीवनरेखा है। इससे हर देशवासी आत्मिक रूप से जुड़ा हुआ है। विज्ञान तब वरदान हो सकता है जब हम उससे संतुलन बनाकर रखें। असंतुलित विकास अभिशाप बन ही जाएगा (एक क्षण रुकते हुए) गंगा मइया की सफाई के लिए केंद्र व राज्य सरकारें इतना धन मुहैय्या करा रही हैं, अनेकों योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन नतीजा? सिफर और सिर्फ सिफर ही दिख रहा है। जब तक हम और आप गंगा या यहां की नदियों की सफाई के लिए कमर नहीं कसेंगे तब तक इनका हाल सुधरने वाला नहीं है। कमोवेश यही स्थिति अन्य पर्यावरणीय दोहन की भी है। हमें प्रत्येक दशा में एकल प्रयास करना ही होगा। अन्यथा वही होगा कि अब पछताए होत क्या, जब चिडि़या चुग गई खेत। गंगा और पर्यावरण के मुद्दे पर एक-एक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए।
महिलाओं की सामाजिक स्थिति पहले से सुधरी है लेकिन फिर भी तमाम घटनाएं झकझोर जाती हैं? हाल ही में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं?
कहां जा रहा है यह कथित विकसित/आधुनिक समाज? चहुंदिश विस्तार व प्रगति का दंभ भरने वाले वैश्रि्वक समाज को हो क्या गया है? ऋषियों, मुनियों, वीरांगनाओं और अपने ज्ञान से आलोकित करने वाले देश (भारत) में दुष्कर्म की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। इसका मुख्य कारण है कि इस देश की परंपरा व संस्कृति अपना मूल खोती जा रही है। यह तो शिक्षा के अभाव वाले देशों में सुनी जाती हैं कि अमुक देश में ऐसा घृणित कार्य हो गया। भारत में तो बहू-बेटियों को देवी का स्थान दिया गया है। क्या कोई अपनी पर कुदृष्टि डालता है? नहीं.नहीं! लगता हैं हमारी शिक्षा में कोई बड़ी खामी आ गई है। हमारे आचार-विचार निम्नतर हो चले हैं। हम संकीर्ण व लोक लाज की मर्यादा को विस्मृत कर रहे हैं। सभ्य समाज, स्वस्थ संस्कृति और अपनी मर्यादा की गरिमा के लिए हमें अच्छा मानव बनना ही होगा।
इस तरह की कुवृत्तियों पर अंकुश कैसे लग सकता है?
सुख, शांति, प्रगति नाम और बहुत सी चीजों को बेहतर रखने के लिए प्रेम से बड़ा धन व सरल व्यवहार से बड़ी कोई दूसरी शक्ति नहीं है। भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में शांति और प्रेम का रसास्वादन कराना ही हमारा उद्देश्य है। हम सभी से इसी दिशा में सकारात्मक रूख के चलते रहने की अपील भी करते हैं। हमारा मानना है कि सबमें प्यार बांटना चाहिए। क्या हिंदू, क्या मुसलमां, हम सब हैं भाई-भाई। सबमें प्यार बांटना चाहिए।
तीर्थराज प्रयाग व संगम आपका आना-जाना रहा है। कैसी अनुभूति होती है।
इसे शब्दों में व्यक्त कर पाना मुश्किल है। अपने लगभग एक माह के तटीय प्रवास के दौरान मैं उस सुख से अभिभूत हूं, जो संभवत: कहीं और न मिल पाए। यहां की आस्था, लाखों की भीड़, सेवा भाव, व्यवस्थाएं.। सब कुछ तो अवर्णनीय हैं। प्रत्येक दिन परम ब्रंा से साक्षात्कार का अहसास होता है यहां। अधिक कुछ न कहते हुए यहां के बारे में सिर्फ यही कह सकती हूं कि यहीं ईश्वर रहते हैं.। यहीं मेरे आसपास.। संगम के पास, तीर्थराज प्रयाग में। खुद महसूस किया जा सकता है कि जीवन धन्य हो गया।
विश्वायतन सतुआ बाबा धाम किस तरह वैश्रि्वक समाज की सेवा में जुटा हुआ है?
विश्वायतन सतुआ बाबा धाम के अंतर्गत हम अनेक रूपों में वैश्रि्वक समाज की सेवा करते हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा की बेहतरी, गरीबी दूर करने, समेकित विकास और अन्य सामाजिक सेवा में हम अपना शत-प्रतिशत योगदान देते हैं। साई मां विष्णु शक्ति ट्रस्ट के माध्यम से हम गरीब बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य हेतु अनेक योजनाएं भी चलाते हैं। धन आड़े हाथों नहीं आता हैं। संपन्न लोगों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, कनाडा, ब्राजील, अर्जेटीना, उरूग्वे, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम और आस्ट्रिया की सरकारें हमारे प्रयासों, हमारी योजनाओं को देखते हुए हमारी मदद करती हैं। हमने इन देशों में भी काफी कार्यक्त्रम चला रखे हैं।
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